कृष्णगिरी। श्रावण मास (shravan month) के पहले शुक्रवार को यहां श्री पार्श्व पद्मावती शक्ति पीठ धाम में श्रधासुक्त भक्तों का सैलाब उमड़ा। इस अवसर पर शक्ति पीठाधिपति राष्ट्रसंत डॉ वसंतविजय (Shakti Peethadhipati Rashtrasant Dr Vasantvijay) जी म.सा. की निश्रा में पूजा भक्ति हुई। इस दौरान अपने प्रेरणादायी प्रवचन में डॉ. वसंतविजयजी ने कहा कि जिस प्रकार दीप से दीप जल सकता है उसी प्रकार गुरु से ही गुरु कृपा मिल सकती है। उन्होंने कहा कि गुरु की दृष्टि अयोग्य व्यक्ति को भी योग्य बना देती है। गुरु को एक अवस्था बताते हुए राष्ट्रसंतश्रीजी ने कहा कि उस अवस्था में श्रद्धालु-भक्त का पहुंचना जरूरी है।
स्वामी विवेकानंदजी के उनके गुरु से जुड़े एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए डॉ वसंतविजयजी ने कहा, संत किसी जाति-धर्म से बंधा नहीं होता। उन्होंने कहा कि वे धर्म सिद्धांतों से अवगत कराने की बजाय व्यक्ति को स्वयं उसी से मिलाते हैं। साधु का काम धन लेना नहीं, बल्कि धर्म देना है। सर्वधर्म दिवाकरश्रीजी ने कहा कि मनुष्य की पहली गुरु मां होती है, दूसरा गुरु शिक्षक होता है तथा जो मोक्ष मार्ग दिखाने का ज्ञान दे वह सद्गुरु है। उन्होंने कहा कि भाग्य के दरवाजे में प्रवेश की प्रार्थना कर शुभ संकल्प लेना चाहिए। संतों का प्रवेश श्रद्धालुओं को धर्म देने का है उसे पाने के लिए संकल्पित होकर प्रवेश करेंगे तो यही धर्म ही धर्मलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, भाग्यलक्ष्मी और मोक्षलक्ष्मी बन जाता है। धर्म के मार्ग को उजाले का मार्ग बताते हुए राष्ट्रसंतश्रीजी ने कहा कि अनंत युगों तक समृद्धि की सुरक्षा के लिए धर्म का साथ जरूरी है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्तों को सन्तश्रीजी ने अपने कर कमलों से प्रसाद वितरित किया।