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    बूथ कैप्चर और फर्जी Voters के साथ सख्ती से निपटा जाना चाहिए: Supreme Court

  • July 24, 2021

    नई दिल्ली। एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि बूथ कैप्चर करने और फर्जी मतदान करने वालों (Booth Capturers and Fake Voters) के साथ सख्ती से निपटा जाना चाहिए। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि बूथ कैप्चरिंग (Booth Capturers) न्याय के शासन और लोकतंत्र दोनों को प्रभावित करता है।

    कोर्ट ने कहा कि वोट देने की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए वोट की गोपनीयता जरूरी है। मामला झारखंड का है। झारखंड हाई कोर्ट ने 31 अक्टूबर 2018 को बूथ कैप्चरिंग करने के मामले में आठ लोगों को छह महीने की कैद की सजा के ट्रायल कोर्ट के फैसले पर मुहर लगाई थी। उन आठ लोगों में से सात लोगों ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने सातो लोगों की अपील को खारिज करते हुए छह माह की मिली सजा को बरकरार रखा।


    दरअसल, 26 नवंबर 1989 को आमचुनाव के दौरान झारखंड के पाटन पुलिस थाने में राजीव रंजन तिवारी ने एफआईआर दर्ज कराई गई थी। एफआईआर के मुताबिक चुनाव से एक दिन पहले शिकायतकर्ता भारतीय जनता पार्टी के लिए गांव गोल्हाना बूथ नंबर 132 से दो सौ मीटर दूर मतदाताओं को पर्ची बांट रहे थे। घटना के दिन सुबह दस बजकर चालीस मिनट पर नौडीहा गांव के आरोपी लाठी, डंडों औस देसी पिस्तौल के साथ पहुंचे। आरोपियों ने राजीव रंजन को मतदाताओं को पर्ची बांटने से मना किया। जब राजीव रंजन ने इससे इनकार किया तो आरोपी उन्हें लात, घूंसों और डंडों से पीटने लगे। सूचना मिलने पर राजीव रंजन के भाई वहां बचाने के लिए पहुचे। उसके बाद आरोपी दीनानाथ ने देसी पिस्तौल से गोली चला दिया जिससे राजीव रंजन घायल हो गए। आरोपी अजय सिंह ने दिनेश तिवारी पर गोली चलाई। उसके बाद गांव के काफी लोग दौड़े जिसके बाद सभी आरोपी मौके से भाग खड़े हुए।

    इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने सभी आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 323 और 147 का दोषी मानते हुए छह महीने की सजा दी। ट्रायल कोर्ट ने दीनानाथ सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 326 का दोषी करार देते हुए सात साल की और धारा 148 का दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई। ट्रायल कोर्ट ने एक और आरोपी अजय सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 324 के तहत दोषी करार देते हुए तीन साल और धारा 148 के तहत दोषी करार देते हुए दो साल की कैद की सजा सुनाई। ट्रायल कोर्ट के फैसले को आरोपियों ने हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज करते हुए सजा बरकरार रखी। (एजेंसी, हि.स.)

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