– योगेश कुमार गोयल
26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आए उच्चतम न्यायालय के 71 वर्षों के इतिहास में पहली बार तीन महिला न्यायाधीशों सहित कुल नौ न्यायाधीशों द्वारा 31 अगस्त को एक साथ शपथ लेते हुए पद ग्रहण किया गया। शीर्ष अदालत ने इन 9 नामों की सिफारिश 17 अगस्त को की थी। चीफ जस्टिस एनवी रमना ने सभी न्यायाधीशों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। उच्चतम न्यायालय में प्रधान न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों के कुल स्वीकृत पदों की संख्या 34 है और 9 नए न्यायाधीशों के शपथ लेने के साथ ही प्रधान न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों की संख्या अब 33 हो गई है।
शीर्ष अदालत के इतिहास में पहली बार तीन महिला न्यायाधीशों न्यायमूर्ति हिमा कोहली, न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश के रूप में एक साथ शपथ ली। शपथ लेने वाले अन्य न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका, विक्रम नाथ, जितेंद्र कुमार माहेश्वरी, सीटी रविकुमार, एमएम सुंदरेश तथा पी.एस. नरसिम्हा शामिल हैं। यह भी शीर्ष अदालत के इतिहास में पहली बार हुआ है, जब देश की सर्वोच्च अदालत में एक साथ कुल चार महिला न्यायाधीश सेवारत हुई हैं। न्यायमूर्ति एम फातिमा बीवी वर्ष 1989 में उच्चतम न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनी थी। तब से लेकर अबतक शीर्ष अदालत में केवल आठ महिला न्यायाधीश हुई हैं, जिनमें तीन अभी शामिल हुई हैं और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी पहले से ही उच्चतम न्यायालय में सेवारत हैं।
सर्वोच्च अदालत में अब देश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने का रास्ता भी साफ हो गया है। सितम्बर 2027 में न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश होंगी लेकिन उनका कार्यकाल केवल सवा महीने का ही होगा। उनके बाद मई 2028 में जस्टिस पीएस नरसिम्हा देश के मुख्य न्यायाधीश बन सकते हैं, जिनका कार्यकाल छह महीने से अधिक का होगा।
उच्चतम न्यायालय में नवनियुक्त नौ न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति श्रीनिवास ओका सबसे वरिष्ठ हैं, जो इससे पहले कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे और उससे पहले वह मुम्बई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ सितम्बर 2004 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुए थे और 10 सितम्बर 2019 को गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए थे। वह फरवरी 2027 में देश के प्रधान न्यायाधीश बन सकते हैं। न्यायमूर्ति जितेंद्र माहेश्वरी नवम्बर 2005 में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने थे और अक्तूबर 2019 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा फिर सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने थे।
न्यायमूर्ति हिमा कोहली सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति से पहले तेलंगाना उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश थी। पूर्व प्रधान न्यायाधीश ई एस वेंकटरमैया की बेटी न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना 2008 में कर्नाटक हाईकोर्ट की न्यायाधीश बनी थी। न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार जनवरी 2009 में केरल उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश बने थे और 15 दिसम्बर 2010 को उन्हें वहां स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश 31 मार्च 2009 को मद्रास उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त हुए थे और मार्च 2011 में वे स्थायी न्यायाधीश बने थे। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी फरवरी 2011 में जिला जज से गुजरात उच्च न्यायालय की न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुई थी। न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा बार से सीधे पीठ में पदोन्नत होने से पहले वरिष्ठ अधिवक्ता थे।
बहरहाल, 9 नए न्यायाधीशों की नियुक्ति से एक ओर जहां देश की सबसे बड़ी अदालत में जजों के खाली पदों को भरने की मांग लगभग पूरी हो गई है, वहीं लैंगिक समानता की दृष्टि से भी एक साथ तीन महिला जजों की नियुक्ति एक ऐतिहासिक कदम माना जा सकता है। सरकार की ओर से करीब दो वर्ष पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उच्चतम न्यायालय में पेश किए गए दस्तावेजों में कहा था कि कोर्ट रूम को लैंगिक प्रतिनिधित्व की दिशा में संतुलित करने की आवश्यकता है। उच्चतम न्यायालय में अब कुल स्वीकृत पदों में से एक केवल एक ही पद खाली रह गया है। चीफ जस्टिस एनवी रमना ने जब शीर्ष अदालत में देश के प्रधान न्यायाधीश का सर्वोच्च पद संभाला था, उस समय उनकी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक उच्चतम न्यायालय में रिक्त पदों को भरना था। दरअसल करीब 21 महीनों से चले आ रहे गतिरोध के कारण नए न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं हो पा रही थी। जस्टिस रमना से पहले पूर्व जस्टिस एसए बोबडे के कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक भी न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं हुई थी।
उच्चतम न्यायालय में खाली पदों पर न्यायाधीशों की नियुक्ति इसलिए भी बेहद जरूरी थी क्योंकि वर्तमान में देशभर में अदालतों में लंबित मामलों की संख्या करीब साढ़े चार करोड़ तक पहुंच गई है और सर्वोच्च अदालत में भी न्यायाधीशों की कमी के कारण कई महत्वपूर्ण मामले लंबित हैं। उच्चतम न्यायालय में ही इस समय करीब 70 हजार मामले लंबित हैं। शीर्ष अदालत की संवैधानिक पीठ ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 224ए के तहत तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए पहले ही हरी झंडी दे दी थी। उम्मीद की जानी चाहिए कि सर्वोच्च अदालत में रिक्त पदों को भरे जाने के बाद अब उच्च न्यायालयों तथा निचली अदालतों में भी जजों के खाली पदों को भरा जाएगा और इससे अदालतों को मुकद्दमों के भारी-भरकम बोझ से कुछ हद तक राहत मिल सकेगी।
देशभर की अदालतों में जजों के खाली पदों को भरने के साथ-साथ लोगों को समय पर न्याय उपलब्ध कराने और लंबित मुकद्दमों के भारी-भरकम बोझ से छुटकारा पाने के लिए त्वरित न्याय की पहल होना भी बेहद जरूरी है और इसके लिए जरूरी है कि अब न्यायिक सुधारों की दिशा में भी आवश्यक पहल की जाए। इसके लिए जरूरी है कि वर्षों से लंबित राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन की दिशा में सरकार द्वारा आवश्यक कदम उठाए जाएं। जजों के खाली पद भरने का वास्तविक लाभ तभी होगा, जब लंबित मुकदमों का बोझ कम करने के लिए भी ईमानदारी से प्रयास किए जाएं और लोगों को समय से न्याय मिलता नजर भी आए।
दरअसल आम आदमी की सबसे बड़ी पीड़ा यही है कि न्याय की आस में अदालतों के चक्कर काटते-काटते उसकी चप्पलें घिस जाती हैं लेकिन उसे तारीख पर तारीख मिलती रहती हैं। अदालतों की व्यवस्था में सुधार करना और लोगों को समय पर न्याय सुलभ कराने के लिए ठोस पहल करना समय की सबसे बड़ी मांग है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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