…जैसे ही पंडित नेहरू के निधन की खबर आई…बाजे-गाजे नहीं बजे
इंदौर। 27 मई 1964 को राज्यसभा (Rajya Sabha) का विशेष सत्र चल रहा था…जिसमें प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु (Prime Ministers Jawaharlal Nehru) कश्मीर व शेख अब्दुल्ला ( Sheikh Abdullah) के बारे में कुछ सवालों के जवाब देने आने वाले थे…संसद (Parliament) में यह खबर फैल गई थी कि पंडितजी की तबियत खराब है…दोपहर 2 बजें तत्कालीन मंत्री कोयम्बटूर (Coimbatore) सुब्रमण्यम राज्यसभा में दाखिल हुए तो उनके चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थी…उन्होंने बुझे हुए स्वर में केवल इतना कहा कि रोशनी खत्म हो गई है…सन्नाटा पसर गया।
मई माह में देशभर में शादियों का मौसम चल रहा था 27 मई को हर कहीं वैवाहिक समारोह थे, जैसे जैसे पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन की खबर फैलती गई…सदमे की स्थिति निर्मित होती गई, उस दिन देश में शादियां तो हुईं लेकिन कहीं भी बैंड-बाजे नहीं बजे और सादगी से रस्में पूरी की गई। जनमानस के साथ बच्चे भी भी उदास हो गए थे। उल्लेखनीय है कि पंडित नेहरू बच्चों में चाचा नाम से लोकप्रिय थे वे बच्चों से बेहद लगाव रखते थे कही भी दौरे पर जातें थे तो सर्वप्रथम वहां के स्थानीय बच्चों से मुलाकात करतें थे। अपने निधन के चंद घंटों पहले ही चार दिनों की देहरादून यात्रा करके वे लौटे थे पंडित नेहरू थके हुए थे वो आम दिनों की तुलना में जल्दी सोने चले गए थे, रातभर उनकी बेचैनी में बीती और वे कई बार उठे, हर बार उनका विश्वस्त सेवक नाथूराम उन्हें दर्द निवारक दवाएं देता रहा, इससे पहले वो हेलीकॉप्टर से देहरादून से शाम 4 बजे के आसपास दिल्ली लौटे थे। उनकी सेहत जनवरी में भुवनेश्वर के हार्ट अटैक के बाद सुधर नहीं पाई थी। द गार्जियन की 27 मई 1964 की रिपोर्ट कहती है कि सुबह 6.30 बजे उन्हें पहले पैरालिसिस अटैक हुआ और फिर हार्ट अटैक के बाद वो अचेत हो गए थे और उसके थोड़ी देर बाद वे चल बसे।
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