उज्जैन। कोरोना की पहली लहर के बाद आई दूसरी लहर अधिक घातक रही। दूसरी लहर ने मनुष्यों को ही नहीं मौसमी बीमारियों को भी प्रभावित किया है। इस मौसम में आने वाली तमाम बीमारियां कोरोना में शामिल हो गई। आलम यह रहा जिन लोगों को टाइफाइड की शिकायत थी, उन्होंने ने भी कोरोना का इलाज लिया। यानी बीमारी कोई भी पर इलाज कोरोना का चला। इसका लाभ मिला तो कुछ हानि भी मरीजों को उठानी पड़ी।
डॉक्टरों ने भी मान लिया कि जो भी लक्षण आ रहे हैं वह सब कोरोना के ही हैं, पर हकीकत में ऐसा नहीं था। जिन लोगों की कोरोना जांच निगेटिव आई उन्हें भी चिकित्सकों ने इलाज कोरोना का ही दिया। यही नहीं शासन से जारी मेडिकल किट की दवाओं का सेवन लोगों ने बीमार होने पर बिना कोरोना जांच कराए ही किया। लोगों में इसके दुष्प्रभाव भी देखने को मिले। मौसमी बीमारियों के शिकार बने लोगों की कोरोना जांच तो निगेटिव आई पर उन्हें इलाज लक्षण आधार पर कोरोना का ही दिया गया। ऐसे लोगों ने स्टेरॉयड का सेवन किया तो उनमें कई तरह के दुष्परिणाम भी देखने को मिले। जिसे टाइफाइड अन्य कोई मौसमी बीमारी है। यदि उन मरीजों को स्टोरॉयड दिया गया तो उन्हें ब्लड प्रेशर, शुगर की समस्या हो सकती है। साथ ही बुखार की तीव्रता तो घटेगी पर समय पर समाप्त न होकर लंबे समय में ठीक होगा। इसी तरह से बुखार लंबा चला तो हायर एंटीबायटिक का प्रयोग भी हानिकारक रहेगा।
कोरोना केवल नाम, इलाज लक्षणों से चला
चिकित्सकों के अनुसार कोरोना महामारी का कोई इलाज नहीं था, इसलिए व्यक्ति की रिपोर्ट पाजिटिव रही हो या निगेटिव, उसका इलाज लक्षण के आधार पर ही चला है। जिस तरह के लक्षण या परेशानी, उसी तरह से उसका इलाज किया गया। एंटीबायोटिक से लेकर स्टेरॉयड का प्रयोग भी व्यक्ति की आवश्यकता के अनुसार ही चिकित्सकों ने किया है।
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