– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
विदेश नीति का क्षेत्र व्यापक होता है। इसमें इतिहास, भूगोल, नेतृत्व आदि के अलावा संस्कृति संबंधी तत्व भी प्रभावी होता है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय विदेश नीति को नया आयाम मिला है। उन्होंने संस्कृति को महत्वपूर्ण तत्व के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इसके पहले संस्कृति को लेकर भारतीय नेतृत्व में संकोच का भाव रहता था। प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने इस परम्परा को बदला था। नरेंद्र मोदी इस पर अधिक प्रभावशाली रूप में अमल कर रहे हैं।
वे विदेशी शासकों को भगवत गीता की प्रति भेंट करते हैं। भारत आगमन पर उनमें से कई लोग मंदिर गए। अरब देशों में मंदिर बनाये गए। नरेंद्र मोदी उनके उद्घाटन में सहभागी हुए थे। जापान के प्रधानमंत्री काशी की गंगा आरती में सहभागी हुए थे। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर वार्ता की थी। व्हाइट हाउस की दीपावली चर्चित हुई थी। उन्होंने बौद्ध देशों के साथ सांस्कृतिक आधार पर सहयोग बढ़ाने ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में गौतम बुद्ध द्वारा बौद्ध धर्म का प्रवर्तन किया गया था। उन्हें बोध गया में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। सारनाथ में उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया था। उनका महापरिनिर्वाण कुशीनगर में हुआ था।
केंद्र व उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार ने इन सभी स्थानों को भव्यता के साथ विकसित किया। यहां विश्व स्तरीय पर्यटन सुविधाओं का विकास किया जा रहा है। कुशीनगर में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का उद्घाटन भी इसमें शामिल है। इस समारोह में अनेक बौद्ध देशों के लोग शामिल हुए। श्रीलंका का विशेष विमान यहां उतरा। भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा मध्य,पूर्वी और दक्षिण। पूर्वी एशिया में भी बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। इनकी संख्या पचास करोड़ से अधिक है। चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैण्ड, म्यांमार, भूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया,मंगोलिया, लाओस,सिंगापुर,दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया सहित तेरह देशों में बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म है। नेपाल, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया,रूस,ब्रुनेई, मलेशिया आदि देशों में भी बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं।
नरेन्द्र मोदी ने कुशीनगर अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाद उद्घाटन के बाद कार्यकम को सम्बोधित किया था। उन्होंने कहा कि विश्व भर के बौद्ध समाज के लिए भारत श्रद्धा और आस्था का केन्द्र है। कुशीनगर इण्टरनेशनल एयरपोर्ट की यह सुविधा उनकी श्रद्धा को समर्पित है। भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति से लेकर महापरिनिर्वाण तक की सम्पूर्ण यात्रा का साक्षी यह क्षेत्र आज सीधे दुनिया से जुड़ गया है। श्रीलंकन एयरलाइंस के विमान का कुशीनगर में उतरना इस पुण्य भूमि को नमन करने की तरह है। इसके पहले नरेंद्र मोदी गणतंत्र दिवस पर आसियान देशों को आमंत्रित कर चुके हैं। इसमें बौद्ध सबसे बड़ा धर्म है। नरेंद्र मोदी ने एक सम्पूर्ण क्षेत्रीय संगठन मेहमान भारतीय गणतंत्र दिवस पर मेहमान बनाया था। आसियान के दस राष्ट्राध्यक्ष,गणतंत्र दिवस में मुख्य समारोह के गवाह बने थे। यह विदेश नीति का नायाब प्रयोग था। जिसे पूरी तरह सफल कहा गया थ। इसने आसियान के साथ भारत के आर्थिक, राजनीतिक, व्यापारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्तों का नया अध्याय शुरू किया था।
महत्वपूर्ण यह था कि सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भारत के निमंत्रण को स्वीकार किया। एक्ट ईस्ट की नीति कारगर ढंग से आगे बढ़ाया गया। चीन विश्वास के लायक नहीं है। इसलिए मोदी ने आसियान देशों के साथ रिश्ते सुधारने पर बल दिया। मोदी की इस नीति से न केवल एशिया में चीन के वर्चस्ववादी रुख को धक्का लगा। इनमें से अनेक देश चीन की विस्तारवादी नीति को पसंद नहीं करते। यह बात आसियान में सामान्य सहमति का विषय है। केवल इसके लिए किसी को पहल करने की आवश्यकता थी। मोदी ने साहस के साथ पहल का ये काम किया। भारत और आसियान देशों के बीच अति प्राचीन सामाजिक व सांस्कृतिक रिश्ते रहे हैं। कई आसियान देशों में बौद्ध बहुसंख्यक हैं। सिंगापुर में तो नब्बे प्रतिशत आबादी बौद्धों की है। इसके अलावा इन सभी देशों में रामकथा व्यापक रूप से प्रचलित है। यहां के राजकीय प्रतीकों में रामायण से संबंधित चिन्ह मिलते हैं। इंडोनेशिया के मुसलमान भी रामायण संस्कृति पर विश्वास करते हैं। उन्होंने उपासना पद्धति बदली है, लेकिन अपनी सांस्कृतिक विरासत को नहीं छोड़ा। रामलीला का मंचन वहाँ बहुत लोकप्रिय है। ये सब भारत और आसियान देशों के बीच रिश्तों को मजबूत बनाने वाले हैं।
एक्ट ईस्ट नीति की एक अन्य कारण से भी आवश्यकता थी। वह यह कि आसियान का विस्तार भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा तक हो गया था। म्यांमार, कम्बोडिया,लाओस और वियतनाम आसियान के सदस्य बने थे। इससे आसियान भारत के ज्यादा करीब हो गया। स्थापना के समय भारत से इसकी सीमा दूर थी। तब इंडोनेशिया, मलेशिया,फिलीपींस, थाईलैंड, सिंगापुर इसके सदस्य थे। ब्रुनेई, वियतनाम,म्यांमार बाद में सदस्य बने थे। इसीलिए मोदी ने आसियान को लेकर नीति में बदलाव किया।
सीमा की नजदीकी देखते हुए भू और समुद्री परिवहन को प्रोत्साहन देने के प्रयास किये गए। भारत के सभी आठ पूर्वोत्तर राज्यों के माध्यम से आपसी सहयोग बढ़ाने पर बल दिया गया। म्यांमार, थाईलैंड,भारत त्रिपक्षीय एक्सप्रेस-वे के द्वारा पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों की राजधानियां आसियान से जुड़ जाएंगी। भारत, नेपाल, बाग्लादेश, भूटान चारों को जोड़ने वाली सड़क के निर्माण का कार्य जारी है। इसका भी आसियान के साथ परिवहन की दृष्टि से फायदा होगा। सभी आसियान देश आतंकवाद पर भी चिंता जाहिर करते है। इसके मुकाबले के लिए साझा रणनीति बनाने पर सहमति है। समुद्री परिवहन के नियमानुसार आजादी का विषय भी गंभीर है। चीन समुद्री क्षेत्र में नियम विरुद्ध ढंग से अपना हस्तक्षेप बढ़ा रहा है। वह कृत्रिम द्वीप और उनमें सैनिक अड्डों का निर्माण कर रहा है। इससे भी इस क्षेत्र के देशों की परेशानी बढ़ी है। ऐसे में समुद्री क्षेत्र में चीन की दबंगई के मुकाबले हेतु आसियान देश संयुक्त रूप से प्रयास करने पर सहमत हुए। यह तय हुआ कि समुद्री इलाके के न्याय संगत उपयोग के लिए साझेदारी बढ़ाई जाएगी। भारत और आसियान के कानून पर आधारित रणनीति बनाई जाएगी। आसियान में भारत का महत्व और विश्वसनीयता बढ़ी है।
प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र संघ में कहा था कि दुनिया ने युद्ध दिया होगा, लेकिन भारत ने दुनिया को बुद्ध दिया है। जब भगवान बुद्ध की बात करते हैं, तो उत्तर प्रदेश और भारत का यह संदेश दुनिया के कोने-कोने में जाता है। भगवान बुद्ध से जुड़े सर्वाधिक स्थल उत्तर प्रदेश में हम सभी का गौरव हैं। भगवान बुद्ध की राजधानी कपिलवस्तु सारनाथ हो, उन्होंने सबसे अधिक चातुर्मास श्रावस्ती कौशाम्बी संकिसा कुशीनगर भी उत्तर प्रदेश में है। बौद्ध सर्किट की यह परिकल्पना को साकार हो रही है। बौद्ध सर्किट न केवल सड़क मार्ग बल्कि वायु मार्ग से भी जुड़ गया है। इसी क्रम में, अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का संचालन प्रारंभ हो चुका है। वर्तमान सरकार के पहले तक उत्तर प्रदेश में केवल दो एयरपोर्ट फंक्शनल थे। यह लखनऊ तथा वाराणसी में था। प्रदेश की कनेक्टिविटी भी उस समय करीब पंद्रह स्थानों के लिये थी। आज कुशीनगर प्रदेश का नौवां फंक्शनल एयरपोर्ट है। अब उत्तर प्रदेश पचहत्तर गंतव्य स्थानों पर वायु सेवा के साथ सीधे जुड़ चुका है। कुशीनगर प्रदेश का तीसरा अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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