मुंबई की एक स्पेशल कोर्ट ने स्कूल के एक कर्मचारी को 11 साल की नाबालिग के साथ रेप मामले में दोषी मानते हुए 15 साल जेल की सजा सुनाई है। यह पूरा मामला दक्षिण मुंबई के म्युनिसिपल स्कूल का है। हालांकि बाद में पीड़िता के अभिभावक ने आरोपी के समर्थन में एक पत्र भी लिखा था। इसके बावजूद कोर्ट ने दोषी के खिलाफ पूरी सख्ती दिखाते हुए फैसला लिया। पीड़िता ने अपनी मां और बहन को पहले ही खो दिया था। इस घटना के बाद से उसके पिता ने भी नाबालिग का साथ छोड़ दिया। फिलहाल वह अपनी एक चाची के साथ रहती है।
वहीं उसके एक छोटे भाई की देखभाल दूसरी चाची कर रही है। यह पूरी घटना फरवरी-मार्च 2015 की है। जब नाबालिग लड़की की चाची ने उसके शरीर पर चोट के निशान देखी थी। हालांकि लड़की ने कुछ भी बताने से मना कर दिया। कुछ दिनों बाद चाची ने एक बार फिर से कुछ वैसे ही निशान देखे, लेकिन नाबालिग लड़की ने फिर से जवाब टाल दिया।
इसके बाद 25 मार्च को जब नाबालिग लड़की स्कूल से लौटी तो वह ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। आखिरकार चाची ने किसी तरह लड़की से सारा मामला जान लिया। लड़की ने बताया कि स्कूल में स्वीपर के तौर पर काम करने वाला एक शख्स उसके साथ कई बार रेप कर चुका है। इतना ही नहीं उसने धमकी भी दी है कि अगर उसने इस बारे में किसी से कुछ कहा तो वह लड़की की जान ले लेगा।
नाबालिग लड़की के चाची द्वारा शिकायत दर्ज कराने के बाद पुलिस ने इस मामले में आरोपी पंकज अर्जुनभाई कोली को गिरफ्तार किया था। हालांकि 32 साल के पंकज ने सभी आरोप को खारिज कर दिया। जिसके बाद उसे ट्रायल पर रखा गया।
कोर्ट में पेशी के दौरान पीड़िता ने इस शख्स की पहचान की और मेडिकल ऑफिसर ने भी इस बात की पुष्टि की नाबालिग लड़की के साथ कई बार रेप की घटना को अंजाम दिया गया था। ट्रायल के दौरान आरोपी ने कोर्ट को बताया कि वह स्वीपर नहीं माली है। हालांकि कोर्ट ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि वह क्या करता था। क्योंकि आरोपी ने माना था कि वह उसी स्कूल से जुड़ा हुआ है और वहीं काम करता है।
आरोपी ने कोर्ट को यह भी बताया कि घटना वाले दिन यानी कि 25 मार्च को वह स्कूल में नहीं था। हालांकि कोर्ट ने यह नोटिस किया कि मामला एक दिन का नहीं है और आरोपी ने सिर्फ एक दिन के बारे में कोई बात स्वीकार नहीं की है।
कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपी 25 मार्च को स्कूल में नहीं भी था तो इससे यह साबित नहीं होता कि वह कैंपस स्थित अपने रूम में नहीं था। दूसरा कागजात के तौर पर भी वह अपनी छुट्टी की बात कहीं साबित नहीं कर सका है। इससे पहले कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर घटना वाले दिन वह स्कूल में उपस्थित नहीं भी था तो यह साबित नहीं होता कि मौका-ए-वारदात पर वह उपस्थित नहीं था।
कोर्ट ने आरोपी को पूरे मामले में दोषी पाया और फैसला एक दिन के लिए सुरक्षित रखा। इसी बीच आरोपी और पीड़िता की चाची कोर्ट में समझौते के लिए पहुंचे। वहीं आदेश पढ़े जाने से पहले एक बार फिर जब कोर्ट में सख्त से सख्त सजा की मांग की जा रही थी तो आरोपी ने अपनी पत्नी और दो साल के बच्चे की देखरेख का हवाला दिया। उसने पीड़िता की चाची द्वारा समझौते वाले लेटर का भी हवाला दिया। जिसमें कहा गया था कि पीड़िता ने गलती से आरोपी का नाम ले लिया। यह वह शख्स नहीं है, जिसने घटना को अंजाम दिया।
इसके जवाब में कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा इस मामले में कोई भी आवेदन नहीं दिया गया है। कोर्ट ने माना कि आरोपी के खिलाफ जो भी मामले साबित हुए हैं, वह बेहद गंभीर हैं। जब यह घटना घटी तो पीड़िता की उम्र महज 11 साल थी। वह पूरी जिंदगी यह मानसिक ट्रॉमा झेलेगी। इसलिए दोषी को सजा उसके गुनाह के बराबर ही मिलनी चाहिए।
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