– प्रो. संजय द्विवेदी
भारत जैसे महादेश को संबोधित करना आसान नहीं है। इस विविधता भरे देश में वाक् चातुर्य से भरे विद्वानों, राजनेताओं, प्रवचनकारों और अदीबों की कमी नहीं है। अपनी वाणी से सम्मोहित कर लेने वाले अनेक विद्वानों को हमने सुना और परखा है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की क्षमताएं उनमें विलक्षण हैं। वे हमारे समय के अप्रतिम संचारकर्ता हैं। संचार का विद्यार्थी होने के नाते मैं उनकी तरफ बहुत विश्लेषणात्मक दृष्टि से देखता हूं, किंतु वे अपनी देहभाषा, भाव-भंगिमा, शब्दावली और वाक् चातुर्य से जो करते हैं, उसमें कमियां ढूंढ़ पाना मुश्किल है। उनका आत्मविश्वास और शैली तो विलक्षण है ही, वे जो कहते हैं उस बात पर भी सहज विश्वास करने का मन होता है। मोदी सही मायने में संवाद के महारथी हैं। वे जनसभाओं के नायक हैं तो ट्विटर जैसे नए माध्यमों पर भी उनकी तूती बोलती है। पारंपरिक मंचों से लेकर आधुनिक सोशल मीडिया मंचों पर उनकी धमाकेदार उपस्थिति बताती है कि संवाद और संचार को वे किस बेहतर अंदाज में समझते हैं।
गुजरात के एक छोटे से कस्बे बड़नगर में पले-बढ़े नरेंद्र मोदी में ऐसा क्या है जो लोगों को सम्मोहित करता है ? उनकी राजनीतिक यात्रा भी विवादों से परे नहीं रही है। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें जिस तरह निशाना बनाकर उनकी छवि मलिन करने के सचेतन प्रयास हुए, वे सारे प्रसंग लोक विमर्श में हैं। बावजूद इसके वे हिंदुस्तानी समाज के नायक बने हुए हैं तो इसके पीछे उनकी संप्रेषण कला और देहभाषा का अध्ययन प्रासंगिक हो जाता है। नरेंद्र मोदी देश के ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो कभी सांसद नहीं थे और पहली बार लोकसभा पहुंचकर देश के प्रधानमंत्री बने। 2014 के आम चुनाव की याद करें तो देश किस तरह निराशा और अवसाद से भरा हुआ था। लोग राजनीति और राजनेताओं से उम्मादें छोड़ चुके थे। अन्ना आंदोलन से एक अलग तरह का गुस्सा लोगों के मन में पनप रहा था। तभी एक आवाज गूंजती है ‘मैं देश नहीं झुकने दूंगा।’ दूसरी आवाज थी ‘अच्छे दिन आने वाले हैं।’ ये दो आवाजें थीं नरेंद्र मोदी की, जो देश को एक विकल्प देने के लिए मैदान में थे।
राजनीति में आश्वासनपरक आवाजों का बहुत मतलब नहीं होता, क्योंकि राजनीति तो सपनों और आश्वासनों के आधार पर ही की जाती है। किंतु नरेंद्र मोदी ने इस दौर में जो कुछ कहा उसे देश ने बहुत ध्यान से सुना। उनका दल लंबे समय से सत्ता से बाहर था और वे अपने दल की ओर से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बनाए जा चुके थे। जाहिर है अवसाद और निराशा से भरी जनता को एक अवसर था परख करने का। मोदी इस अवसर का लाभ उठाते हैं और जनता के मन में भरोसा जगाने का प्रयास करते हैं। वे लगातार अपनी सभाओं में कहते हैं कि वे ही इस देश को उसके संकटों से उबार सकने की क्षमता से लैस हैं। जनता मुग्ध होकर उनके भाषणों को सुनती है। अपनी अप्रतिम संवाद कला से वे लोगों में यह भरोसा जगाने में सफल हो जाते हैं कि वे कुछ कर सकते हैं।
2014 में मोदी सत्ता में आते हैं और संचार के सबसे प्रभावकारी माध्यम को साधते हैं। वे आकाशवाणी पर ‘मन की बात’ के माध्यम से लोगों से संवाद का अवसर चुनते हैं। यानी उनका संवाद अवसर और चुनाव केंद्रित नहीं है, निरंतर है। उनमें एक सातत्य है। बदलाव के लिए, परिवर्तन के लिए, लोकजागरण के लिए। वे मन की बात को राजनीतिक विमर्शों के बजाए लोक विमर्शों का केंद्र बनाते हैं। जिसमें जिंदगी की बात है, सफाई की बात है, शिक्षा और परीक्षा की बात है, योग की बात है। मन की बात के माध्यम से वे खुद को एक ऐसे अभिभावक की तरह पेश करने में सफल होते हैं, जिसे देश और देशवासियों की चिंता है। संवाद की यही सफलता है और यही उसका उद्देश्य है। अपने लक्ष्य समूह को निरंतर अपने साथ जोड़े रखना मोदी की संवाद कला की दूसरी सफलता है। करोना संकट में भी हमने देखा कि उनकी अपीलों को किस तरह जनमानस ने स्वीकार किया, चाहे वे करोना वारियर्स के सम्मान में दीप जलाने और थाली बजाने की ही क्यों न हों। यह बातें बताती हैं कि अपने नायक पर देश का भरोसा किस तरह कायम है।
मोदी अपनी देहभाषा से कमाल करते हैं। कई बार चौंकाते भी हैं। देश की गहरी समझ भी इसका बड़ा कारण है, यही कारण है वे देश के जिस हिस्से में होते हैं वहां की स्थानीय बोली, वस्त्रों और प्रतीकों का सचेत इस्तेमाल करते हैं। इसके साथ ही उनकी पोशाकें, उनका हाफ कुर्ता, जैकेट्स आज एक तरह से स्टाइल स्टेटमेंट है। उनका अनुसरण कर नौजवान आज खद्दर और सूती कपड़ों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। हम विश्लेषण करें तो पाते हैं कि उनका समर्पित जीवन और ईमानदारी से उनकी वाणी का भी एक रिश्ता है। जब हम सिर्फ बोलते हैं तो उसका असर अलग होता है। किंतु अगर हम जो बोलते हैं उसमें कृतित्व भी शामिल हो तो बात का असर बढ़ जाता है। नरेंद्र मोदी अपनी असंदिग्ध ईमानदारी, राष्ट्रनिष्ठा और देशभक्ति के प्रतीक हैं। उनका समूचा जीवन राष्ट्र के लिए अर्पित है। ऐसा व्यक्ति जब कोई बात कहता है तो उसका असर बहुत ज्यादा होता है। क्योंकि आपकी वाणी को आपके जीवन का समर्थन है।
सिर्फ देश की बात करना और देश के लिए जीना दो बातें हैं। मुझे लगता है जीवन और कर्म में एक रूप होने के नाते मोदी बाकी राजनेताओं से बहुत आगे निकल जाते हैं। क्योंकि उनकी राष्ट्रनिष्ठा पर सबको भरोसा है, इसलिए उनकी वाणी पर भी सहज विश्वास आता है। इस तरह उनकी वाणी ‘भाषण’ न होकर ‘हृदय से हृदय के संवाद’ में बदल जाती है। लोंगों को भरोसा है कि वे हमारी ही बात कर रहे हैं और हमारे लिए ही कर रहे हैं। मोदी ने अपनी साधारण पृष्ठभूमि की बात कभी छिपाई नहीं, जब भी उनकी साधारण स्थितियों का मजाक बनाया गया तो उसे भी उन्होंने एक सफल अभियान में बदल दिया। ‘चाय पर चर्चा’ का कार्यक्रम किस तरह बना, उसके संदर्भ हम सबके ध्यान में हैं।
नरेंद्र मोदी सही मायने में सामान्य जनों में भरोसा जगाते हैं कि अगर संकल्प हों, इच्छाशक्ति हो तो व्यक्ति क्या नहीं कर सकता। यह एक बात लोगों को उनसे कनेक्ट करती है। अनेक राजनेता हैं, जो साधारण पृष्ठभूमि से आए हैं। किंतु उनका या तो अपनी जड़ों से उनका रिश्ता टूट गया है या वे उन विथिकाओं को याद नहीं करना चाहते। जबकि नरेंद्र मोदी अपनी जड़ों को नहीं भूलते वे हमेशा उसे याद करते हैं और खुद पर भरोसा करते हैं। यही कारण है उनका कनेक्ट सीधा जनता से बनता है। वे प्रधानमंत्री होकर भी अपने से नजर आते हैं। संचार, संवाद और पोजिशिनिंग की यह कला उनमें सहज है। बिना जतन के भी वे इन सबको साधते हैं और साधते रहेंगे क्योंकि आसमान पर होकर भी माटी की सोंधी महक उन्हें जड़ों से जोड़े रखती है। इसलिए उनका संवाद दिलों को जोड़ता है, देश को भी।
(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक हैं।)
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