खेती के लिए आदिवासी किसानों को दी थी, मगर अधिकांश जमीनें शिवसेना के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष साहू ने खरीदी, जिसकी गत वर्ष हत्या भी हो गई
इंदौर। खेती-किसानी (Farming) के लिए भूमिहीन आदिवासी परिवारों (landless tribal families) को पट्टे पर 37 साल पहले सरकारी जमीनें (government land) दी गई थी, लेकिन बाद में जब इन जमीनों की कीमतें बढ़ गई तो रसूखदारों (influential) ने पट्टे की जमीनें ओने-पोने दामों पर इन किसानों से खरीद ली। कलेक्टर मनीष सिंह (Collector Manish Singh) ने अभी 14 पट्टों को निरस्त करवाते हुए लगभग 100 करोड़ रुपए मूल्य की इन सरकारी जमीनों को फिर अपने कब्जे में ले लिया है। लगभग 55 एकड़ जमीन इस पट्टा घोटाले में शामिल रही और अधिकांश जमीनें शिवसेना (Shiv Sena) के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमेश साहू (Ramesh Sahu) के नाम पर भी निकली, जिनकी गत वर्ष उमरीखेड़ा में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। नायब तहसीलदार सिमरोल की रिपोर्ट के आधार पर अपर कलेक्टर ने उक्त प्रकरणों की सुनवाई करने के बाद पट्टों को निरस्त करते हुए इन जमीनों को पुन: सरकारी घोषित कर दिया है। पिछले दिनों सनावदिया ( Sanavadia) सहित अन्य क्षेत्रों में प्रशासन ने इसी तरह की कार्रवाई की थी।
महू क्षेत्र (Mhow area) के ग्राम चिखली (village Chikhli) में सरकारी जमीन (government land) 1983-84 में पट्टे पर भूमिहीन आदिवासी परिवारों को जीवन यापन के लिए सौंपी थी, ताकि वे पट्टे पर दी गई जमीन पर खेती-किसानी कर अपना परिवार पाल सकें। लेकिन बाद में पट्टे पर दी गई ये जमीनें धीरे-धीरे कर बिकती गई। कुछ जमीनें इन किसानों से आम मुख्त्यार के रूप में ले ली और बाद में उन्हें रसूखदारों को विक्रय कर दिया गया। अनुविभागीय अधिकारी महू ने इस संबंध में जांच प्रतिवेदन तैयार किया और एक पट्टे की जमीन श्रीमती उर्मिला पति अजय गुप्ता कालिंदी मिड टाउन निवासी ने खरीद ली। यह जमीन निजी बताकर रमेश साहू (Ramesh Sahu) तर्फे आम मुख्त्यार इंदर सिंह, भीमसिंह राजपूत ने बेची। खरीददार को यह पता ही नहीं चला कि जमीन सरकारी और आदिवासी को पट्टे पर दी हुई है, जबकि जमीन व्यक्तिगत मालिकी की बताकर बेची गई। इसी तरह एक जमीन दिव्य ज्योति के आलोक पिता सोमचंद ने भी इसी तरह खरीद ली। अपर तहसीलदार ने इस संबंध में अपर कलेक्टर पवन जैन (Additional Collector Pawan Jain) को पट्टाधारियों और अवैध रूप से खरीदी-बिक्री की जानकारी भेजी, जिसके आधार पर खसरा नं. 43 के सभी 14 पट्टाधारकों की भूमि बिना अनुमति विक्रय किए जाने पर सरकारी घोषित की गई, जिसमें पट्टेदार देवकरण पिता पुना, शेतान भाई, अम्बाराम पिता नारायण, कैलाश पिता गोवर्धन, चंदाबाई पति बाबूलाल, आत्माराम पिता छोगालाल भील, वासुदेव पिता गंगाराम, परमानंद पिता जगन्नाथ, नारायण पिता भेला, चैनसिंह पिता उमराव भील, सुखलाल पिता नानका भील, नाथू पिता कालू, देवी सिंह पिता प्रेमचंद, सूरजबाई बेवा मेहताब और मान सिंह पिता मेहताब के अलावा मुकाम सिंह पिता जयराम भील को खसरा नं. 43 और उनके बटांकन की गई जमीनों के पट्टे 37 साल पहले दिए गए थे। सभी पट्टाधारकों को 1.619 हेक्टेयर, इस तरह कुल 22 हेक्टेयर जमीन खेती-किसानी के लिए पट्टे पर दी गई। 55 एकड़ इस जमीन की कीमत आज 100 करोड़ से कम नहीं है, जिसे कलेक्टर मनीष सिंह ने सख्ती दिखाते हुए फिर सरकारी घोषित करवा दिया। इसमें से अधिकांश जमीनें शिवसेना के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमेश साहू के नाम पर भी मिली है, जिसकी गत वर्ष उमरीखेड़ा में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। अब पुन: सरकारी घोषित यह जमीन सरकारी विभागों और उनकी योजनाओं में आबंटित करने के काम आएगी।
कलेक्टर की मंजूरी बिना किया जमीन का सौदा अवैध
आदिवासी (tribal) को बिकी जमीन बिना कलेक्टर अनुमति के बेची नहीं जा सकती। अदालतों से लेकर राजस्व बोर्ड के भी इस संबंध में कई फैसले हैं। शासन ने पट्टा जिस कार्य के लिए दिया और अगर पट्टाधारी ने बिना शासन-प्रशासन की अनुमति के जमीन बेच दी तो यह बिक्री अवैध मानी जाती है और खरीददार को जमीन का स्वामित्व प्राप्त नहीं होता है। पट्टे पर दी गई जमीन का 10 वर्ष तक अंतरण भी नहीं होता है और उसके बाद भी अगर अंतरण करना हो तो कलेक्टर की अनुमति आवश्यक है। अपर कलेक्टर पवन जैन (Additional Collector Pawan Jain) द्वारा पारित किए गए आदेशों में राजस्व मंडल से लेकर हाईकोर्ट और सुुुप्रीम कोर्ट के इस संंबंध में दिए गए पूर्व के आदेशों का भी हवाला दिया गया है। दरअसल इस तरह पट्टे की जमीन भूमिहीनों को उनके परिवार के जीवन यापन के लिए दी जाती है। लिहाजा पट्टेदाता को भी इस जमीन को बिना शासन अनुमति बेचने का अधिकार नहीं है और भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 165 (7) के प्रावधानों का भी यह उल्लंघन है। पूर्व में भी पट्टे पर बिकी जमीनों को इसी तरह फिर से सरकारी घोषित किया जा चुका है।
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