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अफगानिस्‍तान में गहराया संकट, नेतृत्‍व की आलोचना से डरा तालिबान, लगाया मीडिया पर प्रतिबंध

October 02, 2021

वाशिंगटन। तालिबान के सूचना व संस्कृति मंत्रालय (Taliban’s Ministry of Information and Culture) ने मीडिया रिपोर्टिंग पर पाबंदियां (restrictions on media reporting) लगा दी हैं। मीडिया को इस्लाम के खिलाफ किसी भी तरह की रिपोर्टिंग नहीं करने दी (Will not allow media to report against Islam) जाएगी। तालिबान नेतृत्व की अलोचना नहीं (Taliban leadership cannot be criticized) की जा सकेगी। ह्यूमन राइट वाच समूह में एशिया क्षेत्र की एसोसिएट डायरेक्टर पैट्रिशिया गोसमैन(Patricia Gosman, Associate Director of the Asia Region at Human Rights Watch Group) ने बताया, तालिबान(Taliban) के फरमान के मुताबिक किसी भी मसले पर मीडिया को संतुलित रिपोर्टिंग करनी होगी, जब तक तालिबानी अधिकारी प्रतिक्रिया नहीं देते उस मसले पर खबर नहीं दी जा सकती। वहीं, तालिबान ने महिला पत्रकारों के काम करने पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया है। इसके अलावा 7000 पत्रकारों को तालिबान ने कैद कर रखा है।
संयुक्त राष्ट्र में तालिबान दूत के रूप में नामित सुहैल शाहीन ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रतिनिधित्व करने की अनुमति के लिए आग्रह किया है। शाहीन ने कहा, गनी सरकार के गिर जाने के बाद उसका नामित दूत देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। शाहीन ने एक ट्वीट में कहा, फिलहाल देश की जनता के लिए एकमात्र और वास्तविक प्रतिनिधि इस्लामी अमीरात अफगानिस्तान है।


अफगान महिला अधिकार कार्यकर्ता ने दुनिया से लगाई मदद की गुहार
तालिबान राज का सबसे बड़ा खामियाजा अफगान महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। महिलाओं को न तो अकेले घर की दहलीज लांघने की इजाजत है और न घर के भीतर सुरक्षित होने का भरोसा बचा है।
इस बीच कुछ महिलाएं हिम्मत जुटाकर तालिबान के सामने अपने हक मांगने पहुंच तो जाती हैं, लेकिन तालिबान लड़ाके कभी उनकी रायफल के बट से पिटाई कर देते हैं, तो कभी हवा में गोलियां चलाकर महिलाओं को खौफजदा कर खुश होते हैं।
इस बीच वरिष्ठ महिला अधिकार कार्यकर्ता मेहबूबा सिराज अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अफगान महिलाओं की मदद की गुहार लगा रही हैं। पाझोक अफगान न्यूज के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के जेनेवा में आयोजित 48वें सत्र में सिराज ने वैश्विक समुदाय के सामने अफगान महिलाओं के हालात बयां करते हुए बताया कि तालिबान सरकार के महिला मामलों के मंत्रालय में कोई महिला मौजूद नहीं है, इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि वहां क्या हालात होंगे।
महिलाओं पर दिन-ब-दिन बढ़ते अत्याचारों के बीच बदला हुआ तालिबान जैसे जुमलों को हवा देना महिलाओं के घावों पर नमक छिड़कने जैसा है। उन्होंने कहा- ऐसा कुछ भी नया नहीं है, जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगानिस्तान में महिलाओं के हालात के बारे में नहीं जानता है, ऐसे में वहां जो भी हो रहा है वह दुनिया की जानकारी में है।

महिला शिक्षकों व छात्राओं को कॉलेज नहीं लौट पाने का डर
तालिबान की काबुल विश्वविद्यालय में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के बाद महिला शिक्षकों और छात्राओं में यह डर बढ़ता जा रहा है कि उन्हें फिर कभी स्कूल-कॉलेज नहीं जाने दिया जाएगा। न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए शरीफ हसन और कोरा एंजलबर्श लिखती हैं कि विश्वविद्यालयों में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी महिला अधिकारों को बड़ा झटका है। तमाम शिक्षक भी पढ़ाना छोड़ चुके हैं और देश से बाहर निकलना चाहते हैं।
एक अनुमान के मुताबिक आधे से ज्यादा शिक्षक देश छोड़कर जा चुके हैं, जबकि बड़ी तादात में शिक्षकों ने अपना पेशा छोड़ दिया है, या छोड़ने का विचार कर रहे हैं। काबुल विश्वविद्यालय के एक पूर्व शिक्षक व पत्रकार समी महदी जो फिलहाल अंकारा, तुर्की में रह रहे हैं, उनका कहना है कि वहां इतना भय का माहौल है कि पढ़ना-पढ़ना नामुमकिन है। एजेंसी

बच्चे आधुनिक शिक्षा से दूर, रट रहे कुरान की आयतें
तालिबान की वापसी के साथ काबुल के आसपास मदरसों में सुबह साढ़े चार बजे से ही बच्चों की कोलाहल सुनाई देने लगी है। तालिबान राज में आधुनिक शिक्षा की बजाए धर्म का ज्ञान दिया जा रहा है। बच्चे कुरान की आयतें रटते हुए सुनाई दे रहे हैं। मदरसे के अधिकतर लड़के गरीब परिवारों से हैं जिनका वास्ता आधुनिक शिक्षा से होने की उम्मीद कम है। बच्चों को अपना भविष्य तो नहीं पता लेकिन वे इतना जरूर जानते हैं कि मदरसे में धर्म की शिक्षा ही सबसे बड़ी शिक्षा है।

फौज की वापसी में जल्दबाजी से गनी सरकार का पतन:अमेरिकी जनरल
अमेरिकी सेना के केंद्रीय कमान के प्रमुख जनरल फ्रैंक मैकेंजी ने बुधवार को अमेरिकी संसद में प्रतिनिध सभा की सैन्य समिति को बताया कि अफगानिस्तान की अशरफ गनी सरकार का पतन तालिबान और ट्रंप प्रशासन के बीच हुए दोहा समझौते के कारण ही हुआ। जनरल ने कहा, अमेरिका ने एक तारीख तय कर दी और कह दिया कि हम जा रहे हैं। इससे अफगान सरकार और सेना मनोवैज्ञानिक स्तर पर खुद को असहाय महसूस करने लगी, जबकि उसे अमेरिका से सहायता की उम्मीद थी।
अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, मैकेंजी ने कहा, अगस्त के अंत तक पूर्ण वापसी के वाशिंगटन के फैसले के चलते जैसे ही अमेरिकी सैनिकों की संख्या 2,500 से कम हुई अमेरिका समर्थित अफगान सरकार धराशायी होने लगी।
29 फरवरी, 2020 को दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच समझौता हुआ कि मई 2021 तक अमेरिका अफगानिस्तान से पूरी तरह निकल जाएगा। इस समझौते के तहत तालिबान अमेरिकी सैनिकों पर हमला नहीं करेगा।
इसके बाद तालिबान और अफगान सरकार के बीच शांति समझौते को लेकर प्रयास किए जाने थे, लेकिन यह मकसद हल हो पाता, उससे पहले ही सत्ता बाइडन के हाथों में आ गई और नए राष्ट्रपति ने अमेरिकी सैनिकों की वापसी पर जोर देना शुरू कर दिया।
मैंकेजी ने कहा कि हमारे सैनिकों के बिना अफगान सरकार का धराशायी होना तय था, लेकिन बाइडन की तरफ से जिस तेजी से यह करने पर जोर दिया गया वह ताबूत में आखिरी कील साबित हुई।

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