27 अप्रैल यानि आज है चैत्र पूर्णिमा (Chaitra Purnima) है और चैत्र पूर्णिमा भगवान विष्णु को समर्पित मानी जाती है। इस दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं और शाम को भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ किया जाता है। पूर्णिमा के दिन स्नान-दान का विशेष महत्व (Special importance) है। यही कारण है कि पूर्णिमा के दिन भक्त गंगा स्नान(Ganges bath) जरूर करते हैं। लेकिन इस बार कोरोना वायरस की दूसरी लहर को देखते हुए आप घर में ही पूजा और स्नान करें। आइए जानते हैं । चैत्र पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त, धार्मिक महत्व और भगवान सत्यनारायण की कथा….
चैत्र पूर्णिमा का धार्मिक महत्व:
हिंदू धार्मिक मान्यताओं (Religious beliefs) के अनुसार, पूर्णिमा की तिथि चंद्र देव की प्रिय मानी जाती है। माना जाता है कि इस माह में जो जातक सूर्य देव की विधिवत पूजा अर्चना (Worship) करते हैं वो जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही वजह है कि चैत्रपूर्णिमा (Chaitra Purnima) के दिन कई लोग गंगा में स्नान करते हैं और अंजलि से सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। लेकिन इस बार कोरोना वायरस की दूसरी लहर की वजह से गंगा स्नान ना ही करें तो बेहतर है। इसकी जगह शुद्ध जल से स्नान कर लें।
सत्यनारायण की कथा:
पौराणिक कथा (mythology) के अनुसार, बहुत समय पहले की बात है एकबार विष्णु भक्त नारद जी ने भ्रमण करते हुए मृत्युलोक के प्राणियों को अपने-अपने कर्मों के अनुसार तरह-तरह के दुखों से परेशान होते देखा। इससे उनका संतहृदय द्रवित हो उठा और वे वीणा बजाते हुए अपने परम आराध्य भगवान श्रीहरि की शरण में हरि कीर्तन करते क्षीरसागर पहुंच गये और स्तुतिपूर्वक बोले, ‘हे नाथ! यदि आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो मृत्युलोक के प्राणियों की व्यथा हरने वाला कोई छोटा-सा उपाय बताने की कृपा करें।’ तब भगवान ने कहा, ‘हे वत्स! तुमने विश्वकल्याण की भावना से बहुत सुंदर प्रश्न किया है। अत: तुम्हें साधुवाद है। आज मैं तुम्हें ऐसा व्रत बताता हूं जो स्वर्ग में भी दुर्लभ है और महान पुण्यदायक है तथा मोह के बंधन को काट देने वाला है और वह है श्रीसत्यनारायण व्रत। इसे विधि-विधान से करने पर मनुष्य सांसारिक सुखों को भोगकर परलोक में मोक्ष प्राप्त कर लेता है।’
इसके बाद काशीपुर नगर (Kashipur Nagar) के एक निर्धन ब्राह्मण को भिक्षावृत्ति करते देख भगवान विष्णु (Lord vishnu) स्वयं ही एक बूढ़े ब्राह्मण के रूप में उस निर्धन ब्राह्मïण के पास जाकर कहते हैं, ‘हे विप्र! श्री सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं। तुम उनके व्रत-पूजन करो जिसे करने से मुनष्य सब प्रकार के दुखों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत में उपवास का भी अपना महत्व है किंतु उपवास से मात्र भोजन न लेना ही नहीं समझना चाहिए। उपवास के समय हृदय में यह धारणा होनी चाहिए कि आज श्री सत्यनारायण भगवान हमारे पास ही विराजमान हैं। अत: अंदर व बाहर शुचिता बनाये रखनी चाहिए और श्रद्धा-विश्वासपूर्वक भगवान का पूजन कर उनकी मंगलमयी कथा का श्रवण करना चाहिए।’ सायंकाल में यह व्रत-पूजन अधिक प्रशस्त माना जाता है।
साधु वैश्य ने भी यही प्रसंग राजा उल्कामुख से विधि-विधान के साथ सुना, किंतु उसका विश्वास अधूरा था। श्रद्धा में कमी थी। वह कहता था कि संतान प्राप्ति पर सत्यव्रत-पूजन करूंगा। समय बीतने पर उसके घर एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। उसकी श्रद्धालु पत्नी ने व्रत की याद दिलायी तो उसने कहा कि कन्या के विवाह (marriage) के समय करेंगे।
समय आने पर कन्या का विवाह भी हो गया किंतु उस वैश्य ने व्रत नहीं किया। वह अपने दामाद को लेकर व्यापार के लिए चला गया। उसे चोरी के आरोप में राजा चन्द्रकेतु (Raja Chandraketu) द्वारा दामाद सहित कारागार में डाल दिया गया। पीछे घर में भी चोरी हो गयी। पत्नी लीलावती व पुत्री कलावती भिक्षावृत्ति के लिए विवश हो गयीं। एक दिन कलावती ने किसी विप्र के घर श्री सत्यनारायण (Satyanarayan) का पूजन होते देखा और घर आकर मां को बताया। तब मां ने अगले दिन श्रद्धा से व्रत-पूजन कर भगवान से पति और दामाद के शीघ्र वापस आने का वरदान मांगा। श्रीहरि प्रसन्न हो गये और स्वप्न में राजा को दोनों बंदियों को छोडऩे का आदेश दिया। राजा ने उनका धन-धान्य तथा प्रचुर द्रव्य देकर उन्हें विदा किया। घर आकर पूर्णिमा और संक्रांति को सत्यव्रत का जीवन पर्यन्त आयोजन करता रहा, फलत: सांसारिक सुख भोगकर उसे मोक्ष प्राप्त हुआ ।
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