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स्वदेशी विमान वाहक युद्धपोत ‘विक्रांत’ ने पुनर्जन्म लेकर शुरू की समुद्री यात्रा

August 04, 2021

नई दिल्ली । पाकिस्तान के साथ 1971 के योद्धा ‘विक्रांत’ (Vikrant) ने पुनर्जन्म लेकर आज से अपनी समुद्री यात्रा शुरू कर दी है। भारत के लिए बुधवार का दिन इसलिए गौरवान्वित करने वाला है क्योंकि भारत का पहला स्वदेशी विमान वाहक युद्धपोत अंतिम परीक्षणों के लिए कोच्चि बंदरगाह (Kochi Port) से समुद्र में उतार दिया गया है। कोचीन शिपयार्ड में निर्मित इस युद्धपोत को अंतिम समुद्री परीक्षण पूरे होने के बाद आजादी की 75वीं वर्षगांठ (75th anniversary of independence) के समय देश को समर्पित किया जायेगा। विमानवाहक पोत की लड़ाकू क्षमता, पहुंच और बहुमुखी प्रतिभा हमारे देश की रक्षा में जबरदस्त क्षमताओं को जोड़ेगी और समुद्री क्षेत्र में भारत के हितों को सुरक्षित रखने में मदद करेगी।

स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर (आईएसी) आईएनएस विक्रांत का निर्माण 28 फरवरी 2009 से कोच्चि के कोचीन शिपयार्ड में निर्माण शुरू किया गया था। दो साल में निर्माण पूरा होने के बाद विक्रांत को 12 अगस्त 2013 को लॉन्च किया गया था। पूरी तरह से स्वदेशी इस जहाज ने अगस्त 2020 में हार्बर ट्रायल पूरा किया था जिसके बाद सितम्बर 2020 में अत्याधुनिक आईएनएस विक्रांत को परीक्षणों के लिए समंदर में उतारा गया था। दिसम्बर में सीएसएल की तरफ से किए बेसिन ट्रायल में विमानवाहक पोत पूरी तरह खरा उतरा था। अंतिम परीक्षण के लिए पोत को इस साल के पहले छह महीनों में समुद्र में उतारा जाना था, लेकिन कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कारण इस परीक्षण को टाल दिया गया था।

अंतिम दौर के परीक्षण शुरू न होने के कारण 25 जून को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आईएसी के फ्लाइट डेक पर जाकर निर्माण कार्य देखा। उन्होंने कहा था कि स्वदेशी विमानवाहक पोत विक्रांत का नौसेना में शामिल होना भारतीय रक्षा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अवसर होगा क्योंकि इसे भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के समय देश को समर्पित किया जायेगा। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि भारतीय नौसेना आने वाले वर्षों में दुनिया की शीर्ष तीन नौसेनाओं में से एक बन जाएगी और राष्ट्र की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी। भारत में ही तैयार यह जहाज नौसेना को पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता प्रदान करेगा। स्वदेशी विमान वाहक (आईएसी) के निर्माण के साथ भारत अत्याधुनिक विमान वाहक को स्वदेशी रूप से डिजाइन, निर्माण और एकीकृत करने की क्षमता रखने वाले देशों के चुनिंदा समूह में शामिल हो गया है।


…ताकि जिन्दा रहे आईएनएस विक्रांत का नाम
आईएनएस विक्रांत नाम के पोत ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) की नौसैनिक घेराबंदी करने में भूमिका निभाई थी। इसलिए आईएनएस विक्रांत का नाम जिन्दा रखने के लिए इसी नाम से दूसरा युद्धपोत स्वदेशी तौर पर बनाने का फैसला लिया गया। एयर डिफेंस शिप (एडीएस) का निर्माण 1993 से कोचीन शिपयार्ड में शुरू होना था, लेकिन 1991 के आर्थिक संकट के बाद जहाजों के निर्माण की योजनाओं को अनिश्चितकाल के लिए रोक दिया गया। 1999 में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस ने परियोजना को पुनर्जीवित करके 71 एडीएस के निर्माण की मंजूरी दी। इसके बाद नए विक्रांत जहाज की डिजाइन पर काम शुरू हुआ और आखिरकार जनवरी 2003 में औपचारिक सरकारी स्वीकृति मिल गई। इस बीच अगस्त 2006 में नौसेना स्टाफ के तत्कालीन प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश ने पोत का पदनाम एयर डिफेंस शिप (एडीएस) से बदलकर स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर (आईएसी) कर दिया।

महिला अधिकारियों के लिए बनाये गए विशेष केबिन
इस आधुनिक विमान वाहक पोत के निर्माण के दौरान डिजाइन बदलकर वजन 37 हजार 500 टन से बढ़ाकर 40 हजार टन से अधिक कर दिया गया। इसके बाद जहाज की लंबाई 252 मीटर से बढ़कर 262 मीटर हो गई। यह 62 मीटर चौड़ा और 59 मीटर ऊंचा है। जहाज में 14 डेक और 2,300 से अधिक डिब्बे हैं, जिन्हें लगभग 1700 लोगों के लिए डिजाइन किया गया है, जिसमें महिला अधिकारियों को समायोजित करने के लिए विशेष केबिन भी शामिल हैं। ‘विक्रांत’ में प्रति घंटे लगभग 28 समुद्री मील की अधिकतम और 18 समुद्री मील की सामान्य गति है। यह एक बार में लगभग 7,500 समुद्री मील तक की दूरी तय कर सकता है।

पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता प्रदान करेगा
आईएसी में 76 फीसदी से अधिक स्वदेशी सामग्री लगाकर इसे मिग-29 और अन्य हल्के लड़ाकू विमानों के संचालन के लिए डिजाइन किया गया है। इस पर लगभग तीस विमान एक साथ ले जाए जा सकते हैं, जिसमें लगभग 25 ‘फिक्स्ड-विंग’ लड़ाकू विमान शामिल होंगे। इसमें लगा कामोव का-31 एयरबोर्न अर्ली वार्निंग भूमिका को पूरा करेगा। नौसेना के बेड़े में शामिल होने के बाद भारत में ही तैयार यह जहाज भारत को पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता प्रदान करेगा।

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