नई दिल्ली । मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) एनवी रमन्ना (NV Ramanna) ने सोमवार को संकेत दिया (Hints) कि वह आंध्र प्रदेश सरकार की उस याचिका (Petition) पर सुनवाई नहीं करेंगे (Not hearing), जिसमें आरोप लगाया गया है कि तेलंगाना सरकार ने उसे पीने और सिंचाई के लिए पानी के उसके हिस्से से वंचित कर दिया है और इसे ‘असंवैधानिक’ और अवेध करार दिया।
न्यायमूर्ति रमन्ना ने कहा, “मैं इस मामले को कानूनी रूप से नहीं सुनना चाहता। मैं दोनों राज्यों से संबंधित हूं। यदि मामला मध्यस्थता में सुलझाया जा सकता है, तो कृपया ऐसा करें।”
उन्होंने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सरकारों के वकील से कहा, “हम इसमें मदद कर सकते हैं। नहीं तो मैं इसे दूसरी बेंच को ट्रांसफर कर दूंगा।”
आंध्र प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने मामले में निर्देश के लिए समय मांगा। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “मैं चाहता हूं कि आप दोनों अपनी सरकारों को समझाएं और मामले को सुलझाएं। हम अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप नहीं करना चाहते।”
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह बुधवार को मामले की सुनवाई करेगी।
आंध्र प्रदेश ने अपनी याचिका में कहा कि तेलंगाना आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के तहत गठित शीर्ष परिषद में लिए गए निर्णय, इस अधिनियम के तहत गठित कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड (केआरएमबी) के निर्देशों और केंद्र के निर्देशों का पालन करने से इनकार कर रहा है।
याचिका में कहा गया है कि धारा 87 (1) के तहत बोर्ड केवल ऐसे पहलुओं के संबंध में अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सकता है जो केंद्र द्वारा अधिसूचित किए गए हैं, लेकिन अभी तक ऐसी कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई है।
दलील में तर्क दिया गया कि केआरएमबी के अधिकार क्षेत्र की अधिसूचना पर कोई प्रगति नहीं होने के कारण, तेलंगाना अपने आयोग के कृत्यों से सिंचाई और अन्य उद्देश्यों के लिए आंध्र प्रदेश को पानी की आपूर्ति को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है।
याचिका में कहा गया है कि श्रीशैलम बांध परियोजना में, तेलंगाना में बिजली उत्पादन के लिए वहां से पानी के उपयोग के कारण जलाशय की मात्रा गंभीर रूप से कम हो गई है।
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