मुंबई। जांच एजेंसियों (Investigative Agencies) का काम होता है कि आरोपियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाना। ऐसे आरोपियों को मुकदमे के दौरान जब सजा मिलती है, तो सबसे ज्यादा खुशी उस केस के जांच अधिकारी को होती है। लेकिन एनसीबी(NCB) के जॉइंट डायरेक्टर केपीएस मल्होत्रा को तब सबसे ज्यादा खुशी मिली, जब कतर(Qatar) में दस साल की सजा पाए मुंबई के एक दंपति शरीक और ओनिबा (Sharik and Oniba) को उन्होंने वहां की कोर्ट से बरी करवाया। और बुधवार को दोनों पति-पत्नी कतर से वापस मुंबई भी आ गए। शरीक ने उस दौरान कहा कि एनसीबी अधिकारी हमारे लिए मसीहा बनकर आए।
केपीएस मल्होत्रा ने एक और जॉइंट डायरेक्टर समीर वानखेडे के साथ सुशांत सिंह ड्रग्स केस का भी इनवेस्टिगेशन किया है। गुरुवार को उन्होंने एनबीटी से कहा कि शरीक और ओनिबा का केस उनकी जिंदगी के सबसे यादगार केसों में से एक है, क्योंकि उन्होंने एक निर्दोष दंपत्ति और कतर की जेल में ही जन्मी उनकी छोटी सी बच्ची की आगे की जिंदगी में उम्मीद का दीया जलाने की कोशिश की है। मल्होत्रा के अनुसार, भारत का यह शायद पहला केस होगा, जिसमें विदेश में कोई आरोपी कनविक्ट हुआ और भारतीय जांच एजेंसियों की मदद से वह बरी किया गया।
दो साल पहले हुए थे गिरफ्तार
मल्होत्रा के अनुसार, 6 जुलाई, 2019 को हम्माद इंटरनैशनल एयरपोर्ट दोहा, कतर में वहां की ड्रग इनफोर्समेंट एजेंसी ने मुंबई के दो यात्रियों मोहम्मद शरीक और ओनिबा कौशर को रोका और उनके बैग की तलाशी ली। एक बैग से चार किलो चरस बरामद हुई। दोनों पर मुकदमा चला और दोनों को कतर की कोर्ट ने दस साल की सजा सुनाई, साथ ही बड़ा जुर्माना भी लगाया।
ओनिबा के पिता शकील अहमद ने इसी दौरान प्रधाममंत्री ऑफिस और नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी एनसीबी से संपर्क किया। एनसीबी चीफ राकेश अस्थाना के जरिए इनवेस्टिगेशन जॉइंट डायरेक्टर केपीएस मल्होत्रा तक आया। मल्होत्रा ने शकील अहमद से जब पूरा केस समझा, तो शकील ने बताया कि इस दंपति को शरीक की एक ऑन्टी तबस्सुम कुरैशी और उसके साथी निजाम कारा ने धोखा दिया है। मल्होत्रा ने पूछा कि वह कैसे? शकील अहमद ने जवाब दिया-हनीमून पैकेज के जरिए। शरीक और ओनिबा की साल, 2019 में ही शादी हुई थी। तबस्सुम ने दोनों से कहा कि तुम लोग दोहा हनीमून पर जाओ, हम तुम्हारा टूर स्पॉन्सर करते हैं। उसी बहाने शरीक के बैग में चरस रख दी गई।
एनसीबी को शकील अहमद के जरिए शरीक, ओबिना और तबस्सुम के मोबाइल नंबर मिल गए। जब जांच एजेंसी ने इन नंबरों की पड़ताल की, तो तबस्सुम का एक ऑडियो मिला। इस ऑडियो को सुनकर जांच एजेंसी एनसीबी समझ गई कि तबस्सुम ने पान के जर्दे के नाम पर शरीक के बैग में यह चरस रख दी थी, जिसकी भनक भी उसने शरीक को नहीं होने दी।
चंडीगढ़ से खुला आगे का रहस्य
इसके बाद मल्होत्रा ने एनसीबी में अपनी टीम के साथ चंडीगढ़ में ट्रैप लगाया गया और 26 फरवरी, 2020 को चार लोगों को गिरफ्तार किया। उनके पास से 1 किलो 474 ग्राम चरस जब्त की गई। जांच में पता चला कि निजाम कारा और उसकी पत्नी शाहिदा कारा द्वारा यह चरस चंडीगढ़ भेजी गई थी। जब दोनों से सख्त पूछताछ हुई, तो निजाम कारा ने उसी दौरान इस बात का खुलासा किया कि मोहम्मद शरीक और ओनिबा कौशर को उसने व तबस्सुम ने हनीमून के बहाने कतर भेजा था और उनके बैग में जर्दा के नाम पर चरस रख दिया था। जब यह साबित हो गया, कि शरीक और ओनिबा निर्दोष हैं, तब के.पी.एस. मल्होत्रा ने विदेश मंत्रालय के जरिए भारतीय दूतावास से संपर्क किया और शरीक और ओनिबा को किसी भी कीमत पर कतर की जेल से बाहर निकालने की कोशिश करने को कहा। उसके बाद वहां की सरकार और कोर्ट में इस दंपति की बेगुनाही के ऐविडेंस रखे गए।
29 मार्च को वहां की अदालत ने भारतीय पक्ष को सही माना और शरीक और ओनिबा व उनकी करीब डेढ़ साल की बच्ची को वापस भारत जाने की इजाजत दे दी। 14 अप्रैल को जब यह दंपति कतर एयरपोर्ट पर पहुंचा और फिर देर रात मुंबई एयरपोर्ट पर आया, तो उनकी आंखों से खुशी के आंसू निकल रहे थे। शरीक ने उस दौरान कहा कि यदि एनसीबी, भारत सरकार और मीडिया हमारी मदद नहीं करते, तो हम लोग इस केस से कभी भी बाहर नहीं आ सकते थे। शरीक ने कहा कि एनसीबी के अधिकारी उनके लिए किसी मसीहा की तरह आए।
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