-सतीश एलिया .
जैसै दिल्ली के मुसलमानों ने कांग्रेस को लगातार दो चुनाव में शून्य दिया, ठीक उसी तरह बंगाल के मुसलमानों ( घुसपैठिए, रोहिग्या समेत, जो फ्राँस में कार्टूनिस्ट समेत अन्य गैर मुस्लिमों की हत्या का ऐलान और समर्थन करते हैं) ने भी लेफ्ट और कांग्रेस को शून्य थमाकर ममता को बंपर जीत दिलाई। यह तीन से 75 पर पहुँची भाजपा की हार नहीं बल्कि काग्रेस से तुष्टिकरण की ट्रिक पूरी तरह छिनने का नतीजा है।
भाजपा की औवेसी की बिहार में मौजूदगी से लाभ के गणित के दुहराने के खेल का बंगाल में फाऊल हो गया।औवेसी ही नही फुरफुरा वाले सिद्दीक की फुरफुरी भी काँग्रेस वाम बेमेल की सवारी में फुस्स हो गई। ममता मुसलमानो का भयादोहन करने में फिर कामयाब रहीं और भाजपा आधिकारिक विपक्ष बनकर ममता से 2024 में फिर मुकाबिल होगी।
कांग्रेस और वाम दलों के सरेंडर का लाभ भाजपा और ममता दोनों को हुआ। अब 2024 में गैर भाजपा विपक्ष के महागठबंधन बनने की कवायद तेज होगी, जिसमें कांग्रेस को और नुकसान होगा। वह अकेली लडकर भाजपा से मुकाबले लायक बची नहीं और ममता का नेतृत्व स्वीकार करेगी नहीं। बंगाल के नतीजे को बीजेपी की हार मानने वाले राजनीतिक नासमझ इस देश के मतदाता को नहीं समझ सकते।
ध्रुवीकरण कर मुसलमानों के दम पर 200 पार पहुँची ममता और जिनके दम पर भाजपा 200 पार का दम भर रही थी, वे भाजपा के समर्थक होते हुए भी वोट डालने आधी संख्या में ही पहुंचे। इससे साफ है कि नंदीग्राम की तरह बाकी जगह भी सभी भाजपा समर्थक मतदाता वोट डालते तो कदाचित् भाजपा सत्ता में आ भी सकती थी। लेकिन ढेरों ‘ सकता था’ का अब कोई मतलब नहीं।
सच है कि कोलकाता की सड़कों पर अब दिख हरा गुलाल और फिर वही खैला पाँच साल। जिसका आगाज हिंसा और आगजनी से हो गया है। साफ है कि आठ चरण के चुनाव की खूरेजी के बाद अब अगले चूनाव हिंसा के मरहले आते ही रहेंगे। देखना ये भी है कि खुद को ब्राह्मण की बेटी कहकर मंच से चंडीपाठ करने वाली ममता कितना बदलती हैं या बदली हुई दिखती हैं ।
फिलवक्त तो वे उसी तेवर में हैं, जिनकी वजह से उनका लगातार तीसरी दफा सत्तारोहण हो रहा है। यह भी कि कोरोनाकाल में कोरोना से निपटने के उपाय करने से ज्यादा चुनाव पर फोकस बनाए दिखे दाड़ी बाबा अब किस मुद्रा और रणनीति में मुब्तिला होंगे। अभी तीन साल बाकी हैं लेकिन सभी सूबाई दलों की नजर अपनी अपनी जमीन बचाने या फिर पाने में जुटने के अलावा आगामी लोकसभा चुनाव पर भी होगी। तय है कि 2024 में खैला दिलचस्प तो होगा लेकिन भारी राष्ट्रीय पार्टी ही रहेगी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं .
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