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    INDORE : सख्त लॉकडाउन ही बढ़ते संक्रमण को रोकने का अंतिम विकल्प

    April 17, 2021

    – बड़ी त्रासदी के मुहाने पर खड़ा शहर… अस्पताल और श्मशान में लगी कतारें रोकना अब प्राथमिकता
    – अब ‘जान है तो जहान है’ पर काम करना जरूरी
    – सोमवार से कड़ी सख्ती लागू हो तो ही बनेगी बात
    इन्दौर, संजीव मालवीय। कोरोना (Corona) की पहली लहर को शहर झेल गया, लेकिन दूसरी लहर जिस तरह से कहर बरपा रही है, उससे विभीषिका समझी जा सकती है। राजनीतिक दलों (political parties) के आरोप-प्रत्यारोप के बीच शहर का आम नागरिक पिसा रहा है। शहर में शायद ही कोई हिस्सा बचा होगा, जहां कोरोना का संक्रमण नहीं फैला हो। बावजूद इसके लोग समझने को राजी नहीं हैं और न ही प्रशासन की सख्ती कहीं नजर नहीं आ रही है। पहले अस्पताल में भर्ती होने के लिए कतार, नेताओं और अधिकारियों को फोन लगाकर अस्पताल में भर्ती कराने की गुहार लगाते लोग, फिर इंजेक्शन (injections) और दवाइयों (medicines) के लिए मेडिकल स्टोर पर कतार, फिर ऑक्सीजन की जद्दोजहद और अगर जान चली गई तो श्मशान में कतार। इससे बचने और कोरोना संक्रमण की चेन को तोडऩे के लिए अब सख्त लॉकडाउन ही एकमात्र विकल्प बचा है। हमें समझना होगा कि जान है तो जहान है।


     

    इंदौर में पिछले 15 दिनों से जिस तरह से कोरोना के आंकड़ों ने बढ़त बनाई है, उससे हालत वाकई बहुत खराब है। जहां भी जाओ कोरोना संक्रमण की चर्चा हो रही है। जितने मरीज (patients) अस्पताल में भर्ती हैं, उससे कहीं अधिक मरीज अपने घरों में इलाज करा रहे हैं। उनमें से कुछ इम्युनिटी (immunity) अच्छी होने के कारण ठीक हो भी रहे हैं तो कई मरीज गंभीर हालत में अस्पताल पहुंच रहे हैं, लेकिन उन्हें अस्पतालों में भर्ती करने के लिए कतार में लगना पड़ रहा है। यही नहीं, जिसकी पहुंच नहीं है उसके लिए कतार लंबी हो जाती है तो नेताओं और जनप्रतिनिधियों को फोन लगाकर मरीज के परिजन अपने की जान बचाने की गुहार लगाते रहते हैं। नेता और जनप्रतिनिधि इनमें से मात्र 10 प्रतिशत की ही मदद कर पाते हैं। कोरोना के पहले दौर में इतनी पाबंदियां थीं कि शहर के लोग समझ गए थे कि कोरोना का कहर कितना बुरा है, लेकिन दूसरी लहर उससे भी खतरनाक है, पर अफसोस कि लोग समझ नहीं रहे हैं और जब तक समझ रहे हैं तब तक वे बीमार होकर अस्पताल के मुहाने तक पहुंच जाते हैं।


    त्योहार की खुशी काफूर न हो जाए
    नवरात्रि, रमजान और फिर रामनवमी त्योहार (festivals) आने हैं, लेकिन हर त्योहार का मजा किरकिरा हो गया है। अगर यही स्थिति रही तो आने वाले समय में त्याहारों की खुशी काफूर न हो जाए।


    दूध-दवा चालू, बाकी सब बंद
    पिछली बार जिस तरह से लॉकडाउन लगाया था, उसी तरह इस बार भी सख्ती करना होगी। शहर के नागरिक यह सवाल भी उठा रहे हैं कि आखिर शहर को बचाने के लिए कड़े नियम कब लागू होंगे? दूसरी लहर जिस तरह से कहर बरपा रही है उससे हर कोई प्रभावित हो रहा है। बाजारों में सोशल डिस्टेंसिंग नहीं है और न ही मास्क का पालन किया जा रहा है। कार्रवाई के नम पर सरकारी विभाग आंकड़े जारी कर रहे हैं और अपनी जवाबदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं। यहां तक कि पुलिस चैकिंग के बजाय छांव में बैठी नजर आती है।


     

    शहर ऐसा खुला जैसे कुछ न हुआ हो
    प्रशासन की सख्ती कहीं नजर नहीं आ रही है। शहर सामान्य तौर पर खुला हुआ है। भले ही बाजार बंद हैं, लेकिन लोगों की आवाजाही सडक़ों पर देखकर नहीं लग रहा है कि कोरोना कर्फ्यू लागू है। गली-मोहल्लों में छोटी-छोटी दुकानें खुल जाती हैं। छूट के नाम पर गलत फायदा उठाने वाले भी कोरोना का शिकार हो रहे हैं, जिस पर अब लगाम लगानेे की सख्त जरूरत है।


     

    उद्योगों के कारण भी बढ़ रही परेशानी
    अर्थव्यवस्था न चरमराए इसको लेकर प्रशासन ने उद्योग, कारखानों को चलाने की अनुमति दे रखी है। इनमें काम करने वाले हजारों लोग सडक़ों से निकलते हैं और घरों को लौटते हैं। ऐसे में वे भी संक्रमण का शिकार हो सकते हैं। अगर औद्योगिक क्षेत्रों में भी कुछ दिनों के लिए कफ्र्यू लगाया जाए तो बढ़ती संक्रमण दर को रोका जा सकता है।

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