– अनिल निगम
कश्मीर घाटी में आतंकवादियों द्वारा ताबड़तोड़ हत्याएं कर जिस तरीके से आतंक का माहौल पैदा किया जा रहा है, बेहद शर्मनाक है। हाल ही में जो यहां हत्याएं की गई हैं, उसमें प्रवासी मजदूरों अथवा अन्य प्रदेश से आए लोगों को टारगेट किया गया है। आतंकवादियों का इसके पीछे मुख्य उद्देश्य बाहरी लोगों में खौफ पैदा करना और विकास की धारा को बेपटरी करना है।
निस्संदेह, यह पाकिस्तान की बौखलाहट का नतीजा है। चूंकि जम्मू-कश्मीर में धारा 370 समाप्त करने के बाद जिस तरीके वहां अमन चैन बहाल हो रहा है, वह पाकिस्तान को रास नहीं आ रहा। हत्याओं के पीछे लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट-जम्मू कश्मीर जैसे आतंकी संगठनों का हाथ रहा है। स्पष्ट तौर पर इनको पाकिस्तान का समर्थन प्राप्त है।
जैसा कि विदित है कि 5 अगस्त, 2019 जम्मू-कश्मीर के लिए ऐतिहासिक दिन सिद्ध हुआ। इसी दिन जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और धारा 35-ए को समाप्त कर दिया गया था। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर को जो वर्ष 1950 में भारतीय संविधान के अंतर्गत विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था, उसका अंत हो गया और यह एक देश, एक विधान और एक संविधान के दायरे में आ गया था। उसके पश्चात भारत सरकार ने स्थानीय लोगों को विकास की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए विकास संबंधी कार्यों की रणनीति बनाई थी।
लेकिन पाकिस्तान को भारत का यह निर्णय शुरू से ही नहीं पच रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के खिलाफ जमकर दुष्प्रचार किया था। उन्होंने कहा था कि अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों का उल्लंघन होगा और वहां नरसंहार शुरू हो जाएगा। लेकिन जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद सुरक्षा बलों ने जिस तरीके से आतंकियों का सफाया और दिशा विहीन हुए लोगों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए अभियान चलाया, वह काबिले तारीफ है। लेकिन पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में शांति की बहाली बिलकुल नहीं चाहता। यही कारण है कि उसने वहां अशांति फैलाने की रणनीति बदल दी है। अब उसने प्रवासी मजदूरों और अन्य प्रदेशों के प्रवासियों को टारगेट करना शुरू कर दिया है। अनेक प्रवासी मजदूर डर कर यहां से पलायन कर रहे हैं।
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में वर्तमान में चल रही अनेक विकास परियोजनाओं में 90 फीसदी से अधिक प्रवासी मजदूर निर्माण कार्यों में लगे हुए हैं। अकेले कश्मीर घाटी पांच लाख प्रवासी मजदूर कार्यरत हैं। जम्मू-कश्मीर में विभिन्न राज्यों से तीन-से चार लाख मजदूर प्रत्येक वर्ष काम के लिए घाटी जाते हैं। उनमें से अधिकांश सर्दियों की शुरुआत से पहले चले जाते हैं, जबकि कुछ साल भर वहीं रहकर काम करते हैं। उनमें बिहार और उत्तर प्रदेश से आए मजदूरों की संख्या सर्वाधिक होती है।
पाकिस्तान की बौखलाहट का एक प्रमुख कारण यह है कि जम्मू कश्मीर को जो पहले विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था, समाप्त हो चुका है। पहले वहां लोगों के पास दोहरी नागरिकता-जम्मू कश्मीर और भारत की थी, लेकिन अब देश के बाकी लोगों की तरह वहां भी एक ही नागरिकता है। इसके अलावा पहले यह प्रावधान था कि जम्मू कश्मीर की कोई युवती भारत के किसी राज्य के युवक से शादी करती है तो उसका उसके परिवार की संपत्ति में अधिकार खत्म हो जाता था और उसके बच्चों की भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता खत्म हो जाती थी, पर अब ऐसा नहीं है।
यही नहीं, जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा था, लेकिन अब तिरंगा ही पूरे जम्मू-कश्मीर का भी राष्ट्रीय ध्वज है। पहले जम्मू-कश्मीर में न अनुच्छेद 356 लागू था यानी वहां सरकार भंग होने पर राष्ट्रपति शासन नहीं लग सकता था और न ही वह अनुच्छेद 360 के दायरे में आता था, जिसके तहत राष्ट्रपति आर्थिक आपातकाल लागू करते हैं। लेकिन अब यहां पर अब भारत का संविधान पूरी तरह से लागू है।
दिलचस्प बात यह है कि पहले दूसरे राज्य के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे, लेकिन अब ये कानून नहीं है। अब यहां पर आरटीआई कानून लागू है और जहां पहले जम्मू-कश्मीर में सरकार का कार्यकाल 6 साल का होता था, अब वहां भी 5 साल के बाद चुनाव कराने का प्रावधान है। इसके अलावा पहले लद्दाख जम्मू-कश्मीर का हिस्सा था, लेकिन अब लद्दाख अलग से केंद्र शासित प्रदेश है ।
यह सब ऐसे बदलाव हैं जिनको पाकिस्तान और उसके द्वारा समर्थित आतंकी संगठन पचा नहीं पा रहे हैं। सुरक्षा बलों की अत्यंत सख्ती के चलते उन्होंने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए प्रवासी मजदूरों अथवा बाहरी प्रदेशों से आए निर्दोष लोगों का नरसंहार कर उनके अंदर खौफ पैदा करने की घिनौनी साजिश चल रही है। पाकिस्तान का उद्देश्य है कि जम्मू-कश्मीर एक बार पुन: अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन जाए। ऐसे में हर राजनैतिक दल और समाज के हर समुदाय को अपने निहितार्थों को त्यागकर देश और समाज हित में पाकिस्तान और आतंकियों के दुष्चक्र का पर्दाफाश करना चाहिए। इसके लिए न केवल हर नागरिक में सजगता जरूरी है, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर अपना यथोचित योगदान कर पाकिस्तान और आतंकियों के मंसूबों को विफल करना चाहिये।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। )
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