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यूपी चुनाव और कसौटी पर हिंदुत्व मॉडल

September 20, 2021

– विकास सक्सेना

देश की राजनीति की दिशा तय करने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के लिए छह महीनों से भी कम समय बचा है। लेकिन अगले साल होने वाले इन चुनावों के नतीजे भाजपा और संघ की भी राजनैतिक दिशा तय करने वाले साबित हो सकते हैं। साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के हिसाब से सबसे संवेदनशील इस राज्य के जनादेश के आधार पर इस बात का अनुमान आसानी से लगाया जा सकेगा कि भाजपा के कोर मतदाताओं को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का प्रखर हिन्दुत्व ज्यादा पसंद आ रहा है या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपेक्षाकृत नरम हिन्दुत्व।

राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के उभार से पहले भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों में घिरी कांग्रेस सरकार जनता की नजरों से बुरी तरह उतर चुकी थी। इसके अलावा हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा गढ़ने और साम्प्रदायिक हिंसा बिल जैसे प्रयासों के कारण बहुसंख्यक हिन्दू समाज कांग्रेस से खासा नाराज था। इसके बाद 2013 के मुजफ्फर नगर दंगों के दौरान उत्तर प्रदेश की सपा सरकार की पक्षपातपूर्ण कार्रवाइयों से हिन्दू समाज बुरी तरह आहत हुआ। कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों से नाराजगी तथा नरेंद्र मोदी की हिन्दुत्ववादी छवि के कारण बहुसंख्यक हिन्दू मतदाता एक बार फिर ज्यादा मजबूती से भाजपा के खेमे में आ गए। नतीजतन देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारें बन गईं।

लेकिन विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों के नतीजों से एक बात साफ दिख रही है कि मतदाताओं का जितना समर्थन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हासिल है उतना क्षेत्रीय नेतृत्व को नहीं। इसीलिए भाजपा को लोकसभा चुनाव में मिले वोट उसके व्यापक जनाधार वाले राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिले वोटों की तुलना में भी 10 से 20 प्रतिशत तक ज्यादा होते हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को लोकसभा चुनाव के मुकाबले तकरीबन 12 प्रतिशत कम वोट मिले। उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों के आंकड़े बताते हैं कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में 41.3 प्रतिशत और 49.56 प्रतिशत वोट हासिल करने वाली भाजपा 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में 39.67 प्रतिशत वोट हासिल कर सकी।

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में भाजपा और संघ के मुख्य एजेण्डा से जुड़े मुद्दों को लेकर कदम नहीं बढ़ाया लेकिन पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पहली बार सीमा पार करके सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक करके देश की सामरिक नीतियों में बदलाव का स्पष्ट संदेश पाकिस्तान और दुनिया को दिया। इसके अलावा खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए उन्होंने कोई अनावश्यक अतिरिक्त प्रयास भी नहीं किए। इसीलिए नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पहले के मुकाबले बढ़ गई। लोकसभा चुनाव 2019 में पहले के मुकाबले ज्यादा सीटें जीत कर सत्ता में पहुंचे मोदी ने सरकार बनने के बाद चंद महीनों के भीतर ही धारा 370 को निष्प्रभावी करते हुए धारा 35ए को समाप्त कर दिया, धार्मिक प्रताड़ना का शिकार गैर मुस्लिमो को भारत की नागरिकता प्रदान करने के लिए नागरिकता संशोधन कानून बना दिया। कट्टरपंथियों और शरीयत की परवाह किए बिना मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के खिलाफ कानून बना दिया।

प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी की कार्यशैली में लोग स्पष्ट अन्तर महसूस कर रहे हैं। सीएए के खिलाफ होने वाले शाहीन बाग जैसे प्रदर्शन या किसान आंदोलन के नाम पर लाल किला पर अराजकता करने वालों के खिलाफ मोदी सरकार कार्रवाई से बचती रही और न्यायालय के आदेश की प्रतीक्षा करती रही जबकि योगी सरकार ने सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान हुए नुकसान की भरपाई के लिए आन्दोलनकारियों की सम्पत्ति तक कुर्क करवा दी। किसान नेता जुबानी जमा खर्च तो करते रहे लेकिन लखनऊ बॉर्डर पर दिल्ली बार्डर जैसी अराजकता फैलाने की हिम्मत नहीं जुटा सके।

योगी सरकार ने भारत माता को डायन कहने वाले आजम खां के पूरे परिवार को जेल में ठूंस दिया। योगी सरकार ने वैचारिक और राजनैतिक विरोधी हों या शत्रु उन्हें उनकी ही भाषा में जवाब दिया है। माफिया डॉन मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद और विकास दुबे जैसे लोगों पर बिना भेदभाव के कार्रवाई की गई। आलोचनाओं को दरकिनार कर इलाहाबाद, फैजाबाद के नाम बदलकर सनातन संस्कृति के अनुरूप प्रयागराज और अयोध्या कर दिया।

इस तरह इस बार के विधानसभा चुनाव में विरोधियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देने वाला प्रखर हिन्दुत्व होगा। यदि विधानसभा चुनावों में भाजपा लोकसभा चुनावों के मुकाबले अधिक मत हासिल कर लेती है या विधानसभा चुनावों के मुकाबले 10 प्रतिशत के अन्तर में उल्लेखनीय कमी कर लेती है तो पूरी संभावना है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की नीतियों में परिवर्तन होगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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