तेल अवीव। इस्राइल(israel) में बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) की प्रधानमंत्री (Prime minister) के रूप में लंबी पारी पर परदा गिरने का रास्ता रविवार को साफ हो गया। धुर दक्षिणपंथी नेता नफताली बेनेट (Right-wing leader Nafatali Bennett) और विपक्षी नेता यायर लेपिड (Opposition Leader Yair Lepid) के बीच लंबी बातचीत के बाद आखिरकार गठबंधन सरकार बनाने पर सहमति (Agree to form coalition government) बन गई। इससे 12 साल बाद इस्राइल में प्रधानमंत्री पद पर कोई नया चेहरा(After 12 years, a new face in Israel as Prime Minister) आएगा। और वो होंगे बेनेट। विश्लेषकों के मुताबिक बेनेट और नेतन्याहू की नीतियों में कोई खास फर्क नहीं है। फिलस्तीन के मामले में तो बेनेट नेतन्याहू से भी ज्यादा सख्त नीतियों के हिमायती रहे हैं।
खबरों के मुताबिक बेनेट और लेपिड के बीच प्रधानमंत्री के कार्यकाल को दो–दो साल बांटने पर सहमति हुई है। इसके तहत अरबपति राजनेता और पूर्व रक्षा और शिक्षा मंत्री 49 वर्षीय बेनेट पहले दो साल प्रधानमंत्री रहेंगे। उसके बाद 57 वर्षीय लेपिड दो साल के लिए प्रधानमंत्री बनेंगे। बताया जाता है कि लेपिड ने कुछ और छोटे दलों को अपने साथ जुटा कर 120 सदस्यीय संसद- नेसेट में बहुमत का इंतजाम कर लिया है। अपने समर्थक सांसदों की सूची वे वे अगले एक दो दिन में राष्ट्रपति रिउवेन रिवलिन को सौंप देंगे। पर्यवेक्षकों के मुताबिक नई सरकार इसी हफ्ते के अंत तक शपथ ले सकती है।
जानकारों के मुताबिक बेनेट की छवि धुर दक्षिणपंथी उग्र राष्ट्रवादी नेता की है। वे फिलस्तीनियों के लिए एक अलग देश बनाने के प्रस्ताव के कट्टर विरोधी हैं। अमेरिका सहित तमाम पश्चिमी देश दो-राष्ट्र सिद्धांत के तहत फिलस्तीनियों के लिए अलग देश बनाने का समर्थन करते रहे हैँ। लेकिन बेनेट पश्चिमी किनारे की फिलस्तीनियों की 60 फीसदी जमीन को इस्राइल में मिला लेने की मांग करते रहे हैं। 2020 में नेतन्याहू सरकार में रक्षा मंत्री के बतौर उन्होंने कोरोना महामारी के बीच गाजा पट्टी में रहने वाले फिलस्तीनियों की कोरोना जांच रोक देने का आदेश इस्राइली सेना को दिया था। यायर लेपिड से समझौता होने के बाद उन्होंने कहा- ‘मेरा इरादा अपने मित्र लेपिड के साथ मिल कर ऐसी राष्ट्रीय एकता सरकार बनाने का है, जो देश को गिरावट की राह पर जाने से रोक सके।’ जानकारों ने कहा है कि सत्ता में आने की जल्दबाजी में लेपिड ने अपनी उदारवादी सोच को ताक पर रख कर बेनेट से समझौता किया है। पूर्व टीवी एंकर लेपिड अपने उदारवादी विचारों के कारण देश के धर्मनिरपेक्ष मध्य वर्ग में लोकप्रिय रहे हैं। लेकिन अब उनकी अपनी छवि पर आंच आ सकती है। पर्येवेक्षकों के मुताबिक इस समझौते से उन लोगों को राहत मिलेगी, जो नेतन्याहू के लंबे शासन काल से मुक्ति चाहते थे। 71 वर्षीय नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार के आरोप में मुकदमे चल रहे हैं। लेकिन नेतन्याहू की जगह उनसे भी ज्यादा कट्टरपंथी के प्रधानमंत्री बनने से उदारवादी खेमों में बेचैनी भी देखी जा रही है। जानकारों के मुताबिक इस्राइल की मुसीबत यह है कि कभी देश में प्रगतिशील और वामपंथी नीतियों की समर्थक रही लेबर पार्टी अब कमजोर होकर अप्रासंगिक हो चुकी है। इस कारण अब तमाम विकल्प व्यक्ति केंद्रित मध्यमार्गी पार्टियों और धुर दक्षिणपंथी दलों के बीच सिमट गए हैं। दो साल के अंदर हाल में इस्राइल में हुए चौथे आम चुनाव में नेतन्याहू की लिकुड पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं। इसलिए राष्ट्रपति ने उसे पहले सरकार बनाने का मौका दिया था। लेकिन बहुमत जुटाने में नेतन्याहू नाकाम रहे। इससे पांचवें चुनाव की नौबत आती दिख रही थी। नेतन्याहू विरोधी गठबंधन बनने से ये संभावना फिलहाल टल जाएगी। लेकिन एक दूसरे के विरोधी एजेंडे पर चलने वाले नेताओं और दलों के बीच एकता लंबे समय तक टिकेगी, इसको लेकर पर्यवेक्षकों को गहरा संदेह है।