पूर्व आईएएस देंगे 2000 नौकरी!
मप्र के एक चर्चित रिटायर आईएएस अधिकारी जो स्वयं नौकरी के दौरान काफी विवादों में रहे और रिटायर होने तक प्रमुख सचिव पद पर प्रमोशन के लिये गिड़गिड़ाते रहे। अब 2000 लोगों को नौकरी देने का दावा कर रहे हैं। इस अधिकारी पर सेवा के दौरान काफी गंभीर आरोप लगे थे। यही कारण है कि रिटायर होने तक इन्हें प्रमोशन नहीं मिला था। रिटायर होने के बाद इन्होंने सनी लियोन जैसी हीरोइन को लेकर एक फीचर फिल्म बना ली है। इसके अलावा मुंबई, नागपुर और भोपाल में अपनी कंपनी के कार्यालय खोल लिए हैं। उनका दावा है कि वे एक न्यूज चैनल भी ला रहे हैं। उन्होंने मप्र के सबसे बड़े समाचार पत्र के पहले पेज पर बड़ा सा विज्ञापन देकर कंपनी के लिए 2000 लोगों को आकर्षित सैलेरी पर नौकरी देने की बात कही है। देखना है कि इस आईएएस अधिकारी की फिल्म और चैनल कितने सफल होते हैं?
छापे की अन्तर्कथा
इस सप्ताह धार और बड़वाह की दो शराब कंपनियों पर छापे की बड़ी कार्रवाई इंदौर से भोपाल तक चर्चा का विषय बनी हुई है। दरअसल, आबकारी विभाग में काफी वैध-अवैध काम शासन-प्रशासन की आपसी सहमति से चलते रहते हैं। इन कंपनियों में भी ऐसा ही चल रहा था। बड़ी तादाद में शराब गुजरात भेजी जा रही थी। इसकी जानकारी लगभग सभी को थी। अचानक इंदौर संभागायुक्त को मंत्रालय की एक दबंग आईएएस का फोन पहुंचा। हिदायत दी गई कि छापे की कार्रवाई को गोपनीय रखा जाए। इंदौर संभागायुक्त ने छापे के लिए टीम इंदौर जिले से भेजी। धार की फैक्ट्री में लगभग एक हजार मजदूर काम करते मिले और लगभग 6 ट्रक शराब के भरे मिले, जिन्हें अवैध रूप से गुजरात भेजा जाना था। छापे के दौरान धार के जिला आबकारी अधिकारी को निलंबित कर दिया गया है। शराब कारोबारी इस बात से परेशान है कि ऊपर से लेकर नीचे तक सभी की सहमति थी तो अचानक इतनी बड़ी कार्रवाई क्यों की गई? फिलहाल शासन-प्रशासन के साथ-साथ सत्तारूढ़ पार्टी में भी इस छापे को लेकर खुसर-पुसर चल रही है। चर्चा है कि इसकी गाज किसी आईएएस पर गिर सकती है।
सिंधिया के तीन रतन
यूं तो मप्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया कोटे से आधा दर्जन से ज्यादा मंत्री हैं, लेकिन पिछले 2 महीने में 3 मंत्री कुछ ज्यादा ही चर्चा में रहे हैं। जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट बेशक सहज, सरल और मिलनसार हैं लेकिन इस बार कोरोना काल में उनके परिवार पर आरोपों के गंभीर छीटे पड़े हैं। मंत्री के बेटे और पत्नी तक पर दवाओं की कालाबाजारी के आरोपों ने सिंधिया खेमे में खलबली मचा दी है। स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी को लो-प्रोफाइल होने की सजा भुगतनी पड़ रही है। कोरोना काल में मीडिया ने उन्हें असफल स्वास्थ्य मंत्री सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। खास बात यह है कि इसी दौरान उनके विभाग के अधिकारियों का जमकर गुणगान हुआ है। सिंधिया खेमे के तीसरे मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर तो स्वयं को चर्चा में बनाए रखते हैं। कुछ दिन मीडिया ने उनकी अनदेखी की तो मंत्री जी ग्वालियर में स्कूटर लेकर बगैर हेलमेट के घूमते नजर आए। वीडियो वायरल हुआ और सोशल मीडिया पर आलोचना हुई तो मंत्री जी थाने में पहुंचकर 250 रुपए चालान के जमा करा आए। इस बहाने तोमर फिर से मीडिया की सुर्खियां बन गए।
ममता की इंदौरी मदद !
चर्चा है कि भारत सरकार की खुफिया एजेंसी ने मप्र पुलिस मुख्यालय की विशेष शाखा को इनपुट दिया है कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के दौरान ममता बेनर्जी की पार्टी टीएमसी को इंदौर से बड़ी आर्थिक मदद हुई है। इस इनपुट के बाद मप्र इंटेलिजेंस के कान खड़े हो गए हैं। पता चला है कि यह आर्थिक मदद कुछ साराफा व्यापारियों के माध्यम से हवाला के जरिए बंगाल पहुंची थी। पश्चिम बंगाल के प्रभारी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के खुद की पार्टी और विपक्ष में जितने समर्थक हैं, लगभग उतने ही उनके विरोधी भी हैं। इंदौर से आर्थिक मदद किसने और क्यों पहुंचाई इसे लेकर गंभीर पड़ताल चल रही है। यह भी चर्चा है कि आर्थिक मदद पहुंचाने वालों में कैलाश विजयवर्गीय विरोधी खेमा सक्रिय हो सकता है।
कमलनाथ का गेमप्लान !
मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के व्यक्तिगत संबंध काफी मधुर रहे हैं और आज भी हैं। लेकिन पिछले कुछ दिन से कमलनाथ अचानक आक्रामक मुद्रा में आ गए हैं। कभी वे हनीट्रैप की सीडी के नाम पर शासन-प्रशासन को धमकाते हैं तो कभी मोदी-शाह पर सीधा हमला करने लगते हैं। उन्होंने मप्र में कोरोना से हुई मौतों को भी बड़ा मुद्दा बना लिया है। कमलनाथ के इस रूख को देखकर कांग्रेस के कई दिग्गज नेता भी हैरान हैं। कांग्रेस विधायक दल लंबे समय से इसी तरह की लड़ाई लडऩे की बात कर रहा था। कमलनाथ की सक्रियता के मायने तलाशे जाने लगे हैं। चर्चा है कि कमलनाथ का निशाना मप्र पर है, लेकिन उनकी नजर दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष पद पर टिक गई है। मप्र की सक्रियता का फायदा वे दिल्ली में लेना चाहते हैं। शिवराज सरकार ने उनके खिलाफ एफआईआर करके राष्ट्रीय स्तर पर फिर से चर्चा में आने की उनकी इच्छा पूरी कर दी है। बताते हैं कि कमलनाथ ने एक राजनैतिक एजेंडा तैयार किया है। जिसके तहत वे आगे बढ़ रहे हैं। इस एजेंडे की सफलता के लिए इस सप्ताह वे उज्जैन में मंदिर के बाहर से ही सही महाकाल का आशीर्वाद ले आए हैं और 28 मई को मैहर में मैया का आशीर्वाद लेने जा रहे हैं।
अंकुर योजना और बक्सवाह
मप्र में एक ओर शिवराज सरकार अंकुर योजना चलाकर पूरे प्रदेश में वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने पर बल दे रही है दूसरी ओर छतरपुर जिले के बक्सवाह में 25 हजार करोड़ के हीरे की तलाश के लिए 2 लाख हरे-भरे और पुराने पेड़ों को काटने की तैयारी है। फिलहाल यह मुद्दा अब राष्ट्रीय स्तर पर छाने लगा है। बुंदेलखंड और मप्र के हजारों सामाजिक कार्यकर्ताओं ने ‘बक्सवाह बचाओÓ के नाम पर सोशल मीडिया पर मुहिम चालू कर दी है। राज्य सरकार फिलहाल इस मुद्दे पर खामोश है। हालांकि यह भी तय है कि बक्सवाह के हीरा खदान की योजना कमलनाथ सरकार के समय बनाई गई थी, इसलिए शायद कांग्रेस खुलकर मैदान में न आ पाएं, लेकिन शुरुआती दौर में ही जिस तरह ‘बक्सवाह बचाओ आंदोलन’ आगे बढ़ रहा है उससे लगता है कि मप्र में आने वाले समय में एक बड़ा जनआंदोलन खड़ा हो जाएगा।
कैलाश की दहाड़
इस सप्ताह कैलाश वियजवर्गीय की एक दहाड़ ने शासन-प्रशासन को हिलाकर रख दिया है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय मालवा क्षेत्र के जननेता इसलिए बने हैं कि वे जनता की भावनाओं की अभिव्यक्ति को लेकर मुखर रहते हैं। जनता के लिए वे अपनी ही पार्टी और सरकार से भी भिडने में पीछे नहीं रहते। इंदौर में जबरन 10 दिनों के लिए थोपे गए लॉकडाऊन को लेकर कैलाश विजयवर्गीय ने अपनी ही सरकार और प्रशासन पर हमला बोलते हुए उनके इस निर्णय को अलोकतांत्रिक और तानाशाहीपूर्ण बता दिया। बेशक यह मामला संंगठन स्तर पर दिल्ली तक पहुंचा, लेकिन इससे कैलाश विजयवर्गीय का कद बढ़ा ही है। अब शासन-प्रशासन इंदौर सहित पूरे मालवा में लॉकडाऊन बढ़ाने के बजाए अनलॉक की तैयारी में लग गया है।
और अंत में…
दो सूचनाएं एक साथ, पहली – मंत्रालय के एक वरिष्ठ आईएएस प्रदेश के 6 कलेक्टरों को कतई पसंद नहीं करते। अनेक प्रयास के बाद भी वे इन कलेक्टरों को हटवाने में सफल नहीं हुए हैं, लेकिन यह तय है कि यह छह कलेक्टर उनके निशाने पर हैं और जब भी मौका मिलेगा वे इन्हें मंत्रालय में जमा कराने में कसर नहीं छोड़ेंगे। दूसरी – इस सप्ताह मप्र के 2 कलेक्टर काफी विवादों में रहे हैं। खंडवा कलेक्टर अपने तीखे तेवरों के कारण कानूनी दायरे से बाहर जाकर काम करते नजर आए। उन्होंने मुख्यमंत्री के जनसंपर्क विभाग में ही तबादला करके सिद्ध कर दिया कि उन्हें नियम कानून की जानकारी नहीं है। दतिया कलेक्टर ने वैक्सीन को लेकर एक अजीबो-गरीब आदेश जारी कर दिया है। उन्होंने आदेश दिया है कि जिले के जिन सरकारी कर्मचारियों ने वैक्सीन नहीं लगवाई होगी, उन्हें इस माह वेतन नहीं मिलेगा। अब कलेक्टर साहब को कौन समझाए कि कोरोनाकाल में वैक्सीन उनकी इच्छा से नहीं डॉक्टर की सलाह से लगाई जा रही है।
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