ग्वालियर। डॉक्टरों (Doctors) द्वारा जेनेरिक मेडिसिन (Generic medicine) न लिखने को लेकर हाईकोर्ट (High Court) की युगल पीठ ने नाराजगी जाहिर की है। साथ ही केंद्र सरकार, राज्य सरकार और ड्रग कंट्रोलर (Drug Controller) से इस संबंध में जवाब मांगा है। कोर्ट ने महंगी दवाएं (Medicines) आम लोगों के खरीदने के मामले में गंभीर चिंता जाहिर की है। शासन को उपस्थित होकर बताना होगा कि डॉक्टर जेनेरिक मेडिसिन (Generic Medicine) क्यों नहीं लिख रहे हैं? कंपनियों (Companies) के ब्रांड क्यों लिखे जा रहे हैं?
एडवोकेट विभोर कुमार (Advocate Vibhor Kumar) ने हाई कोर्ट में जेनेरिक दवाओं (Generic Drugs) को लेकर एक जनहित याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि कोरोना संक्रमण (Corona Infection) के दौर में और अब उसके बाद ब्लैक फंगस (Black Fungus) जैसी बीमारी लगातार लोगों को घेर रही है। इस बीमारी में एनफो टेरेसिन बी-50 एमजी इंजेक्शन (Injection) दिया जाता है, यह इंजेक्शन (Injection) दो बार लगाया जाता है। दो इंजेक्शन (Injection) की कीमत लगभग 14 हजार रुपए पर पड़ती है। डॉक्टर कंपनी के नाम से इंजेक्शन (Injection) लिख रहे हैं। जिस कारण परेशान और पीडि़तों को महंगाई में यह इंजेक्शन (Injection) खरीदना पड़ता है, जबकि यह इंजेक्शन जेनरिक दवाइयों में 269 रुपये का मिल रहा है। कोर्ट के सामने अधिवक्ता ने ऑनलाइन जेनरिक दवाओं के दाम भी दिखाए, जिसमें यह इंजेक्शन बहुत कम दाम में मिल रहे हैं। इसको लेकर कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि दवाइयों के रेट में इतना अंतर क्यों है?
जवाब के लिए सरकार ने मांगा
इस पर केंद्र और राज्य शासन ने इस मामले पर जवाब देने के लिए समय मांगा, लेकिन याचिकाकर्ता ने आपत्ति करते हुए कहा कि पिछले एक साल से समय ले रहे हैं, लेकिन जवाब नहीं दे रहे हैं। जेनेरिक में जो टेबलेट 3 से 5 रुपये की मिल सकती है, वहीं दवा कंपनी ब्रांड के नाम से 20 से 25 रुपए की मिल रही है। लोगों को इसके लिए कई गुना पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं। जेनेरिक मेडिसिन को लेकर 2016 में कानून भी बनाया गया था। इस कानून के तहत डॉक्टर जेनेरिक दवाइयां लेने की सलाह देंगे। अधिकतर डॉक्टर दवाइयों का ब्रांड लिख रहे हैं। इससे महंगी दवाई मिल रही है। कोर्ट ने सुनवाई के बाद केंद्र व राज्य शासन के ड्रग कंट्रोलर को तलब किया है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved