– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
अब इसे परिवर्तन की बयार ही मानना होगा कि आंतकवाद के पर्याय बुरहान वानी के पिता ने कश्मीर के पुलवामा जिले के एक स्कूल में स्वतंत्रता दिवस को राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया। बुरहान वानी के पिता कश्मीर के पुलावामा जिले में एक स्कूल में प्रधानाध्यापक हैं। यही कोई पांच साल पुरानी बात होगी जब बुरहान वानी की मौत पर पूरा कश्मीर जल उठा था। जगह-जगह जबरदस्त विरोध-प्रदर्शनों का दौर चल गया था। देखा जाए तो आतंकवादियों और अलगाववादी नेताओं ने बुरहान वानी को आतंकवादी युवाओं का पोस्टर ब्वॉय बना दिया था कश्मीर में। पर सही दिशा में कदम बढ़ाने का ही परिणाम है कि स्वतंत्रता दिवस पर समूचे कश्मीर में राष्ट्रीय ध्वज धूमधाम से फहराया गया, वह भी बिना किसी अवरोध के।
यानी इस साल कश्मीर में न इंटरनेट बंद किए गए और न कर्फ्यू लगाया गया। किसी तरह के प्रतिबंध की बात तो दूर की बात रही। तीन साल में यह पहला मौका है। इससे पहले 2018 में भी इंटरनेट सेवाएं बंद नहीं की गई थी। यह वही कश्मीर है जहां 15 अगस्त और 26 जनवरी यानी स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मात्र औपचारिकता बनकर रहा जाता था। किसी की हिम्मत नहीं होती थी जम्मू-कश्मीर में झण्डारोहण की। पर अबकी बार तो कश्मीर की फिजा ही बदली-बदली देखने को मिली। पहली बार स्वतंत्रता दिवस पर इतना उत्साह और बिना किसी खौफ के ध्वजारोहण देखा गया। समूचा कश्मीर तिरंगामय हो गया इसबार। पूरा देश अपने आपको गौरवान्वित महसूस करने लगा।
1990 के दशक से कश्मीर में जो आतंकवाद का दौर चला था वह धीरे-धीरे उग्र होता गया। यहां तक कि सेना पर हमले और पत्थरबाजी तो नियमित प्रक्रिया बन गई थी। आतंकवादी संगठनों के हौसले बुलंद हो गए थे। अलगाववादी नेता देश में ही वीवीआईपी की सुविधा भोग रहे थे। नेताओं के बच्चे, परिवार के सदस्यों की सुख-सुविधाओं में कोई कमी नहीं थी। यहां तक कि पांच सितारा सुविधाओं को भोग रहे थे, वहीं कश्मीर के आम युवाओं को आतंकवाद में धकेला जा रहा था। यह सब सुनियोजित योजना का हिस्सा था। लोगों को यह भ्रम भी था कि भारत सरकार उनके हाथों खेलती रहेगी और उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे। कुछ होगा भी तो पाकिस्तान, चीन सहित दुनिया के देश उनके पक्ष में आ जाएंगे। पर ऐसा हो नहीं सका।
धारा 370 के विशेषाधिकार का भ्रम यह था कि इसे तो कोई हटा ही नहीं सकता। पर समय का बदलाव देखिए देश के लोगों को आज गर्व है कि कश्मीर में धारा 370 का दंश खत्म हो गया है। अलगाववादी या तो शांत हो गए हैं या फिर समय की धारा को पहचान चुके हैं। दुनिया के देशों का जिस तरह से भारत को समर्थन मिला है उससे कश्मीर समस्या का देशहित में हल खोजा जाना संभव हो सका है। कश्मीर में चुनावों की चर्चा शुरू हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त को अपने उद्बोधन में जल्दी ही चुनावों के संकेत दिए हैं।
इसबार खास बात यह देखी गई कि कश्मीर के 23 हजार स्कूलों में 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण हुआ। स्कूल शिक्षकों के लिए उपस्थिति अनिवार्य कर दी गई। कहीं भी कर्फ्यू नहीं लगाया गया। केन्द्र शासित प्रदेश के सभी पंचायतों व निकायों में ध्वजारोहण का आयोजन किया गया। सबसे खास यह कि यह कोई सरकारी आयोजन नहीं रहा। एक समय था जब सरकारी अधिकारी ध्वजारोहण कर औपचारिकता पूरी कर लेते थे पर इस बार पंचायतों व निकायों में जनप्रतिनिधियों ने ध्वजारोहण किया। यह जनभागीदारी का बड़ा उदाहरण है। हालांकि इस तरह की कल्पना कश्मीर को लेकर नहीं की जा सकती थी।
धारा 370 हटाने के बाद कश्मीर के हालात का विश्लेषण किया जाए तो कश्मीर में स्पष्ट रूप से बदलाव देखा जा सकता है। कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं बहुत कम हो गई हैं तो कश्मीर की केसर के बाग लहलहाने लगे हैं। खेती किसानी से लेकर परंपरागत उद्योग पटरी पर आने लगे हैं। युवाओं को रोजगार के अवसर मिलने लगे हैं। सबसे बड़ी बात कि कश्मीर में निवेश का नया माहौल बना है। देश-दुनिया के निवेशक कश्मीर का रुख करने लगे हैं। युवाओं को हुनर सिखाया जा रहा है तो खेलों से जोड़ा जा रहा है। स्कूल-कॉलेज खुलने से शिक्षा का माहौल बना है। कश्मीर को मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयास होने लगे हैं।
जिस लाल चौक पर झण्डा फहराने की कल्पना नहीं की जा सकती थी वह तिरंगामय हो गया है। इससे एक बात साफ हो गई है कि कश्मीर का आम नागरिक देश के साथ है। ना तो वह आंतकवादी घटनाएं चाहता है और ना ही अलगाव। क्योंकि जिस तरह से आम नागरिक की सकारात्मकता सामने आ रही है वह अलगाववादियों के नकाब को उतारने के लिए काफी है। दुनिया के देशों के लिए भी यह एक सबक है। सबसे बड़ी बात यह है कि एक ओर आज जहां दुनिया के देश आतंकवादी गतिविधियों से दो-चार हो रहे हैं वहीं भारत में आतंकवादी गतिविधियों में कमी आई है। इसे शुभ संकेत माना जाना चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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