भोपाल। पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए चंद्रमा पर बुद्ध पूर्णिमा पर पृथ्वी की छाया पड़ी थी। अब चंद्रमा पृथ्वी के सामने की ओर आकर पृथ्वी पर अपनी छाया देने की तैयारी में है । नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने बताया कि शनि अमावस्या 10 जून को सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाएगा । इस समय चंद्रमा के पृथ्वी से दूर रहने के कारण जिससे चंद्रमा की उल्टीघनी छाया पृथ्वी पर पड़ेगी । उल्टीघनी छाया वाले स्थान से सूरज कंगन की तरह दिखाई देगा जिससे बीच के भाग में तो घना अंधेरा रहेगा लेकिन सूरज का बाहरी किनारा कंगन की तरह चमक रहा होगा। चंद्रमा का आकार छोटा होने के कारण इसकी घनी छाया पृथ्वी के केवल कनाडा ,ग्रीनलैंड में पड़ेगी यहां वलयाकार सूर्यग्रहण या एन्यूलर सोलर इकलिप्स होगा ।
उत्तरी अमेरिका के उत्तरी भाग, यूरोप और एशिया के कुछ देशों में चंद्रमा की उपछाया पड़ेगी यहां आंशिक सूर्यग्रहण या पार्शियल सोलर इकलिप्स के रूप में दिखेगा । इसमें सूरज का कुछ भाग ही चमकता दिखेगा ।सारिका ने बताया कि भारत के अरुणाचल प्रदेश के पूर्वीउत्तरी स्थानों पर यह अस्त होते सूर्य के साथ कुछ मिनट के लिए आंशिक ग्रहण के रूप में दिखेगा जिससे सूर्य का एक कोना का लगभग आधा प्रतिशत भाग ही चंद्रमा की छाया में होगा!
यहां सूर्य का 99प्रतिशत से अधिक भाग चमक रहा होगा
पृथ्वी के निश्चित भूभाग पर ग्रहण की यह घटना भारतीय समयानुसार दोपहर 1बजकर 42 मिनिट पर आरंभ होगी तथा शाम 6बजकर 41 मिनिट पर समाप्त होगी ।यह इस साल का पहला सूर्य ग्रहण होगा ।सारिका ने बताया कि सूर्यग्रहण तब होता है जब चंद्रमा अमावस्या के दिन पृथ्वी और सूर्य के बीच एक सीधी रेखा में आता है तीनों पिंडों की स्थिति के आधार पर चार प्रकार के सूर्य ग्रहण होते हैं!
पूर्ण सूर्यग्रहण -जिसमें पृथ्वी का कुछ भाग चंद्रमा की बाहरी छाया में से गुजरता है
वलयाकार सूर्यग्रहण – जिसमें पृथ्वी का कुछ भाग चंद्रमा की उल्टीघनी छाया क्षेत्र में से होकर गुजरता है तथा जहां से चंद्रमा सूर्य की डिस्क के अंदर दिखाई देता है जिससे चंद्रमा के चारों ओर चमकता वलय दिखाई देता है । जैसा इस बार कनाडा, ग्रीनलैंड में होगा ।
आंशिक सूर्यग्रहण – जिसमें पृथ्वी का कुछ भाग चंद्रमा की विरल छाया से गुजरता है। जैसा इस बार अरुणाचल प्रदेश के कुछ भू भाग पर होगा ।
हाईब्रिड सूर्यग्रहण – यह एक दुर्लभ प्रकार का सूर्य ग्रहण है जिससे एक ही सूर्यग्रहण के दौरान पृथ्वी पर ग्रहण के केंद्रीय मार्ग पर कुछ लोगों को पूर्ण सूर्यग्रहण दिखाई देता है और कुछ लोगों को वलयाकार सूर्यग्रहण दिखाई देता है। आगामी 20 अप्रैल 2023 को हाईब्रिड सूर्यग्रहण होगा लेकिन हाईब्रिड की घटना भारत से नहीं दिखाई देगा ।
सारिका ने बताया कि उज्जैन सहित मध्य प्रदेश एवं देश के अधिकांश भागों में सूर्य ग्रहण को देखने के लिए 25 अक्टूबर 2022 का इंतजार करना होगा जिसमें तो फिर बाद 1 घंटे से अधिक समय तक आंशिक सूर्यग्रहण देखा जा सकेगा सारिका के जानकारी दी कि वैज्ञानिक गणना के अनुसार 5000 सालों में पृथ्वी पर होने वाले 11898 सूर्य ग्रहण की घटना होनी है। जिनमें से चारों प्रकार की सूर्य ग्रहण इस प्रकार होंगे ।
आंशिक सूर्यग्रहण——— 4200 ———35.3 प्रतिशत
वलयाकार सूर्यग्रहण——— 3956——— 33.2 प्रतिशत
पूर्ण सूर्यग्रहण ———3173 ——— 26.7 प्रतिशत
हाईब्रिड सूर्यग्रहण ———0569 ——— 04.8 प्रतिशत
कुल सूर्यग्रहण——— 11898
सारिका ने संदेश दिया कि सौरमंडल के जन्म के बाद से ही इन खगोलीय पिंडों की परिक्रमा करते रहने से ग्रहण होने की घटना निरंतर होती आ रही है और आगे भी होती रहेगी। अब समय आ गया वैज्ञानिक सोच को आगे बढ़ाने का।