काबुल। अफगानिस्तान में तालिबान राज के साथ ही स्वास्थ्य सेवाएं बेपटरी हो चुकी हैं। डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के नाम से मशहूर फ्रांसीसी संस्था मेडिसिन्स सैन्स फ्रंटियर्स (एमएसएफ) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि अफगानिस्तान में जल्द ही लोग गोली और बम नहीं दवा की एक छोटी टिकिया के अभाव में दम तोड़ते नजर आएंगे।
एमएसएफ की मार्टिन फ्लोकस्त्रा ने कहा कि युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में हालात पहले से ही खराब थे। तालिबान राज के बाद अमेरिका समेत अन्य देशों ने जब से अपना हाथ पीछे खींचा है तब से स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी हैं। डॉक्टरों और दूसरे स्वास्थ्यकर्मियों को कई महीने से वेतन नहीं मिला है। अब तालिबान की वापसी के बाद वेतन मिलने की कोई संभावना भी नहीं दिख रही है। मुश्किल ये है कि डॉक्टर इस हालात में भी इलाज करने को तैयार हैं लेकिन जरूरी दवाएं और अन्य उपकरणों की आपूर्ति न होने के कारण गंभीर मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
दिनभर बजते रहते हैं इमरजेंसी सायरन
इलाज की व्यवस्था इस कदर ध्वस्त हो चुकी है कि दिनभर इमरजेंसी सायरन बजते रहते हैं। सड़कों पर एम्बुलेंस मरीजों को लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक दौड़ती रहती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), एमएसएफ, अफगान रेड क्रीसेंट और रेड क्रॉस को भी आपात स्थिति में मदद के लिए अपील की जा रही है लेकिन सभी संस्थाएं मौजूदा हालात के आगे बेबस और लाचार हैं।
डब्ल्यूएचओ की 90 फीसदी क्लीनिक बंद
डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी है कि हालात लगातार खराब हो रहे हैं। स्वास्थ्य योजनाएं ठप होने की कगार पर हैं। इससे लाखों की संख्या में बेकसूर लोग लोग स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हो जाएंगे। नतीजे में बिना इलाज लोग मारे जाएंगे। डब्ल्यूएचओ ने बताया है कि अफगानिस्तान में मौजूद 2300 हेल्थ क्लीनिक में से 90 फीसदी बंद हो चुके हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं पर खौफ का पहरा
एमएसएफ की रिपोर्ट के अनुसार लोग रात के समय कोई गंभीर रूप से बीमार हो जाए तो अस्पताल जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। बूस्ट अस्पताल में भर्ती एक मरीज के तीमारदार का कहना है कि रात को किसी की तबीयत अचानक खराब हो जाए तो अस्पताल जाने की हिम्मत नहीं होती है, भले ही मरीज की जान चली जाए। जिंदगी की उम्मीद सुबह होने पर ही होती है पर अब दवा, जांच और इलाज मुश्किल हो गया है।
इलाज में देरी बच्चों की मौत की वजह
एमएसएफ ने बताया है कि वर्ष 2019 के पहले छह महीने में जिन 44 फीसदी बच्चों की मौत बूस्ट अस्पताल में भर्ती होने के 24 घंटे के भीतर हुई, उसका प्रमुख कारण अस्पताल पहुंचने में देरी थी। यही नहीं, हेरात प्रांत के 89 फीसदी मरीजों ने तो आर्थिक संकट के कारण डॉक्टरी सलाह तक लेना बंद कर दी थी। अब फिर से वही स्थिति बनती दिख रही है।
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