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    कोरोना से जंग जीत चुके लोग जीबी सिंड्रोम के बन रहे शिकार, जानें क्‍या है वजह

  • June 08, 2021

    कोरोना से जंग जीत चुके लोगों के लिए उनके शरीर में बन रही एंटीबॉडी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) ही मुसीबत बनने लगी है। कोरोना से उबर रहे कुछ लोगों में अनियंत्रित रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) विकसित होने के कारण वे जीबी (गुलियन बेरी) सिंड्रोम का शिकार हो रहे हैं। इससे उनकी गर्दन के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो जा रहा है। ये उन लोगों को हो रहा है जो कोरोना पॉजिटिव (corona positive) से निगेटिव हो चुके हैं और उनमें सांस फूलने की तकलीफ कुछ ज्यादा ही है। ऐसे लोगों की जब एंटीबॉडी जांच कराई जाएगी तो इनमें एंटीबॉडी टाइटर (antibody titer) सामान्य से बहुत ज्यादा मिले।

    केस नंबर एक
    भीखनपुर गुमटी नंबर 12 निवासी 54 साल के अधेड़ को 22 अप्रैल को कोरोना हुआ था। दस दिन बाद कोरोना निगेटिव होने के बावजूद उसकी तबीयत में खास सुधार नहीं दिखा। इस दौरान सांस फूलता रहा और एचआरसीटी रिपोर्ट 18/25 आई। निजी अस्पताल में भर्ती हुआ तो उसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक बनने के कारण जीबी सिंड्रोम होना मिला।



    केस नंबर दो
    गोड्डा निवासी 43 साल के युवक को कोरोना हुआ तो उनके परिजन 13 मई को मायागंज अस्पताल में भर्ती कराने के लिए पहुंचे। यहां पर उनमें जीबी सिंड्रोम (GB syndrome) के लक्षण मिले तो डॉक्टरों की सलाह पर परिजनों ने उन्हें निजी अस्पताल में भर्ती करा दिया। 13 दिन से आईसीयू में भर्ती रहने के बावजूद शरीर के अंगों में पहले जैसी जान नहीं है। तीन दिन पहले आईसीयू से एचडीयू में शिफ्ट कर उनका इलाज किया जा रहा है।

    मायागंज में हो चुका है सात मरीजों का इलाज
    मायागंज अस्पताल (Mayaganj Hospital) के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजकमल चौधरी बताते हैं कि कोविड की दूसरे लहर (15 मार्च से लेकर अब तक) में अब तक जिले में जीबी सिंड्रोम के एक दर्जन मामले जांच में पाए जा चुके हैं। इनमें से सात मरीजों का अब तक मायागंज अस्पताल में इलाज हो चुका है, जबकि चार मरीजों का शहर के दो निजी अस्पताल में और एक मामला मायागंज अस्पताल में पाया गया है। ज्यादातर जीबी सिंड्रोम के मरीज ऐसे मिले जिन्हें पूर्व में कोरोना हुआ था। जब उन्हें परेशानी हुई तो वे दोबारा अस्पताल में भर्ती हुए, जहां जांच में उन्हें जीबी सिंड्रोम मिला। ऐसे मरीजों को चार ग्राम प्रति किलोग्राम के हिसाब से पांच दिनों तक आईवीआईजी डोज दिया गया। लेकिन मरीजों को अस्पताल में तीन से चार सप्ताह तक रहकर इलाज कराना पड़ा।

    शरीर के खिलाफ ही काम करने लगती है एंटीबॉडी
    जीबी सिंड्रोम में मरीज के शरीर के खिलाफ ही एंटीबॉडी काम करने लगती है। डॉ. राजकमल ने बताया कि शरीर में वायरस के प्रवेश करने के बाद उसका शरीर रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) एंटीबॉडी बनाकर उससे लड़ती है। एंटीबॉडी शरीर में घुसे कोरोना के वायरस को निष्क्रिय करके उसे खत्म कर देती है। इससे कोरोना संक्रमित व्यक्ति निगेटिव हो जाता है। लेकिन कभी-कभी कोरोना संक्रमितों में एंटीबॉडी बनने की प्रक्रिया अनियंत्रित हो जाती है। इससे शरीर में बन रही एंटीबॉडी शरीर के (मस्तिष्क लेकर रीढ़ की हड्डी तक) तंत्रिका तंत्र से जुड़े नसों पर नकारात्मक प्रभाव डालने लगती है। डॉ. चौधरी ने बताया कि सांस संबंधी संक्रमण के बाद जीबी सिंड्रोम होने का खतरा ज्यादा होता है। फ्लू, पाचन तंत्र में संक्रमण, फूड प्वायजनिंग (food poisoning) के कुछ मरीजों में भी जीबी सिंड्रोम की बीमारी पाई गई है। अधिकतर मरीजों की हालत गंभीर होने के बावजूद वे ठीक हो जाते हैं। इसमें अगर देरी होती है तो पांच में से एक मरीज को लकवा मार देता है।

    कमजोरी हो तो हो जाएं सतर्क
    मायागंज अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ. पंकज कुमार ने बताया कि जीबी सिंड्रोम से पीड़ित कुछ मरीज ऐसे मिले जो कि पूर्व में कोरोना संक्रमित मिले। ऐसे मरीजों में शरीर में नीचे से ऊपर की तरफ के अंगों की ताकत कम होने लगती है। कमजोरी महसूस होने लगती है और बीमारी अधिक हो जाए तो मरीज को खाना निगलने से लेकर सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। ऐसे मरीजों का इलाज लंबे दिन तक चलता है।

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