– मनोज कुमार
मन के अंधियारे को दूर करने के लिए एक दीपक जलाना जरूरी होता है. और जब भारतीय समाज बेटी की बात करता है तो उसके मन में एक किस्म की निराशा और अवसाद होता है. बेटी यानि परिवार के लिए बोझ. यह किसी एक प्रदेश, एक शहर या एक समाज की कहानी नहीं है बल्कि घर-घर की कहानी है. किसी राज्य या शहर में ऐसी सोच रखने वालों की कमी या अधिकता हो सकती है लेकिन हैं सब इस मानसिक बीमारी से ग्रस्त. मध्यप्रदेश इससे अछूता नहीं था. असमय बच्चियों का ब्याह, स्कूल भेजने में हील-हवाला करना और उनके स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही आम थी. लेकिन साल 2007, तारीख 1 अप्रेल जैसे बेटियों के भाग्य खुलने का दिन था.
इस दिन देश के ह्दयप्रदेश अर्थात मध्यप्रदेश बेटियों के भाग्य जगाने के लिए योजना आरंभ की थी-लाडली लक्ष्मी योजना. जैसा कि हमारा मन बना होता है सरकार की योजना है, कुछ नहीं होने वाला. कागज पर बना है और कागज पर ही दम तोड़ देगा. आहिस्ता आहिस्ता समय ने करवट ली और शहर से गांव तक बेटियों के हिस्से में खुशियां दस्तक देने लगी. सालों से सरकारी योजनाओं के बारे में बना भरम टूटने लगा. किसी को यकिन ही नहीं हो रहा था कि बेटी, बोझ नहीं, बेटी बरक्कत का सबब है. और आज जब इसमें एक नया पाठ मुख्यमंत्री शिवराजसिंह लिखते हैं कि लाड़ली लक्ष्मी योजना को शिक्षा और रोजगार से जोड़ा जाएगा तो किसी को शक नहीं होता है. बीते सालों के उनके अपने अनुभव सच के करीब होते हैं तो इस नए सबक पर कैसा शक?
2007 से लेकर 2021 तक की इस योजना की पड़ताल करें तो आप बहुत बारीक नहीं, मोटा-मोटा आंकड़ा भी देखें तो चौंक जाएंगे. इस समय लाडली लक्ष्मी योजना में 39 लाख 37 हजार बालिकाएं पंजीकृत हैं. राज्य में बेटियों को साहस और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए लाड़ली लक्ष्मी अधिनियम 2018 प्रभावशील है. लाड़ली लक्ष्मी निधि में 9,150 करोड़ रुपए जमा हैं. इस योजना में कक्षा 6 में प्रवेश पर 2 हजार रूपए, कक्षा 9 में प्रवेश पर 4 हजार रूपए, कक्षा 11 में प्रवेश पर 6 हजार रूपए और कक्षा 12 में प्रवेश पर 6 हजार रूपए की छात्रवृत्ति दी जाती है. 5 लाख 91 हजार 203 स्कूल जाने वाली लाडलियों को 136 करोड़ की छात्रवृत्ति का अब तक वितरण किया जा चुका है. 12वीं की परीक्षा में शामिल होने लाडली और 18 वर्ष की आयु तक विवाह न करने तथा 21 वर्ष पूर्ण होने पर एक लाख रुपये भी उसके भावी जीवन के लिए सरकार की ओर से दिया जाता है.
लाडली लक्ष्मी योजना के बाद जैसे मां-बाप का मन बदलने लगा. प्रदेश में लगातार बाल विवाह का ग्राफ गिरने लगा. बेटियों को बरक्कत मानकर उन्हें पढ़ाने पर जोर दिया जाने लगा. उनके स्वास्थ्य को लेकर भी समाज में जागरूकता आयी. लैंगिक विभेद को लेकर भी लोगों का मन बदलने लगा. मध्यप्रदेश में लैंगिग समानता के लिए एक नया माहौल बनने लगा है. लाडली लक्ष्मी योजना के पहले बेटियों को लेकर जो भाव था, वह निराश कर रहा था. हालांकि इसके पहले भी योजनाएं बनी लेकिन वह बेटियों के आंगन में रोशनी पहुंचा पाती, इसके पहले दम तोड़ दे रही थीं.
बेटियों को लेकर लगातार चिंता करने वाले मध्यप्रदेश ने देश के अन्य राज्यों के लिए आदर्श बनकर खड़ा हुआ है. अलग अलग नाम के साथ लाडली लक्ष्मी योजना अन्य राज्यों में लागू है. लाडली लक्ष्मी योजना अपने आरंभिक चरण में लोगों के मन में विश्वास उत्पन्न करने में कामयाब रही. अब इसे विस्तार देते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंशा जतायी है कि अब एक कदम आगे बढक़र लाड़ली लक्ष्मी योजना को शिक्षा और रोजगार से जोड़ा जाएगा। लाड़ली लक्ष्मी योजना में पंजीकृत बेटियां सशक्त, समर्थ, सक्षम और आत्म-निर्भर बनकर समाज में योगदान दें, इसके लिए लाड़ली लक्ष्मियों को उच्च शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, रोजगार, स्व-रोजगार आदि के लिए हरसंभव मार्गदर्शन और प्रोत्साहन उपलब्ध कराया जाएगा. लाड़ली लक्ष्मी योजना में बालिकाओं के आर्थिक सशक्तिकरण, कौशल संवर्धन और उन्हें आत्म-निर्भर बनाने के लिए आवश्यक व्यवस्था की जाएगी।
12वीं कक्षा पास करने के बाद लाड़ली लक्ष्मी की रूचि, दक्षता और क्षमता के अनुसार उच्च शिक्षा या तकनीकी/व्यवसायिक शिक्षा के लिए आवश्यक मार्गदर्शन और प्रोत्साहन उपलब्ध कराया जाएगा. इसके पहले लाड़ली लक्ष्मी योजना में पंजीकृत सभी बालिकाओं की शिक्षा की निरंतरता के लिए कक्षावार ट्रेकिंग किये जाने की योजना है. लाड़ली के पहली में प्रवेश लेने से लेकर 12वीं कक्षा तक ट्रेकिंग के लिए पोर्टल विकसित किया जाएगा. पंजीकृत बालिकाओं को 12वीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी करने पर आगे की शिक्षा अथवा व्यवसायिक प्रशिक्षण के लिए प्रोत्साहन स्वरूप 20 हजार रूपए की राशि उपलब्ध कराई जाएगी। एक लाख रूपए में से शेष 80 हजार रुपए का भुगतान 21 वर्ष की आयु पूर्ण करने पर होगा। बालिकाओं के सर्वांगीण विकास के लिए योजना को स्वास्थ्य और पोषण से भी जोड़ा जाएगा।
मुख्यमंत्री का मानना है कि लाड़ली लक्ष्मी योजना को आर्थिक सहायता वाली योजना से बाहर लाकर बालिकाओं को यह अनुभव कराना होगा कि वे अपने माता-पिता और समाज के लिए विशेष महत्व रखती हैं। उन्हें विश्वास देना होगा कि वे जीवन में नए आयाम और उपलब्धियां प्राप्त कर सकती हैं। समाज में यह धारणा भी स्थापित करना है कि बेटी बोझ नहीं बुढ़ापे का सहारा है। मध्यप्रदेश देश ह्दय प्रदेश है और यह ह्दय बेटियों के लिए धडक़ता है क्योंकि बेटी और जल हमारा कल बनाती ही नहीं, संवारती भी है.
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