भोपाल। खंडवा जिले के संत सिंगाजी ताप विद्युत परियोजना (Sant Singaji Thermal Power Project) में कोयले का संकट खत्म नहीं हो रहा है। इससे मध्य प्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी लिमिटेड (Madhya Pradesh Power Generating Company Limited) को दोहरी चपत लग रही है। एक ओर जहां बिजली उत्पादन इकाइयां कम लोड पर चलाने से आधी क्षमता से बिजली का उत्पादन हो रहा है, वहीं कोयले की गुणवत्ता ठीक नहीं होने से बनने वाली बिजली 35 से 40 पैसे प्रति यूनिट महंगी पड़ रही है। मांग के अनुरूप कोयला उपलब्ध नहीं होने से परियोजना के फेज वन में कोयले का स्टाक (Stock) लगभग खत्म हो चुका है। ऐसे में सेकंड फेज के मौजूदा स्टाक का उपयोग किया जा रहा है।
इधर, जल विद्युत इकाइयों से बिजली उत्पादन बेहद कम होने से ताप विद्युत परियोजनाओं पर निर्भरता बढ़ गई है। 2520 मेगावाट क्षमता की सिंगाजी परियोजना में करीब 1200 मेगावाट (228 लाख यूनिट) बिजली का उत्पादन तीन इकाइयों से हो रहा है। एक इकाई बंद है। 1820 मेगावाट क्षमता की तीन इकाइयों को कोयले की कमी के कारण आधी क्षमता से चलाने से एमपीपीजीसीएल को बिजली बनाना महंगा पड़ रहा है। इकाई फुुल लोड पर नहीं चलने से प्रति यूनिट उत्पादन पर 600 से 620 ग्राम खपत की जगह 700 से 720 ग्राम कोयला लग रहा है। इससे बिजली लागत में 35 से 40 पैसे प्रति यूनिट बढ़ गई है।
जरूरत 35 हजार, उपलब्धता 20 हजार मीट्रिक टन से कम
संत सिंगाजी ताप परियोजना में चार इकाइयों को पूरी क्षमता से चलाने के लिए 30 से 35 हजार मीट्रिक टन कोयले की जरूरत है, जबकि अभी 15 से 20 मीट्रिक टन कोयले की ही आपूर्ति हो पा रही है। इससे मौजूदा स्टाक घट रहा है। परियोजना के फेज वन में दो यूनिट लगातार चलने से फिलहाल स्टाक लगभग खत्म हो गया है। वैसे फेज टू में अभी 56 हजार मीट्रिक टन कोयले का स्टाक होने से बिजली उत्पादन ठप होने जैसी कोई स्थिति नहीं है।
हाइडल पावर का योगदान नगण्य
खंडवा जिले में 2520 मेगावाट की सिंगाजी ताप विद्युत परियोजना के अलावा इंदिरा सागर बांध से एक हजार और ओंकारेश्वर बांध परियोजना से 520 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है, लेकिन इस वर्ष जिले में स्थित इंदिरा सागर बांध पूर्ण जल भराव क्षमता 262.13 मीटर से करीब ढाई मीटर खाली रहने से हाइडल (जल विद्युत परियोजना) इकाइयों से केवल अत्यधिक मांग होने पर ही बिजली उत्पादन किया जा रहा है। ऐसे में 24 घंटे में पीक अवर में ही दो से तीन घंटे टरबाइन चला कर बिजली बनाई जा रही है। शनिवार को इंदिरा सागर बांध परियोजना से करीब साढ़े चार लाख यूनिट बिजली का ही उत्पादन किया गया। यहां छोडे गए पानी से ओंकारेश्वर बांध की परियोजना से 0.04 मिलियन यूनिट बिजली बनाई गई। प्रदेश में वर्तमान में 10 हजार मेगावाट से अधिक बिजली की मांग को देखते हुए हाइडल का योगदान नगण्य है। ऐसे में बिजली की मांग से निपटने के लिए प्रदेश की विभिन्ना परियोजनाओं के अलावा केंद्रीय स्तर से मिलने वाली बिजली से संतुलन बनाने का प्रयास किया जा रहा है, वहीं निमाड़ में लोकसभा उपचुनाव की वजह से अभी बिजली कटौती जैसी कोई स्थिति नहीं है।
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