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धीरे धीरे गुम हो रहे हैं पक्षी, खामोश हो रही हैं उनकी आवाजें

June 22, 2021


ऑक्सफोर्ड (ब्रिटेन)। पक्षी विज्ञानी इस बात से खासे परेशान हैं कि अब रात में गूंजने वाले प्रकृति(Nature) के संगीत की जगह वाहनों के शोर ने ले ली है और धीरे धीरे जंगल खामोश होते चले जा रहे हैं, फलस्वरूप पक्षी(Birds) भी धीरे धीरे गुम हो रहे हैं और उनकी आवाजें (voices) भी खामोश (silent) हो रही हैं।यहां हम बता रहे है ऐसे ही एक पक्षी विज्ञानी की दास्तां।



मैं आज भी उस मधुर स्वर को नहीं भूला, जब मैंने पहली बार बुलबुल का गीत सुना था। यह 8 मई 1980 का दिन था, और एक पर्यावरण जीव विज्ञान के एक नव स्नातक के तौर पर, मैं ऑक्सफोर्ड (Oxford) चला आया था।
नौकरी की तलाश करते हुए, मैंने स्वेच्छा से काउंटी संग्रहालय में स्थित ऑक्सफ़ोर्डशायर बायोलॉजिकल रिकॉर्ड्स योजना के लिए पक्षी अभिलेखों को प्रतिलेखित किया। यहाँ मैंने पाया कि बुलबुल एक ऐसा पक्षी है जो आसपास दिखाई दे सकता है और संग्रहालय के एक मित्र ने मुझे सलाह दी कि इसे कहां देखना बेहतर होगा।
उसकी सलाह पर मैं एक सुरमई, शांत, ठहरी हुई चांदनी रात में, ऑक्सफोर्ड से चार मील पूर्व में गया, जहां, न तो वाहनों का शोर था और न ही किसी तरह का कृत्रिम प्रकाश और इस माहौल में मैंने उस अद्भुत समृद्ध संगीत को सुना, जिसका मैंने लंबे समय तक इंतजार किया था। मेरी नोटबुक में जो रिकॉर्ड हुआ वह पांच, अलग-अलग बुलबुल की विशिष्ट आवाजें थीं- व्हाइटक्रॉस ग्रीन वुड से उत्तर की ओर एक मील की दूरी पर, वाटरपेरी वुड से दक्षिण की ओर और बर्नवुड फॉरेस्ट से मेरे दक्षिण-पूर्व में।
एक पक्षी विज्ञानी के रूप में, मैं जानता था कि ये पक्षी हाल के हफ्तों में पश्चिम अफ्रीका से आए थे, अपनी जान जोखिम में डालकर यह सहारा को पार करके इन गीत गाने वाली बुलबुलों की टोली में शामिल होने यहां चली आई थीं। यहां, उन्होंने आसपास की मादा बुलबुलों को अपनी सुरीली कूक के साथ यह संदेश दिया कि अपनी आवाज से जादू पैदा करने के लिए उन्हें एक मुनासिब स्थान मिल गया है।


दस साल बाद, एम40 मोटरवे को ऑक्सफोर्ड से आगे बढ़ा दिया गया, जिससे सारा नजारा बदल गया अब रात में गूंजने वाले प्रकृति के संगीत की जगह वाहनों के शोर ने ले ली और धीरे धीरे ये जंगल खामोश होते चले गए। अगले कुछ वर्षों में, मुझे ऑक्सफ़ोर्ड के आसपास ब्रासेनोज़ वुड, ओटमूर स्पिनी और यहां तक कि किडलिंगटन में एक बगीचे में बुलबुल की खोज करके बहुत खुशी हुई। 1982 में विथम वुड्स में, जहां मुझे शोध सहायक के रूप में काम मिला था, मुझे पांच नर बुलबुल मिलीं, यहां मुझे यह भी पता चला कि रात में बुलबुल का मधुर गीत मधुलता की मादक सुगंध में घुलकर और भी मीठा हो जाता है।पक्षियों के नामों पर मेरे शोध से पता चलता है कि पक्षियों के साथ इस तरह की मुलाकात हमेशा एक गहरे और बड़े पैमाने पर बिना रिकॉर्ड वाले मानव इतिहास का हिस्सा रही है।

 

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