रमेश सर्राफ
हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिन लोगों को विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये प्रकृति को संरक्षित रखने और इससे खिलवाड़ न करने के लिए जागरूक किया जाता हैं। इन कार्यक्रमों के जरिये लोगों को पेड़-पौधे लगाने, पेड़ों को संरक्षित करने, हरे पेड़ न काटने, नदियों को साफ रखने और प्रकृति से खिलवाड़ न करने जैसी चीजों के लिए जागरूक किया जाता है। इस बार हम सबको मिलकर पृथ्वी को प्रदूषण मुक्त बनाने का संकल्प लेकर उस दिशा में काम करना प्रारम्भ करना चाहिये।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1972 में पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था। लेकिन विश्व स्तर पर इसके मनाने की शुरुआत 5 जून 1974 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुई थी। जहां 119 देशों की मौजूदगी में पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन किया गया था। साथ ही प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था। इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का गठन भी हुआ था। पिछले वर्ष देश की जनता को लॉकडाउन के कारण बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। मगर लाकडाउन का वह समय पर्यावरण की दृष्टि से अबतक का सबसे उत्तम समय रहा था। उस दौरान शहरों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी वायु प्रदूषण का स्तर घटकर न्यूनतम स्तर पर आ गया है। देश की सभी नदियों का जल पीने योग्य हो गया था। जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। पूरी दुनिया में पिछले वर्ष जैसा पर्यावरण दिवस शायद ही फिर कभी मने।
सरकार हर वर्ष नदियों के पानी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अरबों रुपए खर्च करती आ रही है। उसके उपरांत भी नदियों का पानी शुद्ध नहीं हो पाता है। मगर गत वर्ष देश में लंबे समय तक लाकडाउन के चलते बिना कुछ खर्च किए ही नदियों का पानी अपने आप शुद्ध हो गया था। कोलकाता के बाबू घाट में तो उस समय लोगों ने 30 वर्ष बाद डॉल्फिन मछलियों को उछलते हुए देखा था। यह कोलकाता वासियों के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था।
पर्यावरणविदों के मुताबिक जिन नदियों के पानी से स्नान करने पर चर्म रोग होने की संभावनाएं व्यक्त की जाती थी। उन नदियों का पानी शुद्ध हो जाना बहुत बड़ी बात थी। देश की सबसे अधिक प्रदूषित मानी जाने वाली गंगा नदी सबसे शुद्ध जल वाली नदी बन गयी थी। वैज्ञानिकों के अनुसार गंगा का पानी साफ होने की वजह पानी में घुले डिसाल्वड की मात्रा में आई 500 प्रतिशत की कमी थी। गंगा में गिरने वाले सीवर और अन्य प्रदूषण में कमी की वजह से पानी साफ हुआ था। पिछले 25 वर्षों में यमुना नदी की सफाई पर करीबन पांच हजार करोड रुपए खर्च हो चुके थे। फिर भी नदी का पानी साफ नहीं हो पाया था। मगर पिछले साल लाकडाउन के चलते जो काम हजारों करोड़ रुपए खर्च करके 25 साल में सम्भव नहीं हो पाया वह मात्र दो महीने में अपने आप ही हो गया था।
कोरोना संकट को लेकर दुनिया के अधिकांश देशों में लाकडाउन के कारण सब कुछ बंद रखना पड़ा था। दुनिया भर में लोग अपने घरों में कैद होकर रह गए थे। भारत में भी लंबे समय तक लाकडाउन चला था। कोरोना की दूसरी लहर के चलते अभी भी देश में अधिकांश स्थानो पर लाकडाउन चल रहा है। लाकडाउन के कारण देश में बहुत से कल कारखाने, औद्योगिक संस्थान, व्यवसायिक गतिविधियां बंद हो गई। लाकडाउन के कारण सभी तरह की गतिविधियां बंद होने से लोगों ने बरसों बाद देश के बड़े शहरों में उन्मुक्त भाव से पशु पक्षियों को विचरण करते देखा है।