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महंत नरेंद्र गिरि की मौत पर उठते सवाल

September 23, 2021

– सियाराम पांडेय ‘शांत’

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की मौत से प्रयागराज ही नहीं, पूरा प्रदेश और देश स्तब्ध है। उन्होंने आत्महत्या की या उनकी हत्या हुई, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा लेकिन राजनीतिक स्तर पर उनकी मौत की सीबीआई जांच की मांग उठ रही है। कोई हाईकोर्ट के वर्तमान न्यायाधीश की निगरानी में मामले की सीबीआई जांच चाहता है तो कोई डिवीजनल जज की निगरानी में सीबीआई जांच की मांग कर रहा है।

निश्चित रूप से नरेंद्र गिरि का कद बड़ा था। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष होने के नाते महामंडलेश्वरों के चयन में भी उनकी प्रभावी भूमिका होती है। साधु-समाज की आचार संहिता को लेकर भी उन्होंने कई बड़े और कड़े निर्णय किए थे। कई साधु-संतों को फर्जी घोषित करते हुए उन्होंने साधु-समाज से बहिष्कृत भी किया था। इन फर्जी घोषित किए जाने वाले संतों में आसाराम बापू, गोल्डेन बाबा, कंप्यूटर बाबा, ओम स्वामी सरीखे जाने कितने नाम थे। जब उनके शिष्य आनंद गिरि आस्ट्रेलिया में छेड़छाड़ के मामले में पकड़े गए तो उन्होंने उन्हें भी साधु विरोधी आचरण के लिए आश्रम से निकालने में विलंब नहीं किया। ऐसा दृढ़ निश्चयी संत आत्महत्या करेगा, यह बात किसी के भी गले नहीं उतर रही है।

साधु समाज भी यह मानने को तैयार नहीं है कि नरेंद्र गिरि जैसा जिंदादिल संत आत्महत्या भी कर सकता है और अगर उन्होंने आत्महत्या की भी हो तो उसकी वास्तविक वजह क्या हो सकती है ?- यह जानने की व्यग्रता हर आम और खास में है। साधु-संतों और उन्हें जानने वालों का मानना है कि वे 7-8 पेज का सुसाइड नोट लिख ही नहीं सकते। उनके शिष्यों और अनुयाइयों का भी मानना है कि महंत नरेंद्र गिरि ने बमुश्किल हस्ताक्षर करना सीखा था लेकिन उनकी बहन उर्मिला सिंह की मानें तो वे 12वीं तक की पढ़ाई के बाद संन्यासी बने थे। कोई बालक बहुत कमजोर भी हो तो कम से कम उसे चिट्ठी-पत्री लिखने और पढ़ने के लिए किसी सहारे की जरूरत तो नहीं पड़ती। इससे इस बात का तो पता चलता ही है कि उनके अध्ययन को लेकर भी गलतफहमी है। या तो उनकी बहन झूठ बोल रही हैं या उनके जानने-समझने वाले।

महंत नरेंद्र गिरि अपने हालिया बयानों को लेकर भी चर्चा के केंद्र में रहे थे। एक माह पहले ही उन्होंने तालिबान का समर्थन करने वाले मुस्लिम धर्मगुरुओं को गद्दार बताया था। उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल में डालने की बात कही थी। शायर मुनव्वर राना ने जब तालिबान का समर्थन किया था तब उन्होंने कहा था कि लगता है कि आपका भारतीय संविधान और भारत के लोगों पर भरोसा नहीं रह गया है। इसलिए आप भारत छोड़कर तालिबान के साथ चले जाएं।

बहुजन समाज पार्टी के ब्राह्मण सम्मेलन को लेकर उन्होंने प्रतिक्रिया दी थी कि पहले जूते मारने की बात करने वाली पार्टी को अब कैसे ब्राह्मणों के सम्मान की बात याद आई ? 6 अगस्त 2020 को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर के भूमि पूजन को लेकर एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी के बयान पर उनकी प्रतिक्रिया थी कि भारत हिंदू राष्ट्र था और हिंदू राष्ट्र ही रहेगा। पाकिस्तान मुस्लिम बहुसंख्यक होने के नाते अगर मुस्लिम राष्ट्र हो सकता है तो भारत हिंदू बहुसंख्यक होने के बाद भी हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं हो सकता ? लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ के बयान का समर्थन कर भी महंत नरेंद्र गिरि विवादों की जद में आ गए थे। उन्होंने कहा था कि अब समय आ गया है कि लव जिहादियों का ‘राम नाम सत्य’ हो जाना चाहिए।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इच्छा के बावजूद महंत नरेंद्र गिरि ने कांवड़ यात्रा स्थगित करने की सलाह दी थी। उन्होंने कांवड़ियों से आग्रह किया था कि वे अपने पास के शिवलिंग पर ही सावन भर जलाभिषेक करें। उनका कहना था कि कोरोना की दूसरी लहर खत्म होने की ओर तो है पर तीसरी लहर के आने की आशंका भी है। ऐसे में पहले जीवन की सुरक्षा का ध्यान रखा जाना चाहिए। जो व्यक्ति देश को लेकर इतना संवेदनशील और बेबाक था, वह अपनी किसी परेशानी को अपने दिल में जज्ब किए रहेगा, यह कैसे हो सकता है ? सुसाइड नोट के आधार पर उनके शिष्य आनंद गिरि को हरिद्वार स्थित आश्रम से गिरफ्तार कर लिया गया था। पुजारी आद्या तिवारी और उनके बेटे संदीप तिवारी को भी हिरासत में ले लिया गया था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि इस मामले में जो भी दोषी होगी, बख्शा नहीं जाएगा।

हालांकि उनके शिष्य आनंद गिरि ने भी कहा है कि यह आत्महत्या का नहीं बल्कि हत्या का मामला है। उनकी लिखावट की जांच होनी चाहिए। इस मामले में गहरी साजिश हो रही है। कांग्रेस और सपा नेता जिस तरह आरोप लगा रहे हैं कि योगी राज में संन्यासी भी सुरक्षित नहीं हैं, वह शायद इसलिए कि योगी आदित्यनाथ भी संत हैं। जब कभी संतों पर हमले हुए हैं, उनकी हत्याएं हुई हैं तब कांग्रेस और सपा ने समवेत रूप से योगी सरकार की आलोचना की है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि यह संवेदनशील मामला है, इसलिए इस मुद्दे पर भ्रामक बयानबाजी से बचना चाहिए।

पुलिस के एक बड़े अधिकारी के मुताबिक सुसाइड नोट में एक सीडी का जिक्र है। इस सीडी के आधार पर उन्हें परेशान किया जा रहा था। विपक्ष यह जानने को बेताब है कि उस सीडी में ऐसा क्या था जिससे कि नरेंद्र गिरि को परेशान होकर ऐसा आत्मघाती कदम उठाना पड़ा। इससे पहले भी एक शिष्य की शादी में पैसे लुटाने की सीडी उनके शिष्य आनंद गिरि ने जारी की थी। यही नहीं, उन्होंने प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और जांच एजेंसियों को मठ की जांच कराने के लिए पत्र भी लिखा था।

पुलिस महंत नरेंद्र गिरि की कॉल डिटेल के जरिए भी पुलिस यह जानने में जुटी है कि उन्हें कौन-कौन लोग परेशान कर रहे थे ? वह आनंद गिरि और महंत नरेंद्र गिरि के बीच समझौता कराने वाले सपा के पूर्व मंत्री इंदु प्रकाश से भी पूछताछ करने वाली है। आनंद गिरि ने कुछ साल पहले अपने गुरु नरेंद्र गिरि पर गद्दी की 8 बीघा जमीन 40 करोड़ में बेचने का आरोप लगाया था, जिसके बाद विवाद गहरा गया था। उन्होंने नरेंद्र गिरि पर अखाड़े के सचिव की हत्या करवाने का आरोप भी लगाया था।

वर्ष 2018 में ऑस्ट्रेलिया में महिलाओं से छेड़छाड़ के आरोप में फंस चुके आनंद गिरि ने यह आरोप भी लगाए थे कि उन्हें छुड़ाने के नाम पर नरेंद्र गिरि ने कई बड़े लोगों से 4 करोड़ रुपए वसूले थे। हालांकि, कुछ महीने पहले गुरु-चेले के बीच समझौता भी हो गया था। तब हरिद्वार से प्रयागराज पहुंचे आनंद गिरि ने अपने गुरु स्वामी नरेंद्र गिरि के पैरों में गिरकर माफी मांग भी ली थी। महंत नरेंद्र गिरि ने भी आनंद गिरि को माफ कर दिया था।

अखिल भारतीय संत समिति और गंगा महासभा के महासचिव स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि सर्वदा विवादों से घिरे रहने वाले नरेंद्र गिरि जी हस्ताक्षर कर लें, यही बड़ी बात थी। सुसाइड नोट लिखना तो उनके बस की बात ही नहीं थी। ऐसे में उनकी हत्या कर किसी को फंसाने के लिए सुसाइड नोट तो नहीं लिखा गया है। उन्हें, इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से और यूपी-उत्तराखंड पुलिस से पर्याप्त सुरक्षा भी मिली थी। वह आत्महत्या कर लें, ऐसे कमजोर इंसान नहीं थे। श्री अन्नपूर्णा मठ मंदिर, काशी के महंत शंकर पुरी ने शासन और प्रशासन से महंत नरेंद्र गिरि की मौत का सच सामने लाने की मांग की है।

वाराणसी के नरहरिपुरा स्थित सिद्धपीठ पातालपुरी मठ के महंत बालक दास ने कहा है कि महंत नरेंद्र गिरि बेहद ही मजबूत हृदय के परोपकारी महात्मा थे। समाज को दिशा दिखाने वाला संत आत्महत्या नहीं कर सकता है। उनकी मौत एक सोची-समझी गहरी साजिश लगती है।

काशी विद्वत परिषद ने कहा है कि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ने किन परिस्थितियों में यह हृदयविदारक निर्णय लिया, यह जानने के लिए संपूर्ण संत समाज व्यग्र है। उन्होंने आत्महत्या की या उन्हें विवश किया गया या हत्या को आत्महत्या का चोला पहनाने का षड्यंत्र किया गया है, इसका पता लगाने के लिए घटना की न्यायिक जांच होनी चाहिए। सुसाइड नोट को लेकर जिस तरह सवाल उठ रहे हैं, उसकी भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। यह मामला राजनीति का नहीं, यह जानने-समझने का है कि पुराने विवादों के सहारे कोई अपना उल्लू तो सीधा तो नहीं कर रहा है।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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