कोविड मरीजों में ही बनती है एंटीबॉडी
ठीक हो चुके लोगों की प्लाज्मा देने में रुचि नहीं
अस्पताल जाने के बाद संक्रमित होने का डर
इंदौर। शहर में कोरोना पीडि़त मरीजों (Patients with corona) के सामने एक और संकट पैदा हो गया है। जिन गंभीर मरीजों को प्लाज्मा (plasma) की आवश्यकता पड़ रही है, उन्हें प्लाज्मा नहीं मिल पा रहा है। कारण, कोरोना से ठीक हुए अधिकांश लोग फिर से पॉजिटिव आने के डर से अस्पताल की ब्लड बैंक तक नहीं जा रहे हैं और कई डर रहे हैं कि कहीं फिर से उन्हें कोरोना हो गया तो क्या होगा?
शहर में कई समाजसेवी संस्थाएं (philanthropic institutions), जो ब्लड बैंक ( blood bank) चलाती हैं, वे भी प्लाज्मा उपलब्ध कराती हैं। पिछले साल गंभीर मरीजों को दी जाने वाली प्लाज्माथैरेपी (plasma therapy) में स्वस्थ होने वाले मरीजों की संख्या ज्यादा थी और कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों ने भी अपनी जवाबदारी निभाई थी और कई मरीजों को प्लाज्मा देकर उनकी जान बचाई थी। दरअसल इसमें कोविड का इलाज कराकर स्वस्थ हो चुका व्यक्ति 15 से 20 दिन बाद प्लाज्मा दान कर सकता है और उसके अंदर 4 से 5 महीने तक एंटीबॉडी (antibodies) बनी रहती है। अब जब कोरोना की दूसरी लहर में मरीज गंभीर स्थिति का सामना कर रहे हैं और उन्हें अंत में प्लाज्मा की आवश्यकता होती है तो वे भटकते रहते हैं। किस्मत से प्लाज्मा मिल गया तो ठीक और नहीं मिला तो कई मरीजों की मौत भी हो जाती है। शहर में प्लाज्मा डोनेशन से जुड़े ब्लड कॉल सेंटर के अशोक नायक का कहना है कि अभी तक हम 330 यूनिट प्लाज्मा डोनेट करवा चुके हैं, लेकिन अब डोनर मिलना मुश्किल हो रहा है। रहें न रहें हम सोशल ग्रुप के रितेश बापना ने भी कहा कि हम दिनभर 100 डोनर से बात करते हैं तो उनमें से 10 तैयार होते हैं। दरअसल कई लोगों को डर लगने लगा है कि वे फिर से अस्पताल गए तो संक्रमित हो जाएंगे। फिर भी हम लोग मरीज को प्लाज्मा देने के लिए एंटीबॉडी (antibodies) वाले लोगों से संपर्क में रहते हैं, ताकि किसी मरीज की जान बचाई जा सके।
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