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कोरोना से अनाथ हुए बच्चों को कल्याण योजना में शामिल किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

July 28, 2021

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पीएम केयर्स फंड के तहत घोषित कल्याण योजना में उन सभी बच्चों को शामिल किया जाना चाहिए, जो कोरोना के दौरान अनाथ हो गए। जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये टिप्पणी की। मामले की अगली सुनवाई 26 अगस्त को होगी।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस बात पर असंतोष जताया कि उसके आदेश के बावजूद कई राज्य सरकारें अनाथ बच्चों के बारे में जानकारी नहीं जुटा पाए हैं। कोर्ट ने आज पश्चिम बंगाल सरकार को खास तौर पर फटकार लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार 2020 से लेकर अब तक केवल 27 बच्चों के अनाथ होने की बात कह रही है जबकि सभी राज्यों के आंकड़े 6855 तक की है। कोर्ट ने कहा कि अगर पश्चिम बंगाल सरकार अनाथ बच्चों की संख्या का पता नहीं लगा पा रही है तो उसे किसी दूसरी एजेंसी को यह जिम्मा देना पड़ेगा।


दरअसल, सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि पीएम केयर्स योजना में उन बच्चों को शामिल किया गया है, जिन्होंने अपने माता-पिता या माता-पिता में से किसी एक को खोया है। इस योजना के तहत 23 साल तक की उम्र तक दस लाख रुपये के कोष का प्रस्ताव है। तब कोर्ट ने कहा कि योजना के तहत उन सभी बच्चों को कवर करना चाहिए जो कोरोना काल के दौरान अनाथ हो गए थे। कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले को स्पष्ट करने को कहा।

पिछले आठ जून को कोर्ट ने निर्देश दिया था कि एडॉप्शन विज्ञापनों और ऐसे बच्चों की तस्वीरें प्रकाशित कर पैसे मांगने वाले एनजीओ के खिलाफ सरकारें कड़ी कार्रवाई करें। कोर्ट ने कहा था कि अनाथ बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया में सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी का शामिल होना जरूरी है। कोर्ट ने कहा था कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के प्रावधानों से अलग कोई भी ऐडऑप्शन गैर-कानूनी है।

कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वे यह सुनिश्चित करे कि ऐसे बच्चे जिन्होंने कोरोना की वजह से अपने माता-पिता या दोनो में से किसी एक को खोया है उनकी पढ़ाई उस स्कूल में जारी रहे जिस स्कूल में वे पढ़ रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने जिलों के डिस्ट्रिक चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट को निर्देश दिया था कि ऐसे बच्चों को खाना, दवा, कपड़े, राशन का बंदोबस्त सुनिश्चित करें। सुप्रीम कोर्ट में दिए गए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के आंकड़े के मुताबिक 30071 बच्चों ने कोविड काल में अपने माता-पिता में से दोनों को या इनमें से एक को खोया है। आयोग के मुताबिक 26176 बच्चों ने दोनों में से एक को खोया है।

स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ता हालत पर केंद्र को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने देश में स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ता हालत पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। चीफ एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने नोटिस जारी किया।

याचिकाकर्ता ‘जन स्वास्थ्य अभियान’ ने बताया कि निजी अस्पताल मरीज़ों से ज़्यादा पैसे लेते हैं। कई छोटे निजी क्लिनिक बिना विशेषज्ञ डॉक्टर या उचित सुविधा के मरीज़ों को भर्ती कर इलाज करते हैं। याचिका में क्लिनिकल एस्टैबलिशमेंट एक्ट और क्लिनिकल एस्टैबलिशमेंट रुल्स के प्रावधानों को लागू करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है संविधान के तहत मिले स्वास्थ्य के अधिकार के लिए जरुरी है कि किफायती और गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधा मिले।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वकील संजय पारिख ने कहा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति और दूसरी कमेटियों की अनुशंसा के बाद क्लिनिकिल एस्टैबलिशमेंट एक्ट पारित किया गया। इसके तहत चिकित्सा की दर और चिकित्सा के मानक तय करने का प्रावधान है। इसके लिए नेशनल काउंसिल और राज्य काउंसिल के गठन का प्रावधान है। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर मैं सही हूं तो इन्हें रेगुलेट करने के लिए राज्य सरकारों के पास मेकानिज्म है। (एजेंसी, हि.स.)

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