– डॉ. रमेश शर्मा
किन्नौर की पहाड़ दरकने की त्रासदी बहुत ही दुखदायी है जिसने सभी की आत्मा को झकझोर दिया है। इस बरसात में ऐसी अनेक घटनाएं अन्य स्थानों पर भी घटी हैं जो हमें सोचने के लिए मजबूर करती हैं। विकास के नये तौर-तरीके और निर्माण के नए उपकरण इस तरह की आपदाओं के मुख्य कारण हैं।
मानव ने जीवन की गति को बढ़़ाने के लिए क्या करना है और क्या नहीं करना है, किस चीज की कुर्बानी देनी है और किस की नहीं, इसे समझते हुए भी अनदेखा करना और योजनाओं का स्वरूप अल्पावधि के लिए निर्धारित करने के कारण ही ऐसे परिणाम सामने आ रहे हैं। जल्दी इसे भूल कर अगले संकट का इंतजार करेंगे समाधान नहीं।
हमीरपुर से कांगड़ा सड़क, कालका शिमला, किन्नौर लाहौल स्पिति या हिमालय क्षेत्र में कहीं भी विकास की बात हो जलवायु और पर्यावरण की दीर्घकालीन सुरक्षा को हमेशा नजरअंदाज किया जाता रहा है। हजारों पेड़ काटे गए लेकिन नये नहीं लगाए गए। धमाकों से सड़क, सुरंग और बांध बनाए गए तथा निर्लज्जता और क्रूरता के साथ धरती को जगह-जगह छलनी किया गया तो यह उसका स्वाभाविक परिणाम है कि हम विवश होकर परिजनों का शोक मनाते रहेंगे। दुर्भाग्य से सरकारी तंत्र इस तरह की तबाही का मुख्य किरदार है।
हिमालय की संरचना के साथ अत्यधिक छेड़छाड़ केवल इस प्रदेश के लिए ही नहीं बल्कि बहुत बड़े भूभाग के लिए संकट का कारण बनेगी। इस तथ्य से परिचित होते हुए भी हम अनियोजित विकास के मौन समर्थक हैं, यह भयावह स्थिति है। हिमाचल प्रदेश की प्राकृतिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक धरोहर की रक्षा मानवता की बहुत बड़ी सेवा होगी।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से जुड़े हैं।)
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved