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बचपन में टीचर बने ये 6 बच्चे ,जानिए इनकी कहानी

September 05, 2021

नई दिल्ली। भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस (Teacher’s Day) के रूप में मनाया जाता है। एक शिक्षक का अर्थ आमतौर पर किसी ऐसे व्यक्ति से लगाया जाता है, जिसके पास अपने क्षेत्र में ज्ञान का भंडार हो या वह अनुभवी हो। इसका सीधा सा अर्थ है कि कोई ऐसा व्यक्ति जिसने उम्र के कई पड़ावों में ज्ञानर्जन किया है, वही असली शिक्षक है। हालांकि, धीरे-धीरे यह धारणा या तो बदल रही है या इसे चुनौती दी जा रही है। इसी धारणा को बदलने के लिए पेश है छह युवाओं के नाम जिन्होंने कम उम्र के बावजूद अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और पूरी दुनिया को सीख देकर खुद को शिक्षक के तौर पर पेश किया है।

पायल जांगीड
राजस्थान (Rajasthan) की रहने वाली पायल जांगीड (Payal Jangid) भारत के उन कुछ लोगों में शामिल हैं, जिन्हें बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की तरफ से पुरस्कार मिला है। दो साल पहले ही उन्हें अमेरिका (USA) के न्यूयॉर्क (New York) में रखे गए इवेंट में ग्लोबल चेंजमेकर (Global Changemaker) के सम्मान से नवाजा गया था। पायल को यह पुरस्कार उनके बाल श्रम और बाल विवाह को रोकने से जुड़े अभियानों के लिए दिया गया था। बताया जाता है कि इन सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ने का पायल का जज्बा किसी बाहरी घटना को देखकर नहीं, बल्कि अपने ही अनुभवों के कारण आया था। दरअसल, जांगीड ने पहले अपनी और फिर अपनी बहन के बाल विवाह किए जाने के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। अपने साथ हुई इसी घटना के बाद पायल ने बच्चों के बचपन को बचाने का बीड़ा उठाया। बाद में पायल ने अपने क्षेत्र में बाल पंचायत शुरू की, जिसमें आसपास के गांव के बच्चों का जुटना भी शुरू हो गया। यह काम वे बाल पंचायत ग्राम पंचायत के साथ मिलकर काम करती है और बच्चों के मुद्दे समाज में उठाती है। पायल को अपनी इन्हीं कोशिशों के लिए 2013 में बाल अधिकार के विश्व बाल पुरस्कार (World Children’s Award) में ज्यूरी सदस्य के तौर पर भी शामिल किया था ।

ओमप्रकाश गुर्जर
ओम प्रकाश गुर्जर (Om Prakash Gurjar) की कहानी भी काफी हद तक पायल जांगीड (Payal Jangid) की तरह ही है। राजस्थान में पले-बढ़े ओमप्रकाश को बचपन में ही बालश्रम (Child labor) के दलदल में धकेल दिया गया था। पांच साल से लेकर आठ साल की उम्र तक ओम ने दुकानों पर काम कर के गुर्जर किया, लेकिन इसके बाद में उन्होंने बालश्रम की चपेट में आने वाले बच्चों को निकालने का फैसला किया। अपनी इन्हीं कोशिशों के चलते ओमप्रकाश को महज 14 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार (International Children’s Peace Prize) से नवाजा गया था। बचपन बचाओं आंदोलन की वजह से ओम को आजादी की अवधारणा को करीब से जानने का मौका मिला और इसके बाद उन्होंने बाल अधिकार से जुड़े कई अभियानों में भी हिस्सा लिया। ओपी अब तक सैकड़ों बच्चों को मुफ्त शिक्षा दिलाने में अहम भूमिका निभा चुके हैं। यहां तक कि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया है।

मलाला युसफजई
पाकिस्तान (Pakistan) की इस 24 साल की सामाजिक कार्यकर्ता को दुनियाभर में महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों के लिए काम करने के लिए जाना जाता है। मलाला 17 साल की उम्र में ही नोबेल का शांति पुरस्कार जीत चुकीं थीं, हालांकि उनकी पहचान इस सम्मान तक ही सीमित नहीं थीं। दरअसल, मलाला लड़कियों के हक के लिए उस समय से लड़ रही हैं, जब पाकिस्तान में तालिबान (Taliban) ने लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया था। मलाला ने बेहद छोटी उम्र में लेखन का कार्य शुरू कर दिया था। इन लेखों और ब्लॉग में वे अपना नाम ‘गुल मकई’ बताती थीं। बाद में 11 साल की उम्र में ही उन्होंने बीबीसी उर्दू (bbc urdu) के लिए लिखना शुरू कर दिया। इन लेखों में वे तालिबान शासन (Taliban Governance) में लड़कियों की पढ़ाई में आ रही दिक्कतों का जिक्र करती थीं और उन्हें घर में ही रोके जाने को लेकर सवाल भी पूछती थीं। अपने इसी निडर रवैये की वजह से इस्लामी आतंकियों ने उन्हें स्कूल जाते वक्त गोली मार दी थी। हालांकि, तब 15 साल की मलाला ने सिर पर गोली लगने के बावजूद मौत से जंग जीत ली। इस घटना के बाद मलाला ने लड़कियों के हक की अपनी जंग का दायरा सिर्फ पाकिस्तान तक नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में बढ़ाया। मलाला ने नाइजीरिया में बोको हराम की विचारधारा से प्रभावित लड़कियों के हक के लिए आवाज उठाई। मौजूदा समय में वे महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली सबसे युवा कार्यकर्ता हैं।

अंकित जसवाल
पंजाब (Punjab) में 1993 में जन्में अकृत जसवाल (Akrit Jaswal) को भारत के इतिहास में जगह 11 साल की उम्र में मिली, जब पंजाब यूनिवर्सिटी ने उन्हें दाखिला दिया। वे भारत में सबसे कम उम्र में किसी यूनिवर्सिटी जाने वाले छात्र बन गए थे। उसी साल अकृत को लंदन के इम्पीरियल कॉलेज (Imperial College) ने वैज्ञानिकों के साथ मेडिकल रिसर्च पर चर्चा के लिए बुलाया था। अकृत का कहना था उनके पास मेडिकल क्षेत्र में कई आइडिया हैं, लेकिन आगे वे कैंसर के उपचार पर काम करना चाहते हैं। हालांकि, अकृत को दुनिया में पहचान मिलने का यह कोई पहला वाकया नहीं था। दरअसल, अकृत छोटी उम्र से ही वंडर बॉय के तौर पर पहचाने जाने लगे थे। 5 साल की उम्र तक अकृत शेक्सपियर पढ़ने लगे थे और सात साल की उम्र में उन्होंने एक आठ साल की बच्ची का ऑपरेशन किया था, जिसकी उंगलिया जलने की वजह से आपस में चिपक गई थीं । उनके इस कारनामे ने उन्हें भारत के साथ पूरे विश्व में चर्चा का विषय बना दिया। बताया जाता है कि उस वक्त अकृत का जो आईक्यू टेस्ट (IQ Test) हुआ था, उसमें उनका स्कोर 146 था, जो कि देश में उस उम्र में सबसे ज्यादा था। उन्हें उम्र के हिसाब से देश का सबसे समझदार बच्चा कहा जाने लगा था । अकृत फिलहाल कैंसर पर रिसर्च का ही काम कर रहे हैं।

झान हाइते
चीन में लोकतांत्रिक सिस्टम का न होना, वहां के सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए सबसे बड़ी समस्या है। खासकर सरकार की किसी योजना या फैसले के खिलाफ आवाज उठाने वालों के लिए। हालांकि, जिस देश में बड़े पदों पर बैठे लोग अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने से डरते हैं, वहां कुछ साल पहले ही एक छोटी लड़की ने सरकार से टक्कर ले ली थी। इस लड़की का नाम था झान हाइते (Jhan Hyete), जिन्होंने 15 साल की उम्र में ही चीन की तानाशाही प्रवासी पंजीकरण प्रणाली के खिलाफ आवाज उठा दी थी। दरअसल, कुछ साल पहले तक चीन में सरकारी सिस्टम के तहत ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्र जाने वाले प्रवासियों को इसी तानाशाही सिस्टम की वजह से सुविधाएं नहीं दी जाती थीं। 2002 में जब झान का परिवार चीन के शंघाई में बसा, तब उन्हें भी इसी दिक्कत का सामना करना पड़ा। शंघाई में पंजीकृत न होने की वजह से उन्हें शहर में हाईस्कूल परीक्षा में नहीं बैठने को मिला । ऐसे में झान ने सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाई और चीन के एजुकेशन ब्यूरो (Education Bureau) के बाहर ही प्रदर्शन किए। चीनी प्रशासन (Chinese Administration) ने इसका जवाब सख्ती से दिया और उनके परिवार को घर से निकालने के साथ उनके पिता को भी जेल में डाल दिया। हालांकि, झान ने हार नहीं मानी और मीडिया की मदद से अपना अभियान आगे बढ़ाया। बाद में शंघाई प्रशासन ने 2012 में अपने नियमों को बदलने का फैसला किया।

गीतांजलि राव
इस 15 साल की भारतीय मूल की अमेरिकी लड़की की पहली बार चर्चा पिछले साल उठी थी। दरअसल, गीतांजलि को 2020 में मशहूर टाइम मैग्जीन (Time Magazine) ने पहली ‘किड ऑफ द ईयर'(Kid of the Year)  के खिताब से नवाजा था। इसकी अहम वजह यह थी कि गीतांजलि राव (Geetanjali Rao) छोटी सी उम्र में ही एक बहुत ही मेधावी युवा वैज्ञानिक और इंवेंटर बन चुकी हैं। गीतांजलि ने सिर्फ 12 साल की उम्र में पानी में लेड का पता लगाने वाली एक पोर्टेबल डिवाइस विकसित की। 15 साल की इस युवा वैज्ञानिक ने कम उम्र में नशीले पदार्थ की लत को छुड़ाने के लिए एपिऑन (Epion) नाम का एक डिवाइस भी बनाया है। इतना ही गीतांजलि इंटरनेट पर बच्चों के साथ होने वाली डराने-धमकाने (बुलिंग) के वाकये से निपटने में भी आगे आई हैं। उन्होंने इसके लिए किंडली (Kindly) नाम का एक ऐप बनाया, जो साइबर बुलिंग को पकड़ने में सक्षम है। इसके अलावा गीतांजलि अन्य कई हजारों बच्चों के लिए इनोवेशन वर्कशॉप चलाने के उद्देश्य से कई ग्रामीण स्कूल, म्यूजियम, साइंस टेक्नोलॉजी इंजीनियरिंग संगठन से जुड़ी हैं। अपनी इन्हीं खूबियों की वजह से गीतांजलि को 2019 में फोर्ब्स की 30 अंडर 30 लिस्ट में जगह मिली थी। इतना ही नहीं उन्हें जॉर्ज स्टेफेनसन इनोवेशन अवॉर्ड 2020 (George Stephenson Innovation Award 2020), कुमॉन 2019 स्टूडेंट इंस्पीरेशनल अवॉर्ड (Kumon 2019 Student Inspirational Award) समेत अन्य कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है।

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