हिंदू पंचाग के अनुसार वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि (Ekadashi date) को वरुथिनी एकादशी व्रत रखा जाता है। इस वर्ष वरुथिनी एकादशी व्रत 07 मई दिन शुक्रवार को है। इस दिन भगवान श्री विष्णु की विधि विधान से पूजा की जाती है, फलाहार करते हुए व्रत रखा जाता है और पूजा (Worship) के समय वरुथिनी एकादशी व्रत (Varuthini Ekadashi fast) की कथा का श्रवण किया जाता है। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बतानें जा रहें हैं वरुथिनी एकादशी व्रत की तिथि, पारण का समय और इसका महत्व क्या है?
वरुथिनी एकादशी तिथि
हिन्दी पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 06 मई दिन गुरुवार को दोपहर 02 बजकर 10 मिनट से हो रहा है। इसका समापन 07 मई को दोपहर 03 बजकर 32 मिनट पर हो रहा है। देखा जाए तो उदयव्यापिनी तिथि 07 मई को प्राप्त हो रही है, ऐसे में वरुथिनी एकादशी का व्रत 07 मई दिन शुक्रवार को रखा जाएगा।
वरुथिनी एकादशी व्रत के पारण का समय
जो लोग वरुथिनी एकादशी व्रत रखेंगे, उनको व्रत का पारण 08 मई को प्रात: 05 बजकर 35 मिनट से सुबह 08 बजकर 16 मिनट के मध्य तक कर लेना चाहिए। एकादशी व्रत के पारण में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि द्वादशी तिथि के समापन से पूर्व पारण हो जाए। द्वादशी तिथि का समापन 08 मई को शाम 05 बजकर 20 मिनट पर हो रहा है।
वरुथिनी
एकादशी व्रत का महत्व
वरुथिनी एकादशी व्रत भगवान विष्णु (Lord vishnu) को अति प्रिय है। जो लोग नियम पूर्वक वरुथिनी एकादशी व्रत करते हैं, उनके समस्त पापों का नाश हो जाता है। भगवान विष्णु की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मृत्यु के पश्चात उस व्यक्ति को भगवान श्री हरि के चरणों में स्थान प्राप्त होता है।
करें ये उपाय
एकादशी तिथि पर सुबह स्नानादि करने के पश्चात पीले रंग के वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु की पूजा करें और दक्षिणवर्ती शंख में जल भरकर उनका अभिषेक करें। मान्यता है कि इससे भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और आपका दुर्भाग्य भी सौभाग्य (Good luck) में बदल जाता है। शंख से जल चढ़ाते समय इस बात का ध्यान रखें कि जो शंख बजाया जाता है, उससे जल न चढ़ाएं। अभिषेक करने के लिए अलग शंख का प्रयोग करें।
भगवान विष्णु के तुलसी अतिप्रिये है इसलिए एकादशी के दिन विष्णु भगवान को तुलसी (Basil) अवश्य अर्पित करें। पीपल की जड़ में जल अर्पित करें और चना, गुड़ मुनक्का का दान करें। हो सके तो किसी जरूरतमंद को भोजन अवश्य करवाएं। इसके बाद भगवान विष्णु से दुखों को दूर करने की प्रार्थना करें।
नोट– उपरोक्त दी गई जानकारी व सूचना सामान्य उद्देश्य के लिए दी गई है। हम इसकी सत्यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है । इस उपयोग करने वाले की स्वयं की जिम्मेंदारी होगी ।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved