डॉ. वेदप्रताप वैदिक
अमेरिका के प्यू रिसर्च सेंटर ने भारत की जनता के बारे में एक बड़ा रोचक सर्वेक्षण उपस्थित किया है। उसने भारत के लगभग तीस हजार लोगों से पूछताछ करके कुछ निष्कर्ष दुनिया के सामने रखे हैं। उसने भारत के विभिन्न धर्मों के प्रति लोगों की राय इकट्ठी की है। उस राय को पढ़कर लगता है कि धर्म-निरपेक्षता या पंथ-निरपेक्षता की दृष्टि से भारत दुनिया का शायद सर्वश्रेष्ठ देश है।
इस सर्वेक्षण में भारत के हिंदू, मुसलमान, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और आदिवासियों से भी सवाल पूछे गए थे। 84 प्रतिशत लोगों ने कहा कि किसी भी ‘सच्चे भारतीय’ के लिए यह जरुरी है कि वह सभी धर्मों का सम्मान करे। 80 प्रतिशत लोगों ने कहा कि भारत में उनको उनके धर्म के पालन की पूर्ण स्वतंत्रता है। लेकिन उनमें से ज्यादातर लोगों ने कहा कि उनका गहरा संबंध और व्यवहार प्रायः अपने ही धर्म के लोगों के साथ ही होता है। उनका यह भी मानना था कि अंतरधार्मिक विवाह अनुचित हैं। कुछ हिंदुओं की मान्यता यह भी थी कि सच्चा भारतीय वही हो सकता है, जो हिंदू है या हिंदीभाषी हैं इस तरह की बात कहनेवाले कौन लोग हो सकते हैं ?
यह सर्वेक्षण इस प्रश्न का जवाब नहीं देता है लेकिन हम अंदाज लगा सकते हैं। ये लोग वे हो सकते हैं, जिन्हें हम बुद्धिजीवी नहीं कह सकते हैं। ये साधारण समझवाले लोग हैं। यह जरुरी नहीं कि इनके दिलों में अहिंदुओं या अहिंदीभाषियों के लिए कोई कटुता या दुर्भावना ही हो। अपनी मोटी समझ और उथले अनुभव के आधार पर उन्होंने अपनी उक्त राय जाहिर की होगी लेकिन खान-पान को लेकर तो लगभग सभी लोगों की राय साफ और लगभग एक-जैसी है।
याने जो गोमांस खाए, वह हिंदू नहीं हो सकता और जो सूअर का मांस खाए, वह मुसलमान नहीं हो सकता। इसी प्रकार जातीय समीकरणों के बारे में ज्यादातर लोगों की राय (64 प्रतिशत) यह है कि अंतरजातीय विवाह नहीं होने चाहिए। अंतरधार्मिक विवाहों के बारे में भी ज्यादातर लोगों (64 प्रतिशत) की राय यही है। मेरी समझ में भारत की एकता और समरसता के लिहाज से यह राय ठीक नहीं है, हालांकि इन धार्मिक और जातीय बंधनों का टूटना आसान नहीं है।
इन बंधनों को चूर-चूर होते हुए अपनी आंखों से मैंने अंडमान-निकोबार और सूरिनाम में देखा है। एक ही परिवार में विभिन्न धर्मों के पति-पत्नी को मैंने बहुत प्रेम से रहते हुए देखा है। मोरिशस में अंतरजातीय परिवारों की भरमार है। मेरे अपने मित्रों के ऐसे सैकड़ों परिवार देश-विदेश में हैं, जो अंतरधार्मिक और अंतरजातीय हैं। यह कितनी विचित्र बात है कि लोग मुसलमान और ईसाई तो बन जाते हैं लेकिन वे अपनी जात नहीं भूल पाते हैं। इसे मेरे कुछ पाकिस्तानी मित्र ‘हिंदुआना हरकत’ कहते रहे हैं। भारत के इस जातिवाद के आगे इस्लाम और ईसाइयत भी पस्त है। लेकिन मैं अपने पाकिस्तानी मित्रों से पूछता रहता हूं कि सब धर्मों के प्रति सहनशीलता की यह ‘हिंदुआना आदत’ सभी मजहबी लोग क्या कभी अपने में पैदा कर पाएंगे ?
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