भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था, इसलिए इसे हलछठ के रूप में मनाते हैं जो आज यानि 28 अगस्त को मनाई रही है। इसे हलषष्टी, ललई छठ और हरछठ के नाम से भी जाना जाता है। संतान की इच्छुक एवं संतानवती महिलाओं को यह व्रत करना चाहिए। महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए प्रार्थना (Prayer) करती हैं। आज बलराम जयंती(Balaram Jayanti) भी है। हरछठ व्रत बलराम जी की तरह बलशाली पुत्र की प्राप्ति के लिए भी किया जाता है। हरछठ व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष (Krishna Paksha) की षष्ठी तिथि को होता है।
बलराम को हलधर (Halder) के नाम से भीम जाना जाता है और इसी वजह से इस दिन को हलषष्टी भी कहा जाता है। बलराम जयंती होने के चलते इस दिन किसान समुदाय के लोग खेती के पवित्र उपकरण जैसे मूसल और फावड़ा की पूजा करते हैं जिनका उपयोग भगवान बलराम (Lord Balaram) ने किया था।
इस दिन माताएं महुआ पेड़ की डाली का दातून कर स्नान कर व्रत धारण करती हैं। इस दिन व्रती महिलाएं कोई अनाज नहीं खाती हैं। भैंस के दूध की चाय पीती हैं।
तालाब के पार में बेर, पलाश, गूलर आदि पेड़ों की टहनियों तथा कांस के फूल को लगाकर सजाते हैं। सामने एक चौकी या पाटे पर गौरी-गणेश, कलश रखकर हलषष्ठी देवी (halashthi devi) की मूर्ति की पूजा करते हैं। साड़ी आदि सुहाग की सामग्री भी चढ़ाते हैं तथा हलषष्ठी माता की छह कहानी सुनते हैं। इस पूजन की सामग्री में पचहर चांउर (बिना हल जुते हुए जमीन से उगा हुआ धान का चावल, महुआ के पत्ते, धान की लाई, भैंस का दूध-दही व घी आदि रखते हैं। बच्चों के खिलौनों जैसे-भौरा, बाटी आदि भी रखा जाता है।
अंत में निम्न मंत्र से प्रार्थना करें
गंगाद्वारे कुशावर्ते विल्वके नीलेपर्वते।
स्नात्वा कनखले देवि हरं लब्धवती पतिम्॥
ललिते सुभगे देवि-सुखसौभाग्य दायिनि।
अनन्तं देहि सौभाग्यं मह्यं, तुभ्यं नमो नमः॥
– अर्थात् हे देवी! आपने गंगा द्वार, कुशावर्त, विल्वक, नील पर्वत और कनखल तीर्थ में स्नान करके भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त किया है। सुख और सौभाग्य देने वाली ललिता देवी आपको बारम्बार नमस्कार है, आप मुझे अचल सुहाग दीजिए।
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