– विवेक कुमार पाठक
आमिर खान ने सीएट कंपनी का एक विज्ञापन किया है और उसमें दीपावली पर सड़कों की जगह सोसायटी में आतिशबाजी की बात कही है। आमिर के इस विज्ञापन पर सोशल मीडिया पर मिली-जुली बहस शुरू हो चुकी है। एक ओर जहां इसे हिन्दुओं की भावनाओं पर टीका टिप्पणी बताया जा रहा है वहीं अनेक लोग इसे बाधारहित आवागमन के लिए एक प्रेरक संदेश बता रहे हैं। इस संबंध में आरोप-प्रत्यारोप शुरू होने के बाद यह जरूरी हो जाता है कि हम जानें- समझें कि क्या प्रेरक संदेश देने वाले ये अभिनेता स्वतंत्र दृष्टि रखते हैं और हर हाल में आम नागरिकों की सुविधा असुविधा पर बोलते हैं अथवा टीका-टिप्पणियों और नसीहत देने के मामले में इनका एजेंडा इकतरफा है।
चलिए तो बात आमिर खान के विज्ञापन की चली है तो शुरुआत उन्हीं से की जाए। आमिर खान ने सत्यमेव जयते नामक कार्यक्रम के जरिए भी देश, समाज और आम लोगों को कई प्रेरणा और नसीहतें दी थीं। उन्होंने महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की बात कही थी और उनकी पीड़ाओं को सुनकर वे भावुक भी हुए थे। निश्चित ही आमिर खान ने महिलाओं और बच्चों की समस्याओं को लेकर जो मुद्दे उठाए हैं उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। हमारा संविधान भी कहता है कि महिलाओं और बच्चों को शोषण और अपराधियों से बचाने उनका संरक्षण होना चाहिए और उनके बराबरी पर आने के लिए अधिक मौके मिलना चाहिए। आमिर के कार्यक्रम सत्यमेव जयते के ईमानदार प्रयासों की प्रशंसा करते हुए एक सवाल खड़ा होता है कि क्या प्रेरणास्पद बातें करने वाले आमिर खान खुद भी कुछ ऐसा कर रहे हैं। वे निजी तौर पर बच्चों और महिलाओं के लिए क्या कर रहे हैं। वे खुद अपनी पत्नी और बच्चों को कितना संरक्षण और प्रोत्साहन दे रहे हैं।
वस्तुत: बात जब घर तक आई तो आमिर इस मामले में खोखले साबित हुए हैं। मुस्लिम होने के नाते उन्हें विधिक रूप से भले ही बार-बार विवाह की अनुमति मिल गई हो मगर सामाजिक रूप से पत्नी और बच्चों के प्रति संवेदनशीलता से आमिर के व्यक्तित्व को परखना होगा। कॉलेज में जिस रीमा ने उनके प्रेम में अपने हिन्दू धर्म को त्याग दिया था उन्हीं रीमा और उनके दो बच्चों के प्रति आमिर आजीवन प्रेम नहीं रख पाए। युवावस्था ढलते ही आमिर खान ने रीमा खान से तलाक लेकर एक झटके में उन्हें और उनके बच्चों को अपने जीवन से निकाल दिया। क्या आमिर खान का ये कदम महिलाओं और बच्चों के संरक्षण के लिए क्रांतिकारी कदम कहा जाएगा ?
खैर छोड़िए आगे बढ़िए। रीमा को छोड़कर अपने से कई साल छोटी किरण राव का भी धर्म परिवर्तन कराकर उन्होंने उनसे दूसरा विवाह किया। ये संबंध भी कुछ साल बाद कमजोर होता चला गया। किरण से आमिर के एक बेटा आजाद भी हुआ। कुछ माह पहले आमिर ने किरण राव और आजाद खान को भी अपने साथ पारिवारिक जीवन से आजाद कर दिया। क्या महिलाओं और बच्चों के हित में आमिर खान के इस कदम की प्रशंसा की जाए। तो देखा आपने, दुनिया को नसीहत देने वाले आमिर खान ने असल जिंदगी में महिलाओं और बच्चों के प्रति बहुत ही गैर जिम्मेदारी और असंवेदनशील जीवन जिया है। बार बार विवाह करना और बच्चे पैदा करके उन्हें तलाक लेकर छोड़ने को कौन-सा प्रेरक कदम माना जाए।
आज सड़कों पर पटाखे चलाने को गलत बताने वाले आमिर खान इसी तरह की कई अन्य चीजों को गलत बताने में क्यों कतराते हैं। निश्चित ही लोगों का सड़कों पर आतिशबाजी करना गलत है एवं इसे भारत में हर कोई गलत ही बताता है मगर सड़कों को जाम करके उन पर घंटों नमाज पढ़ना क्यों आज तक गलत नहीं कहा जा रहा है। आमिर खान जैसे लोग अपनी ब्रांड इमेज के जरिए सड़कों पर नमाज से होने वाली असुविधा पर वार क्यों नहीं करते। यहां आकर आमिर खान का मुंह क्यों बंद रह जाता है। देश में करोड़ों लोग सड़कों पर विभिन्न जरूरी कामों से आवागमन करते हैं। ऐसे में हर शुक्रवार को देश के कई शहर जुमा नमाज के समय भारी जाम का सामना करते हैं। बाकी दिन भी नमाज के कारण रास्ता बंद होने से लोगों को परेशानी होती है। आपकी आस्था का सम्मान है मगर आपके धार्मिक क्रियाकलाप सार्वजनिक सड़कों पर किए जाने से लोग परेशान होते हैं। एम्बुलेंस आगे न बढ़ पाने के कारण कई सांसें सड़क पर ही थम जाती हैं। सड़कों को बंद करने व उन्हें बाधित करने पर भारत में आमिर खान जैसे लोग क्यों नहीं बोलते।
हमारे कलाकारों को हम नायक मानते हैं तो नायकों को स्वतंत्र दृष्टि से गलत बात पर प्रहार करना चाहिए। क्या आमिर खान भूल गए कि उन्हीं के मुंबइया जोड़ीदार सोनू निगम ने मस्जिदों से सुबह लाउडस्पीकर पर होने वाली नमाज पर आपत्ति जताई थी और इसे नागरिकों की नींद के अधिकार के खिलाफ बताया था। उस समय भी आमिर को आगे आकर नागरिक अधिकारों और सुविधाओं के समर्थन के लिए सोनू की बात का साथ देना चाहिए था। क्या नागरिक अधिकार और सुविधाओं के मामले धर्म देखकर उठाए जाएंगे ? क्या ,खुद मुस्लिम होने के कारण आमिर मुस्लिमों की आदतों और जीवन व्यवहार के कारण शेष लोगों को हो रही असुविधा पर हमेशा मौन रखेंगे ?
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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