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    कोरोना का आतंकः नदियों में शव प्रवाह

  • June 01, 2021
    डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र
    कोरोना महामारी ने पूरे समाज को आतंकित कर मृत्यु उपरांत किए जाने वाले अंत्येष्टि कर्म को भी प्रभावित कर दिया है। भारतीय समाज में मृतक के शरीर को  पर्यावरण की दृष्टि से व्यवस्थित करने तथा उसकी आत्मा को शांति प्रदान करने हेतु अंत्येष्टि कर्म के रूप में प्रमुखतया अग्निदाह किए जाने की परंपरा रही है। अधिकांश अंत्येष्टि कर्म अग्निदाह के रूप में ही संपन्न किए जाते रहे हैं जिससे न केवल शव भली-भांति विनष्ट  हो जाता है अपितु बीमारी आदि से हुई मृत्यु से संबंधित शवों में विद्यमान खतरनाक विषाणु भी जलकर नष्ट हो जाते हैं। इससे एक ओर पर्यावरण एवं वायुमंडल उसके दुष्प्रभाव से प्रभावित नहीं होता है, वहीं दूसरी ओर शव के भली-भांति विनष्ट हो जाने से उसमें विद्यमान विषाणुओं के भी समाप्त हो जाने से कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।
    शव को जल में प्रवाहित करने या उसे भूमि में दफनाने का कार्य अत्यंत विशिष्ट परिस्थितियों में ही किया जाता रहा है किंतु आज कोरोना महामारी के प्रभाव से होने वाली मृत्यु से आतंकित जनमानस ऐसे शवों को नदियों के किनारे दफना कर या उन्हें जल में प्रवाहित कर मृत्योपरान्त किए जाने वाले संस्कार अंत्येष्टि को संपन्न कर रहे हैं, जिससे न केवल पारिवारिक रिश्तों की खाई चौड़ी हो रही है अपितु पर्यावरण प्रदूषण के साथ जीवन के लिए आवश्यक वायु एवं जल भी प्रदूषित हो रहे हैं। वायु एवं जल के दूषित होने से एकसाथ अनेक समस्याएं उत्पन्न होने की आशंका है।
    वैसे तो गंगा सहित अनेकानेक नदियों में शव प्रवाहित किए जाते रहे हैं, जिससे कभी- कभार जानवर एवं आदमियों के एकाध शव देखने को मिल जाते थे, जो जलचरों द्वारा शीघ्र ही समाप्त कर दिए जाते थे और उनका व्यापक प्रभाव नहीं पड़ता था किंतु बिहार के बक्सर में अचानक भारी मात्रा में गंगा में तैरते हुए मानव शव देखकर तटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोग बेचैन हो गए, जिसकी सूचना पर प्रशासन ने औपचारिक रूप से शवों को उत्तर प्रदेश से बहकर आने की बात कहते हुए, उन्हें पानी से  निकालकर उनका येन-केन प्रकारेण अंतिम संस्कार करते हुए शवों को समाप्त करने की कोशिश की। 
    गंगा में तैरने एवं उनको गंगा तटवर्ती क्षेत्र में दफनाए जाने का वीडियो वायरल होने पर इसकी जानकारी जन-जन तक पहुंची जिसके बाद लोगों ने अपने आसपास भी इस तरह नदियों में किए जा रहे शवों के जल प्रवाह की ओर ध्यान दिया, जिसमें पाया गया कि उत्तर प्रदेश बिहार और मध्य प्रदेश में जलदाह की प्रक्रिया अंत्येष्टि कर्म के रूप में अपनाई जा रही है। मध्य प्रदेश में जबलपुर की नर्मदा नदी एवं पन्ना के रूंज नदी में एक-एक शव ही प्रवाहित करने का प्रकरण संज्ञान में आया है किंतु बिहार और उत्तर प्रदेश में स्थिति अत्यंत गंभीर है और यहां शवों को व्यापक स्तर पर जल में प्रवाहित किया जा रहा है या तटवर्ती क्षेत्र में उन्हें दफनाया जा रहा है। यह स्थिति केवल गंगा नदी की ही नहीं है अपितु अनेकानेक नदियों एवं उनके तटवर्ती क्षेत्रों में बनी हुई है। उत्तर प्रदेश में तो कानपुर, उन्नाव, प्रयागराज, बलिया, गाजीपुर आदि जिलों में शवों की अंत्येष्टि की यह प्रक्रिया व्यापक रूप से अपनाई जा रही है।

    मीडिया में इसकी जानकारी  वायरल होने से सरकार ने इसका संज्ञान लिया जिससे शवों के जल प्रवाह में तो कुछ कमी आई है किंतु तटवर्ती क्षेत्रों में आज भी दफनाने का कार्य किया जा रहा है। प्रयागराज के फाफामऊ शिवकुटी छतनाग श्रृंगवेरपुर झूंसी आदि घाटों में शव दफनाए जा रहे हैं। कन्नौज के महादेवी गंगा घाट के समीप तीन सौ पचास से अधिक शव दफनाए गए हैं। उन्नाव तथा कानपुर की भी यही स्थिति है जहां हजारों शव दफनाए गए हैं। इतना ही नहीं गाजीपुर बलिया सहित अनेक तटवर्ती क्षेत्रों में शवों को दफनाया गया है तथा इन शवों को दफनाते हुए मात्र औपचारिकता का निर्वाह किया गया है। परिणामस्वरूप नदी का जलस्तर बढ़ने या हल्के कटाव से ही यह शव गंगा नदी में पहुंच रहे हैं तथा हल्की हवा चलने मात्र से इनके ऊपर पड़ी हुई रेत एवं मिट्टी के उड़ जाने से शवों के दिखाई पड़ने पर कुत्ते शवों को निकालकर उन्हें नोच  रहे हैं। चील एवं गिद्ध  भी महामारी में दावत उड़ा रहे हैं, जिससे स्थिति अत्यंत वीभत्स बन रही है। इसे देखते हुए प्रशासन द्वारा शवों को निकालकर पोकमैन तथा जेसीबी से गड्ढे खोदकर किसी प्रकार इनको दफनाया जा रहा है। बाहर निकलकर अपनी कहानी कह रहे शवों पर मिट्टी डाली जा रही है किंतु वह किसी न किसी रूप में निकलकर अपनी कहानी कह ही दे रहे हैं।
    यहां प्रश्न उठता है कि समाज में पूर्णरूपेण स्वीकृति प्राप्त अग्निदाह के स्थान पर लोगों द्वारा अपने स्वजनों के शवों का मृतिका दाह या जलदाह क्यों किया जा रहा है? उनके शरीर को अब निगाह के माध्यम से भस्मी भूत कर शरीर में विद्यमान पंचभूतों को महाकाश के महाभूतों से मिलाने की प्रक्रिया के स्थान पर पानी में प्रवाहित कर या भूमि में दफन कर अंत्येष्टि किए जाने का कार्य क्यों किया जा रहा है? वस्तुतः इसके मूल में आर्थिक विपन्नता एवं महामारी से उत्पन्न डर निहित है। अन्त्येष्टि में शवों की कपाल क्रिया कर अग्निदाह के उपरांत किए जाने वाले कर्मकांड अनिवार्य रूप से संपन्न किए जाते हैं। किंतु जलदाह एवं मृतिका दाह में कपाल क्रिया के अनिवार्य न होने और अन्त्येष्टि उपरांत किए जाने वाले कर्मकांड अनिवार्य न होने से आर्थिक विपन्नता झेल रहे लोगों द्वारा यह मार्ग अपनाया जाता है। धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से यह मार्ग उपयुक्त एवं स्वीकृत न होकर मजबूरी वाला मार्ग है जिसके लिए परिजन अपने अंतस में सदैव पीड़ा झेलते रहते हैं।
    महामारी के आतंक ने भी अंत्येष्टि के औपचारिक मार्ग निकालने को मजबूर कर दिया है, जिसके चलते शवों को दफन करने तथा उनमें उन्हें जल में प्रवाहित करने का मार्ग अपनाया जा रहा है, यह जानते हुए भी कि इस प्रकार की गई अंत्येष्टि धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से श्रेयस्कर नहीं है। फिर भी पारिवारिक परिस्थिति एवं कोरोना के भय से इस मार्ग को चुना जाता है। अंत्येष्टि का चयनित यह मार्ग वायु एवं जल को प्रदूषित कर महामारी को और बढ़ाने वाला ही है। 
    आर्थिक विपन्नता के कारण स्वजनों के अंतिम संस्कार का खर्च वाहन करने की क्षमता ना होने के कारण मजबूरी में लोगों द्वारा यह प्रक्रिया अपनाई जा रही है। ऐसे में समाज की नागरिक इकाइयों तथा जनप्रतिनिधियों का दायित्व है कि वह जमीनी स्थिति का आकलन करते हुए ग्राम पंचायत स्तर पर हुई मौतों पर उनकी अंत्येष्टि अग्नि दाह के रूप में अनिवार्य रूप से संपन्न करायें तथा गांव व समाज के लोगों को जलदाह या भूमि दाह करने के लिए हतोत्साहित करे। सरकारी स्तर पर कोरोना से हुई मौतों की अंत्येष्टि के लिए अनिवार्य रूप से आर्थिक सहायता प्रदान कर भी इस गतिविधि पर अंकुश लगाया जा सकता है। 
    राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा चिंता व्यक्त किए जाने पर उत्तर प्रदेश में तो अब सरकार द्वारा इसपर अंकुश लगाने हेतु ग्राम विकास अधिकारी ग्राम प्रधान तथा शहरी क्षेत्रों में कार्यकारी अधिकारी व नगर पालिका नगर पंचायत व नगर निगम अध्यक्षों के माध्यम से निगरानी समितियों का गठन कर प्रभावी नियंत्रण का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश की भांति अन्य समस्त राज्यों में भी नदियों की शुद्धता बनाए रखने हेतु उनमें शव प्रवाहित करने पर पूर्ण रोक लगाते हुए उनकी निगरानी की आवश्यकता है। सरकारों की जागरूकता एवं नदियों की शुद्धता बनाए रखने की प्रतिबद्धता से ही नदियों में शवों के प्रवाह को रोका जा सकता है।
    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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