इंदौर। बड़वाह विधायक सचिन बिरला (Barwah MLA Sachin Birla) के कांग्रेस (Congress) छोडक़र भाजपा (Bjp) में जाने की तैयारी तो नंदू भैया के सांसद रहते हुए ही की गई थी, लेकिन बिरला के सामने चुनाव लड़े भाजपा (BJp) के हितेंद्रसिंह सोलंकी और उनके भाई ने उस समय मना कर दिया, क्योंकि यह तो तय था कि बिरला के आने के बाद पार्टी उन्हें ही टिकट देगी। गुर्जर बहुल इस सीट पर राजपूत और गुर्जर (Rajput and Gurjar) समाज आमने-सामने होते रहे हैं।
कहने को तो बड़वाह इंदौर (Indore) जैसे शहर के पास है, लेकिन यहां अभी भी जातिगत समीकरण मायने रखते हैं। बताया जा रहा है कि इस विधानसभा में 3 लाख से ज्यादा गुर्जर मतदाता हैं और उसी आधार पर 2018 के उपचुनाव में सचिन बिरला ने भाजपा के हितेंद्रसिंह सोलंकी को हराया था। हालांकि सचिन की यह जीत बहुत ही कम अंतर में सिमटकर रह गई थी। जब प्रदेश में कांग्रेस (Congress) की सरकार (Government) के विधायक भाजपा (Bjp) में आ रहे थे, तब भी सचिन का नाम चला था, लेकिन उस समय बनी दलबदल की स्क्रिप्ट नंदकुमारसिंह चौहान के कारण वास्तविक रूप में नहीं आ सकी। सूत्रों का कहना है कि हितेंद्र के भाई राजेंद्रसिंह नंदू भैया के करीबी थे और वे अड़ गए थे कि सचिन को भाजपा में नहीं लिया जाए। उन्हें 2023 का चुनाव दिख रहा था, लेकिन नंदू भैया के दिवंगत होने के बाद भाजपा का दांव चल गया और सचिन को कल मुख्यमंत्री की मौजूदगी में भाजपा में मिला लिया गया।
एक-दूसरे पर दोष मढऩे लगे कांग्रेसी
बिरला के भाजपा में जाने की स्क्रिप्ट भले ही पहले तैयार हो गई थी, लेकिन मतदान के ऐनवक्त पर वे भाजपा में चले जाएंगे ये किसी ने नहीं सोचा था। यहां से कांग्रेस (Congress) को कितना तगड़ा झटका लगेगा यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे, लेकिन जिन कांग्रेस नेताओं की ड्यूटी यहां लगाई गई थी वे एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। अगर बिरला पहले से ही भाजपा में जाने की ठानकर बैठे थे तो कांग्रेस के बड़े नेताओं ने उनसे बात क्यों नहीं की और समझाया क्यों नहीं? यही नहीं, इस मामले में यहां प्रभारी बनाए गए कांग्रेस के पूर्व मंत्री पर भी उंगली उठ रही है।
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