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भारत की आईटी कंपनियों की कामयाबी के पीछे का सच

October 20, 2021

– आर.के. सिन्हा

माफ करें, पर यह सच है कि अब भारत में सकारात्मक खबरों को लेकर कोई बहुत चर्चा नहीं होती। वैसी ख़बरें कभी-कभी सामने आती हैं और फिर गायब हो जाती हैं। अब नेगटिव समाचारों पर अतिरिक्त फोकस का सिलसिला चालू हो गया है और सच कहें तो बढ़ता ही जा रहा है। इसका एक उदाहरण लें। देश की चार सबसे प्रमुख आई टी कंपनियां- टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस), इंफोसिस, विप्रो और एचसीएल टेक्नोलॉजीज ने चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में एक लाख से अधिक पेशेवर युवक-युवतियों की भर्तियां कीं। यह पिछले वित्त साल के पहले छह महीनों से 13 गुना अधिक है। ये भर्तियां ठोस संकेत हैं कि भारत का आईटी सेक्टर काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। टीसीएस में फिलहाल सवा पांच लाख पेशेवर हैं। बाकी जिन आईटी कंपनियों का हमने जिक्र किया है, उनमें भी कुल मिलाकर तो लाखों पेशेवर काम कर रहे हैं।

गौर करें कि इन कंपनियों में भर्तियां ही नहीं हो रही हैं। इनमें काम करने वाले पेशेवर बेहतर विकल्प मिलने पर अन्य कंपनियों का दामन थाम भी रहे हैं। इंफोसिस को पिछली तिमाही में उसके 20 फीसदी स्टाफ ने छोड़ दिया। अगर कोई इंफोसिस जैसी प्रतिष्ठित कंपनी को छोड़ रहा है तो समझ लें कि उन्हें उससे बहुत बेहतर अवसर मिल रहे हैं। वर्ना कोई इंफोसिस सरीखी श्रेष्ठ कंपनी को छोड़ने से पहले दस बार तो सोचेगा ही। यह तो सिर्फ एक उदाहरण था, यह बताने के लिए किस तरह देश के आईटी सेक्टर की कंपनियां तरक्की के सारे कीर्तिमान तोड़ती जा रही हैं। जो कंपनी अपने स्टाफ में नए युवक-युवतियों को रख रही है। इसका मतलब यह है कि उनका मुनाफा भी तेजी से बढ़ रहा है। टीसीएस को चालू साल की दूसरी तिमाही में 9,624 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ है। इसी साल की पहली तिमाही में कंपनी को 9008 करोड़ रुपये का फायदा हुआ था। इंफोसिस को चालू साल की पहली तिमाही में लगभग साढ़े पांच हजार करोड़ रुपए का लाभ हुआ। विप्रो और एचसीएल के भी शानदार नतीजे आए। लेकिन इतनी शानदार खबर को लेकर देश में कोई खास बात नहीं हुई। आजकल बात तो सिर्फ यह होती है कि कहां और कैसी हिंसा हुई या देश को क्षति पहुंची।

बहरहाल, कहने वाले तो यही कहते हैं कि टाटा समूह ने हाल ही में एयर इंडिया को 18 हजार करोड़ रुपए में अपनी फ्लैगशिप कंपनी टीसीएस के लगातार हो रहे भारी-भरकम मुनाफे के चलते ही खरीदा। टीसीएस के दो तिमाही के नतीजों के दम पर टाटा समूह एयर इंडिया को आसानी से खरीद सकता था। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस), इंफोसिस, विप्रो और एचसीएल की अभूतपूर्व उपलब्धि के आलोक में क्या आपने कभी सोचा कि कौन सी कंपनियां मुनाफा कमाने में अव्वल रहती हैं? किनकी साख बाजार में सबसे अधिक होती है? इन सवालों के जवाब खोजने मुश्किल नहीं है। ये सब इसलिए आगे बढ़ रही है क्योंकि इन्हें नेतृत्व बेहतरीन मिला हुआ है।

अब टीसीएस को ही लें। इसके मौजूदा चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर और मैनेजिंग डायरेक्टर राजेश गोपीनाथ के टीसीएस में शिखर पद को संभालने से पहले ही टीसीएस विश्व स्तरीय कंपनी बन चुकी थी। इसका श्रेय टाटा समूह के मौजूदा चेयरमेन एन.चंद्रशेखर को ही देना होगा। वे टीसीएस के 2009 में सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर बन गए थे। उन्होंने टीसीएस से ही अपने पेशेवर करियर का आगाज किया था। उन्हें टीसीएस स्वस्थ हालत में मिली थी। चंद्रशेखर ने टीसीएस में रहते हुए टाटा समूह के चेयरमेन रतन टाटा और टीसीएस के फाउंडर चेयरमेन फकीरचंद कोहली से लीडरशिप के गुणों को सीखा था। अगर आज भारत को सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दुनिया सबसे खास शक्तियों में से एक मानती है और भारत का आईटी सेक्टर 190 अरब डॉलर तक पहुंच गया है तो इसका क्रेडिट फकीरचंद कोहली जी को ही देना होगा। उन्होंने ही वस्तुतः देश के आईटी सेक्टर की नींव रखी था। कोहली और रतन टाटा के साथ काम करके चंद्रशेखर ने प्रौद्योगिकी जगत में नवोन्मेष और उत्कृष्टता की संस्कृति को संस्थागत स्वरूप देना सीखा।

तमिलनाडू के तंजावुर के रहने वाले शिव नाडार की अगर बात करें तो उन्होंने एचसीएल टेक्नोलॉजीज को अपने लंबे नेतृत्व के दौरान इसे महान सॉफ्टवेयर कंपनी के रूप में खड़ा किया। कहते हैं कि वे अपने सीईओज और मैनेजरों को हमेशा कुछ हटकर करने के लिए प्रेरित करते रहते थे। नाडार अपने अफसरों के सदैव साथ खड़े रहते हैं। वे उनका असफलता में भी कभी उनका साथ नहीं छोड़ते थे। इसलिए उनके मैनेजर भी बेहतरीन नतीजे लाकर देते। शिव नाडार ने एचसीएल टेक्नोलॉजीज की स्थापना की थी। अब करीब आधा दर्जन देशों में, 100 से ज्यादा कार्यालय, करीब एक लाख पेशेवर इंजीनियर उनके साथ जुड़े हैं। नोएडा में तो शिव नाडार के दफ्तरों की भरमार है। नाडार में जेआरडी टाटा का अक्स देखा जा सकता है। दोनों की शिक्षा और राष्ट्र निर्माण के प्रति सोच लगभग एक सी है।

अगर बात इंफोसिस लिमिटेड की करें तो इसका भले ही मौजूदा सीईओ सलिल पारेख हैं, पर इसकी बुनियाद चट्टान जैसी मजबूत है। इसकी नींव डाली थी एन.नारायणमूर्ति जैसे युगांतकारी उद्यमी ने। उन्हें इस बाबत सहयोग मिला नंदन नीलकेणी जैसे साथियों का। नंदन नीलकेणी आजकल भी इंफोसिस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। नारायणमूर्ति अपने जीवन के हर पल को सार्थक बनाने में जुटे ही रहते हैं। बेशक मानव जीवन क्षण भंगुर हो, फिर भी उसे इंसान को अपने सतकर्मों से ही सार्थक बनाने का अवसर ईश्वर प्रदान करते हैं । अंधकार का साम्राज्य चाहे कितना भी बड़ा हो पर एक कोने में पड़ा हुआ छोटा सा दीपक अपने जीवन के अंत समय तक अंधेरे से मुकाबला तो करता ही रहता है। अब देखिए कि फूलों का जीवन कितना छोटा सा होता है पर वो अपने सुगंध देने के धर्म का निर्वाह तो करते ही रहते है। नारायणमूर्ति ने अपने जीवन को फूलों और दीपक जैसा जाने-अनजाने में बना ही लिया है। वे सदैव पहले से भी बेहतर कर्म करते ही रहना चाहते हैं। उनका जीवन भी बेदाग रहा है। वे अपनी कंपनी को नई दिशा देते हुए कल्याणकारी योजनाओं के लिए मोटी राशि समाज कल्याण के कार्यों के लिये दान में देते रहे हैं। इसीलिए तो वे और उनकी इंफोसिस लगातार सफलता ही अर्जित कर रही है।

इन सबकी ही तरह ही विप्रो लिमिटेड के चेयरमेन अजीम प्रेमजी भी हैं। उनमें एक कमाल का गुण है। वे चुन-चुनकर एक से बढ़कर एक मैनेजरों को अपने साथ जोड़ लेते थे। अजीम प्रेमजी सिर्फ मेरिट पर विप्रो में पेशेवरों को अहम पद देते हैं। उनके कुशल निर्देशन के फलस्वरूप विप्रो को देश की चोटी की आईटी कंपनी का दर्जा प्राप्त है।

तो लब्बोलुआब यह है कि भारत की आईटी कंपनियों के आगे बढ़ने से जहां नौजवानों को रोजगार के भारी अवसर मिल रहे हैं, वहीं देश को भारी आयकर और विदेशी मुद्रा भी मिल रहा है। लेकिन वे ही कंपनियां आज के दिन अभूतपूर्व सफलता हासिल कर रही हैं, जिन्हें सशक्त नेतृत्व मिला हुआ है।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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