नई दिल्ली। ब्रिटेन में एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन(AstraZeneca-Oxford vaccine in Britain) से ब्लड क्लॉट(Blood Clot) के साइड इफेक्ट का असर भारत की कोविशील्ड वैक्सीन (Covishield Vaccine of India) पर भी पड़ा है. यहां वैक्सीन के साइड इफेक्ट से लोग काफी घबराए हुए हैं. ऐसे में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) ने हेल्थ केयर वर्कर्स और वैक्सीन लेने वालों के लिए वैक्सीन के साइड इफेक्ट को लेकर एडवाइजरी जारी की है, जिसमें लोगों से वैक्सीनेशन(Vaccination) के 20 दिन के भीतर थ्रॉम्बोसिस (ब्लड क्लॉट्स) के लक्षणों को पहचान करने की अपील की गई है. यदि कोई गंभीर लक्षण नजर आता है तो उसे वैक्सीन सेंटर पर जाकर दर्ज कराएं.
एडवाइजरी में लोगों को सलाह दी गई है कि कोई भी वैक्सीन लेने के बाद (खासकर कोविशील्ड) लेने के बाद यदि आपको तेज सिरदर्द, छाती में दर्द, शरीर में सूजन, उल्टी के बिना पेट में दर्द, दौरे या सांस लेने में तकलीफ जैसे गंभीर लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो इन्हें वैक्सीन सेंटर पर जरूर रिपोर्ट करवाएं.
इसके अलावा यदि इंजेक्शन साइट के अलावा शरीर के किसी हिस्से पर लाल रंग के धब्बे नजर आ रहे हैं तो भी सचेत रहिए. यदि आपको माइग्रेन की समस्या नहीं है और उल्टी के साथ या उल्टी के बिना ही सिर में लगातार दर्द रहता है तो वैक्सीनेशन सेंटर पर ये सब लक्षण रिपोर्ट करवाने जरूरी हैं.
वैक्सीन लगने के बाद कमजोरी, शरीर के किसी अंग का काम करना बंद कर देना, बिना किसी कारण लगातार उल्टी होना, आंखों में दर्द या धुंधला दिखना, कन्फ्यूजन-डिप्रेशन या मूड स्विंग होना भी सामान्य बात नहीं है. इन सभी लक्षणों के बारे में वैक्सीनेशन सेंटर पर मौजूद हेल्थ केयर वर्कर्स को बताएं. वैक्सीन के गंभीर साइड इफेक्ट पर बनी राष्ट्रीय समिति ने कहा है कि भारत में ब्लड क्लॉट के बहुत कम मामले ही कोविशील्ड के वैक्सीनेशन से जुड़े हो सकते हैं. सूत्रों के मुताबिक, भारत में कोविशील्ड वैक्सीन की प्रति 10 लाख डोज पर डीप वेन थ्रॉम्बोसिस या ब्लड क्लॉट्स के सिर्फ 0.61 फीसद मामले ही देखे गए हैं. सूत्रों के मुताबिक, ब्रिटेन के मुकाबले भारत में वैक्सीन से साइड इफेक्ट के मामले बहुत कम देखे जा रहे हैं. इस डेटा का मूल्यांकन करने वाली सरकार द्वारा गठित कमिटी ने ये भी कहा कि पश्चिमी देशों की तुलना में दक्षिण एशियाई लोगों में वैक्सीनेशन के बाद थ्रोम्बोसिस या खून के थक्के बनने की संभावना कम हो सकती है. सूत्रों के मुताबिक, ब्लड क्लॉट के अधिकांश मामले वैक्सीनेशन के पहले सप्ताह के बाद तक देखे गए हैं. ऐसे में वैक्सीन लेने वाले लोगों से 28 दिन के भीतर इसे रिपोर्ट कराने की अपील की गई है. ब्लड क्लॉट के मामलों से जुड़ा डेटा बताता है कि ब्लड क्लॉट की समस्या महिलाओं और पुरुषों में समान रूप से देखी गई हैं. उन्होंने ये भी बताया कि भारत बायोटेक द्वारा निर्मित कोवैक्सीन में किसी तरह के ब्लड क्लॉट की समस्या अभी तक भारत में नहीं देखी गई है. 31 मार्च को हुई बैठक के दौरान AEFI समिति को सौंपी रिपोर्ट के अनुसार, वैक्सीनेशन के बाद गंभीर साइड इफेक्ट्स और मौत के कुल 617 मामले सामने आए हैं. 29 मार्च तक देशभर में टीकाकरण के बाद कुल 180 मौतें (29.2 प्रतिशत) दर्ज की गई हैं. हालांकि 236 मामलों (38.3 प्रतिशत) के लिए ही कंप्लीट डॉक्यूमेंटेशन उपलब्ध है. बता दें कि कोविशील्ड चिम्पैंजी एडेनोवायरस वेक्टर पर आधारित वैक्सीन है. इसमें चिम्पैंजी को संक्रमित करने वाले वायरस को आनुवांशिक तौर पर संशोधित किया गया है ताकि ये इंसानों में ना फैल सके. इस संशोधित वायरस में एक हिस्सा कोरोना वायरस का है जिसे स्पाइक प्रोटीन कहा जाता है. ये वैक्सीन शरीर में इम्यून रिस्पॉन्स बनाती है जो स्पाइक प्रोटीन पर काम करता है. ये वैक्सीन एंटीबॉडी और मेमोरी सेल्स बनाती है जिससे के वायरस को पहचानने में मदद मिलती है. वैज्ञानिकों का दावा है कि ये वैक्सीन कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी जेनरेट करने का काम करती है. कोविशील्ड का एफिकेसी रेट 70 प्रतिशत है, जिसे तकरीबन एक महीने बाद दूसरी डोज़ के साथ 90 फीसद तक बढ़ाया जा सकता है. ये न सिर्फ सिम्पटोमैटिक इंफेक्शन में राहत दे सकती है, बल्कि तेजी से रिकवरी भी कर सकती है.