उज्जैन। महाकाल मंदिर के बाहर जो गाईड हैं उन्हें कार्ड दिए गए हैं और शिविर आयोजित कर प्रशिक्षण भी दिया गया। इस दौरान श्रद्धालुओं से अच्छा व्यवहार करने की बात कही गई। प्रशिक्षण शिविर के शुभारम्भ अवसर पर अतिथि के रूप मे पधारे विक्रम विश्वविद्यालय के पुरातत्वविद डॉ. रमण सोलंकी ने कहा कि पर्यटक के जिज्ञासा का समाधान गाईड का महत्वपूर्ण कर्तव्य है। उन्होंने मन्दिर के पुरातत्व महत्व पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि मन्दिर निर्माण में तीन शैलियों नागर, भूमिज और वैसर का प्रयोग हुआ है।
अनेक शिखर नागर शैली कहलाती है एक ही पत्थर के द्वारा शिखर तक मन्दिर निर्माण भूमिज शैली कहलाती है। बिना सिर वाला शिखर वैसर शैली कहलाती है। मन्दिर में लगे विभिन्न अभिलेखों का भी परिचय करवाया। अतिथि के रूप में माकड़ोन शासकीय महाविद्यालय की प्राध्यापिका डॉ. नीता जाधव ने शिवलिंग की वैज्ञानिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शिवलिंग निर्माण मे 13 करोड़ वर्ष का समय लगता है, इसी से नश्वरता से साक्षात्कार होता है। आपने प्रतीक चिन्हों को जैव विविधता का और विभिन्नता का दर्शन कराने वाला कहा। अतिथियों का स्वागत एवं आभार महाकालेश्वर वैदिक प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान के प्रभारी डॉ. पीयूष त्रिपाठी ने किया। जानकारी डॉ. त्रिपाठी द्वारा दी गई।
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