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    अवसादग्रस्त जीवन-शैली से कैसे मिलेगी निजात?

  • July 17, 2021

    – अली खान

    मौजूदा वक्त में मानव जीवन कई दुश्वारियों से गुजर रहा है। आज सबसे बड़ी चुनौती मानसिक संतुलन को बनाए रखने की है। इस प्रगतिशील दौर में मानव की अनन्त चाह ने जीवन को खासा प्रभावित किया है। पिछले कुछ समय से आत्महत्या, अवसाद, तनाव की बातें बहुत ज्यादा देखने-सुनने को मिल रही हैं। इसकी एक ही वजह है मानसिक संतुलन बरकरार नहीं रख पाना। आज कुछ पाने की चाहत में लोग बहुत कुछ गंवा रहे हैं। दुश्चिंताओं में दिनों-दिन तेजी के साथ इजाफा हो रहा है। इसके चलते लोग आत्मविश्वास, सहनशक्ति और स्पष्ट जीवन लक्ष्य एवं संवेगों से नियंत्रण खो रहे हैं।

    आखिर मानसिक स्वास्थ्य किस स्थिति का नाम है? मनोविज्ञानी कुप्पुस्वामी मानसिक स्वास्थ्य को परिभाषित करते हुए लिखते हैं कि दैनिक जीवन में इच्छाओं, भावनाओं, आदर्शों तथा महत्त्वाकांक्षाओं में संतुलन स्थापित करने की योग्यता का नाम ही मानसिक स्वास्थ्य है। यह हकीकत है कि आज मानव अपनी इच्छाओं पर से नियंत्रण खोता जा रहा है। अपनी जीवन शैली को इतना दूषित कर रखा है, जिसकी कोई सीमा नहीं है। यदि मानव जीवन को सुखमयी बनाना है तो आवश्यक शर्त यह है कि अपने मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल और विचारों में शुद्धता के साथ-साथ यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाए। इसके अलावा अपने भीतर संतुष्टि की भावना, सहयोग की भावना, पर्यावरण के प्रति सहानुभूति जैसे गुणों को विकसित कर लेता है तो मानव मानसिक रूप से ही नहीं, शारीरिक रूप से भी खुद को बेहतर पाएगा।

    यदि हम मौजूदा वक्त की बात करें तो सबसे बड़ी चुनौती कोरोना वायरस प्रस्तुत कर रहा है। कोरोना वायरस ने दुनिया के लगभग सभी देशों की अर्थव्यवस्था को धराशायी कर दिया है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई प्रयत्न किए जा रहे हैं। इन दिनों महंगाई शिखर छू रही है। कोरोना वायरस की दूसरी लहर के कारण लोगों की आमदनी पर बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। कोरोना काल ने लोगों को भय और आर्थिक विषमताओं से दो-चार होने को विवश कर दिया है। इसके चलते अवसाद की समस्या में बढ़ोतरी हुई है। इसी चलते 2019 के मुकाबले 2020 में आत्महत्याओं के मामलों में इजाफा हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि 2019 की तुलना में 2020 में आत्महत्या के 499 मामले बढ़े हैं।

    जानकारों की मानें तो आत्महत्या की वजह सामाजिक, आर्थिक व चिकित्सकीय है। सामाजिक कारणों में अफेयर, शादीशुदा जिंदगी से जुड़ी चीजें, परिवार और मित्रों के साथ आने वाली दिक्कतों ने अवसाद और तनाव की स्थिति पैदा की जिसके चलते कई लोगों ने मौत को गले लगाया। आर्थिक कारणों में बिजनेस का डूबना, नौकरी का छूटना, आय का साधन न होना और कर्ज जैसी समस्याओं ने मानसिक स्वास्थ्य को खासा प्रभावित किया है। वहीं चिकित्सकीय कारणों में लाइलाज शारीरिक और मानसिक बीमारी, गहरा डिप्रेशन, बुढ़ापे की परेशानी और अकेलापन शामिल हैं। ऐसी कई दुश्वारियों के चलते अवसाद की परिस्थितियां पनपी और आत्महत्या का रास्ता अपनाया।

    भारत के लिए समस्या यहीं खत्म नहीं हो जाती, सबसे बड़ी समस्या देश की युवा आबादी के जीवन से होते मोहभंग की है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में सबसे ज्यादा आत्महत्या करने वाली आबादी की उम्र 18 से 30 वर्ष के बीच की है। ऐसे में यह वाकई बेहद चिंताजनक है। युवा आबादी को अवसाद की स्थिति से बाहर लाने के लिए न केवल सामाजिक बल्कि सरकारी प्रयासों की भी बहुत जरूरत है। युवा आबादी कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि स्कूल बंद होने से युवाओं की शिक्षा, जीवन और मानसिक कल्याण पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि दुनिया भर में महामारी के दौरान 65 फीसद किशोरों की शिक्षा में कमी आई है। इसके साथ ही बहुत बड़ी आबादी के हाथों से रोजगार चला गया है।

    जरूरत इस बात की है कि सरकार को रोजगार के अवसर सुलभ कराए। इसके अलावा एक हेल्पलाइन सेवा भी शुरू की जानी चाहिए। जहां युवा अपनी मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं के हल प्राप्त कर सके। युवा आबादी की क्षमताओं का लाभ उठाना है तो सामाजिक बुनियादी ढांचे में अच्छा स्वास्थ्य, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में सुधार के लिए निवेश की जरूरत है। इसके साथ योग्यता के अनुरूप रोजगार के अवसर मुहैया कराने की जरूरत है।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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