उज्जैन। नागपंचमी के अवसर पर महाकालेश्वर मंदिर के शिखर पर विराजित भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट मध्य रात्रि में खुल गए थे और इसके बाद से ही नागचंद्रेश्वर के दर्शन की ऑनलाईन व्यवस्था शुरु हो गई थी। महाकाल मंदिर के आसपास श्रद्धालुओं के लिए कई जगह बड़ी स्क्रीन लगाई गई है। इसके जरिये लोग नागचंद्रेश्वर के दर्शन कर रहे हैं।
नागपंचमी पर्व पर महाकालेश्वर मंदिर के शिखर के ऊपरी भाग स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट वर्ष में एक बार 24 घंटे के लिए खुलते हैं। कल रात 12 बजते ही मंदिर के पट खोल दिए गए थे। परंपरानुसार महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से महंत विनीत गिरी महाराज और जिला प्रशासन की ओर से मंदिर प्रशासक नरेन्द्र सूर्यवंशी ने भगवान नागचंद्रेश्वर की प्रथम पूजा की थी। इसके बाद से भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन ऑनलाईन प्रसारित होना शुरु हो गए थे। महाकाल आ रहे भक्तों के लिए मंदिर समिति ने 6 जगह बड़ी स्क्रीन लगवाई है जिसके जरिये लोग मंदिर में प्रवेश के प्रतिबंधित होने के कारण नागचंद्रेश्वर के दर्शन कर सके। दर्शनार्थियों के लिए दो बड़ी स्क्रीन हरसिद्धि चौराहे पर लगाई गई है। इसके अलावा महाकाल टनल, कार्तिकेय मंडप और अन्न क्षेत्र सहित पुलिस चौकी के पास स्क्रीन लगाई गई है। नागपंचमी पर भगवान नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा का प्रावधान है। पट खुलते ही प्रथम पूजा रात में हो गई थी और दूसरी पूजा आज दोपहर 12 बजे जिला प्रशासन की ओर से की गई। महाकाल की संध्या आरती के साथ शाम को भी भगवान नागचंद्रेश्वर और शिव परिवार की तीसरी पूजा होगी। इसके बाद रात्रि 12 बजे एक बार फिर भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट अगले साल तक के लिए बंद कर दिए जाएँगे। कोरोना प्रोटोकाल के कारण यह दूसरा वर्ष है जब श्रद्धालुओं को वर्ष में एक बार दर्शन देने वाले भगवान नागचंद्रेश्वर के सीधे दर्शन नहीं हो पा रहे हैं। उन्हें सिर्फ ऑनलाईन दर्शन ही करने पड़े।
11वीं सदी की है दुर्लभ प्रतिमा
नागचंद्रेश्वर मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग विराजमान है। गर्भगृह के बाहर दीवार पर 11वीं शताब्दी की दुर्लभ प्रतिमा है। इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। मान्यता है यह एकमात्र प्रतिमा है जिसमें भगवान शिव-पार्वती सर्प शय्या पर विराजमान हैं। नागपंचमी के दिन प्रतिमा के दर्शन मात्र से काल सर्प दोष से मुक्ति मिलती है। यहीं कारण है साल में एक दिन पट खुलने के बाद बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने के लिए मंदिर पहुंचते थे।
नागराज तक्षक विराजमान हैं यहाँ
महानिवार्णी अखाड़े के महंत विनीत गिरि ने बताया कि संतों के मुताबिक तीन नागों की मान्यता है जो वासुकी, शेष और तक्षक हैं। वासुकी नाग का स्थान प्रयाग में है। शेष नाग समुद्र में भगवान विष्णु की सेवा में रहते हैं। तक्षक ने महादेव की तपस्या कर यह वरदान ले लिया है कि वे शिव के सान्निध्य में रहेंगे। महाकाल के साथ नागचंद्रेश्वर भी यहाँ विराजित हैं। तक्षक की प्रकृति एकांत है, इसलिए उन्हें एकांत दिया है। वर्ष में केवल एक बार वे दर्शन के लिए प्रकट होते हैं।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved