इंदौर। राजबाड़ा और उसके आसपास के बाजारों में निगम और पुलिस इसलिए कार्रवाई नहीं कर पाती, क्योंकि यहां एक दिन में करीब 50 हजार और पूरे माह 15 लाख रुपए की मोटी कमाई होती है। इसको वसूलने के लिए बाकायदा लोग तैनात कर रखे हैं, जो रोज उगाही करके अधिकारियों तक यह राशि पहुंचाते हैं।
वसूली का यह दौर बहुत पुराना है, जब एक दिन के 2 रुपए लेकर 5 और 10 रुपए तक वसूले जाते थे। हालांकि उस समय यहां इतना ट्रैफिक नहीं था। बस तब से ही यहां फुटपाथ और सडक़ पर ठेले लगना शुरू हो गए और आज राजबाड़ा के आसपास करीब ढाई सौ और इतने ही ठेले तथा फेरीवाले सीतलामाता बाजार तक फैले हुए हैं। गोपाल मंदिर को तो स्मार्ट सिटी में शामिल करते हुए यहां से अतिक्रमण हटाया और उन्हें दुकानें दीं, लेकिन फेरीवालों को हटा नहीं पाए। दरअसल इन्हें यहां से इसलिए नहीं हटाया जा सकता, क्योंकि हर दिन एक मोटी कमाई नगर निगम और पुलिस को होती है। एक दुकानदार से 100 से 200 रुपए तक प्रतिदिन लिए जाते हैं, जिससे एक दिन में यह कमाई 50 हजार रुपए के आसपास पहुंच जाती है। कई बार इन्हें हटाने की नौटंकी की गई, लेकिन दूसरे दिन ही यहां फिर ठेले वाले जम जाते हैं और ट्रैफिक जाम होता रहता है।
दुकान संचालकों ने अपने सहित पूरे कर्मचारियों को लगवा रखे हैं टीके
इंदौर में राजबाड़ा ही सबसे बड़ा व्यापारिक क्षेत्र है, जहां हर तरह के बाजार हैं। कृष्णपुरा छत्री से लेकर नंदलालपुरा, टोरी कार्नर, सीतलामाता बाजार, मारोठिया के बजाजखाना चौक और जवाहर मार्ग की बर्तन दुकानों तक राजबाड़ा का क्षेत्र लगता है, जहां बड़ी संख्या में थोक व खेरची दुकानें हैं। इन दुकानों के संचालकों ने कोविड प्रोटोकाल का पालन करते हुए स्वयं तथा कर्मचारियों को टीके लगवा लिए हैं, जबकि सडक़ और फुटपाथ रोककर धंधा करने वालों ने टीके लगवाए हैं या नहीं ये किसी को नहीं मालूम है। ऐसे में तीसरी लहर आती है तो कोरोना बढ़ाने में ये फुटपाथी दुकानदार संक्रमण का कारण बनेंगे, क्योंकि इंदौर के बाहर से जो भी आता है एक बार इस क्षेत्र में जरूरत आता है।
3 एसोसिएशन हुईं लामबंद
इंदौर रिटेल गारमेंट एसोसिएशन के साथ-साथ सराफा सोना-चांदी व्यापारी एसोसिएशन और बर्तन बाजार व्यापारी एसोसिएशन भी इस क्षेत्र से फुटपाथ पर हुए अतिक्रमण हटाने के पक्ष में साथ खड़ी हो गई हैं।
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