भोपाल। मप्र कभी सोया राज्य के रूप में जाना जाता था, लेकिन अब यहां के किसान सोयाबीन (Soybean) नहीं बोना चाहते हैं। वह कहते हैं कि लगातार घाटे और मौसम की मार से अब सोयाबीन (Soybean) बोना खतरे से खाली नहीं है। पिछले साल उन्होंने सोयाबीन (Soybean) बोया था पर उसमें पौधा अच्छा होने के बाद भी फल नहीं लगे थे, इसका कारण वह अप्रमाणित बीज को मानते हैं।इस साल भी सोयाबीन (Soybean) फसल बोने का समय हो गया है और प्रदेश में बीज का संकट बना हुआ है। यह कहानी केवल मनीष की नहीं है। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के उन सभी जिलों में जहां सोयाबीन (Soybean) बहुतायत से बोया जाता है, ऐसी ही खबरें आ रही हैं।
सोयाबीन (Soybean) का गिरता उत्पादन और पिछले कई सालों से लगातार हो रहा घाटा। वैसे हर साल ही सोयाबीन (Soybean) की फसल में कई तरह की दिक्कतें सामने आती रही हैं, लेकिन इस साल की शुरुआत में बीज का संकट खड़ा हो गया है। मप्र के कई जिलों से प्रमाणित बीज नहीं मिल रहे हैं, किसान बाजार से अप्रमाणिक बीज खरीद रहे हैं, जिसकी कीमत साढ़े दस हजार रुपए प्रति क्विंटल तक है। उस पर भी अंकुरण की कोई गारंटी नहीं है। सरकार भी मांग के अनुपात में बीज की आपूर्ति नहीं कर पा रही है।
बीज के फेर में फंसा किसान
दरअसल, सालों पहले जब मशीनें से ज्यादा काम नहीं होता था, तब किसान खुद ही सोयाबीन का बीज संरक्षित कर लेता था, लेकिन पिछले एक दशक में मशीनों की उपलब्धता ने ज्यादातर कटाई का काम हारवेस्टर से ही हो रहा है। हारवेस्टर से निकला हुआ दाना बीज बनने लायक नहीं होता है, इससे हर साल बीज खरीदना किसान की मजबूरी है। बीज बनाने का काम दो तीन स्तरों पर किया जा रहा है। इसमें एक हिस्सा सरकारी बीज निगम से पूरा होता है, दूसरा हिस्सा खुले बाजार में गैर सरकारी संस्थाओं के माध्यम से बीज वितरण का काम होता है और तीसरा हिस्सा किसानों द्वारा एक दूसरे को बीज बेचकर किया जाता है, लेकिन इसके बावजूद भी बीजों के मामले में कई लोचे हैं।
रकबा बढ़ा, उत्पादन घटा
मप्र के आर्थिक सर्वेक्षण में प्रकाशित आंकड़े कि आंकड़े बताते हैं कि पिछले सालों की अपेक्षा सोयाबीन क्षेत्र का रकबा 14 प्रतिशत तक बढ़ा है। हालांकि इससे उत्पादन नहीं बढ़ा, मप्र में पिछले साल कुल तिलहन फसलों के उत्पादन में 27 प्रतिशत की कमी आई है जबकि सोयाबीन के कुल उत्पादन में पिछले साल की तुलना में 33.62 प्रतिशत की कमी आई है। इसका एक कारण खराब मौसम भी है। प्रोफेसर कश्मीर सिंह उप्पल कहते हैं कि बेमौसम भारी बारिश या अतिवृष्टि इसमें लगातार घाटा हुआ है और लोग इससे दूर हो रहे हैं। फसल बीमा के आंकड़ों को देखें तो यह बात सही भी लगती है। वर्ष 2020 में जहां रबी फसल में 8.95 लाख किसानों को फसल बीमा मिला, जबकि खरीफ के सीजन में 95 लाख किसानों ने फसल खराब होने का दावा प्रस्तुत कर बीमा लिया है। हालांकि बीमा की राशि नुकसान की तुलना में काफी कम है।
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