गुंडों और तस्करों को अंदर रखने के लिए पुलिस बनाती है फर्जी केस, नहीं मिलती जमानत
इंदौर। खुशी को तो हाईकोर्ट (High Court) से अपने आठ माह के बच्चे (Children) को दूध पिलाने (Feeding) के लिए 14 दिन बाद ही सही कुछ हद तक न्याय मिल गया, लेकिन उसका झूठा केस बनाने वालों पर पुलिस (Police) के अफसर क्या करवाई करते हैं यह देखने की बात है। हालांकि खुशी अकेली ऐसी महिला (Women) नहीं है, जो परिवार के अपराधों की सजा भुगत रही हो। पुलिस गुंडों और तस्करों को अंदर करने के लिए 60 लीटर शराब के फर्जी केस बनाती है। इसके चलते आरोपी को जमानत (Bail) नहीं मिलती है और जेल (Jail) में रहना पड़ता है। अपराधी नहीं मिलने पर उसके परिवार के सदस्यों पर केस बना दिया जाता है।
अपराधों पर नियंत्रण रखने के नाम पर पुलिस (Police) कई तरह के हथकंडे अपनाती आई है। पहले पुलिस चाकू रखकर बदमाशों को अंदर करवा देती थी, लेकिन जब कई बार अदालत में पुलिस (Police) को फटकार पड़ी तो उसने नया तरीका निकाला। चार अलग-अलग बदमाशों को या तो चोरी की योजना अथवा डकैती की योजना के केस बनाकर अंदर कर देती थी। इसमें भी जमानत नहीं मिलती थी। फिर एक खेल 49 क का शुरू हुआ, जहरीली शराब ( Poisonous Alcohol) का केस बनाकर अंदर करने का। इसके अलावा 151 में भी जेल भेज देते थे, लेकिन पिछले कई सालों से शहर में पुलिस ने बदमाशों पर नियंत्रण के नाम पर 60 लीटर शराब का खेल शुरू किया है। इसमें पुलिस (Police) अपने पास से शराब (Alcohol) रखकर केस बनाती है। इसमें भी जमानत नहीं मिलती है। खुशी के केस में भी हो सकता है कि पुलिस ने उसके पति धर्मेद्र को शराब के साथ पकडऩे का प्रयास किया हो, लेकिन जब वह भाग गया तो खुशी का केस बनाकर उसे अंदर भेज दिया। बच्ची की दादी की मदद के लिए वकीलों ने हाईकोर्ट (High Court) का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने भी छुट्टी के दिन सुनवाई की और खुशी को जमानत मिली, जिसके बाद वह अपने बच्चे को 14 दिन बाद दूध पिला सकी। ऐसे कई लोग हैं, जो परिवार के लोगों के किए की सजा भुगतते हैं, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं होता।
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