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    सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बहस के लिए वकीलों के लिए तय की समय सीमा, कहा- पुरानी आदतों को बदलने का वक्त  

  • July 29, 2021

    नई दिल्ली। अन्य देशों के मुकाबले भारत में न्यायिक सुधारों की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है। अदालतों में लंबी-लंबी बहसों के कारण अधिकतर देखा गया है कि मुकदमे वर्षों तक चलते है। इसी कारण आम आदमी को न्याय मिलना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में देश के सर्वोच्च न्यायलय (Supreme Court of India) ने ने सख्त समय सारणी (Strict Time Schedule) के आवंटन की तरफ कदम बढ़ाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिका और इंग्लैंड के सुप्रीम कोर्ट कि तर्ज पर चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर समय-सीमा का ख्याल नहीं रखा गया तो सुनवाई स्वतः अनिश्चितकाल के लिए टल जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश का कहना है कि हम दशकों पुराने मामलों को लंबित रखकर ताजा मामलों पर वरिष्ठ वकीलों की घंटों-घंटों दलील को जायज कैसे ठहरा सकते हैं? हमें नहीं लगता कि यूके (UK) और यूएस (US) के सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसा कोई सिस्टम है जो वकीलों को घंटों बहस की अनुमति देता हो।

    सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की बेंच ने संयुक्त राज्य (US) के सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनाई गई प्रथा को एक मामले में पेश होने वाले वकीलों को अपने मौखिक तर्कों को 30 मिनट तक सीमित रखने और तीन पृष्ठों में लिखित प्रस्तुतियाँ देने का निर्देश दिया। वकीलों पर इस अनुशासन को लागू करते हुए, पीठ ने कहा, “कई बार हमें 28-पृष्ठ की रिट याचिका (Writ Petition) के लिए दायर 30-पृष्ठ का सारांश (Synopsis) मिलता है।




    यहाँ से शुरू हुआ मामला
    सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस आरएस रेड्डी की बेंच ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं- अभिषेक मनु सिंघवी और अरविंद दातर को यतिन ओझा की याचिका पर बहस के लिए आधे घंटे जबकि गुजरात हाई कोर्ट (Gujarat High Court) के वकील निखिल गोयल को एक घंटा और इंटरवीनर के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस सुंदरम को 15 मिनट का वक्त दिया। यतिन ने गुजरात हाई कोर्ट के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें हाई कोर्ट ने इस आधार पर उन्हें सीनियर एडवोकेट के दर्जे से वंचित कर दिया कि वो न्यायाधीशों और न्यायपालिका की अक्सर आलोचना करते रहते हैं।

    सुप्रीम कोर्ट के पास यह मामला करीब एक साल से पहले आया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में पहल की थी, लेकिन हाई कोर्ट ने अपने फैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया। उसने सुप्रीम कोर्ट को सूचना दी कि 20 जून को फुल कोर्ट की मीटिंग में ओझा के प्रति थोड़ी भी नरमी नहीं बरतने का फैसला हुआ है। तब शीर्ष अदालत ने मामले पर आखिरी सुनवाई के पहले कहा कि वह विभिन्न पक्षों को कई दिनों तक बहस करने की अनुमति नहीं देगा।

    जस्टिस कौल ने कहा, ‘यूएस सुप्रीम कोर्ट में वकील को सिर्फ जजमेंट का हवाला देने की अनुमति होती है, ना कि इसे पूरा पढ़ने की। लेकिन, यहां वकील 20-20 जजमेंट का न केवल हवाला देते हैं बल्कि सभी आदेशों की कॉपी पढ़ते भी हैं।’

    पीठ ने वकीलों से कहा कि सिर्फ सर्वोत्तम आदेश का ही चयन करें और एक दलील के लिए सिर्फ एक जजमेंट का ही हवाला दें। सुप्रीम कोर्ट में कई बार जज वकील से घड़ी देखकर 10 सेकंड में अपनी बात कहने को कहता है, लेकिन 10 मिनट पूर्ण होने पर भी बात खतम नहीं होती।

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