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    .. आखिर अभिभावकों के मोबाइल नंबर कोचिंग वालों को दिए किसने?

  • March 25, 2021

    – कौशल मूंदड़ा

    ‘‘सर क्या आप लक्ष्यराज बोल रहे हैं…
    जी नहीं…
    तो उनके भाई या फादर बोल रहे हैं …
    आप बताइये आपको काम क्या है …
    जी मैं ….. इंस्टीट्यूट से बोल रहा हूं…. हमें आपके बच्चे के एजुकेशन से रिलेटेड बात करनी है ….
    वह तो ठीक है लेकिन आपको मेरे नंबर कहां से मिले …
    जी आपके बच्चे ने हमारी वेबसाइट की विजिट की होगी तो आपका डेटा हमारे पास आ जाता है।
    ऐसा कैसे, एक क्लिक में मेरा डेटा आपके पास आ गया …. यह किस अधिकार से आप प्राप्त कर रहे हैं….।
    साॅरी सर, हमने जानकारी देने के लिए फोन किया था, क्षमा करें, आपको कोई जानकारी कभी चाहिए हो तो आप हमें फोन कर दीजियेगा…।’’

    यह बातचीत पिछले सालों तक नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत के साथ लगभग हर दिन उस अभिभावक को झेलनी होती है जिनके बच्चे 10वीं से 11वीं में आ रहे थे, लेकिन अब यह सिलसिला 8वीं से 9वीं में आने के साथ ही शुरू हो रहा है। एक तो इंस्टीट्यूट इतने हो गए हैं कि एक छोटे शहर में भी सभी इंस्टीट्यूट एक-एक दिन करके आपको फोन करेंगे तब भी दो महीने तक सिलसिला चलता रहेगा। दूसरे, हर इंस्टीट्यूट आपको याद दिलाने के लिए हर तीसरे दिन फिर से फोन करता है। यदि आप एक नंबर को पहचान चुके हैं और उसे पहचानकर फोन नहीं उठाना चाहेंगे तब भी आप गच्चा खा सकते हैं क्योंकि कोचिंग संस्थान पार्ट टाइम टैली काॅलर रखते हैं और वे लगातार बदलते रहते हैं और उनके नंबर भी।

    इस सारी व्यथा के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन कोचिंग संस्थानों को अभिभावक के नंबर कहां से मिल रहे हैं। कौन-सा बच्चा किस स्कूल और किस कक्षा में है, यह डेटा कहां से उपलब्ध हो रहा है। पहला सीधा स्रोत स्कूल हैं, लेकिन कोई भी स्कूल यह स्वीकार नहीं करता कि उसके यहां से डेटा कोचिंग संस्थानों को पहुंचे हैं। जबकि, कई स्कूलों का तो कोचिंग संस्थानों से ‘छिपा हुआ’ टाइअप भी होता है।

    सीबीएसई माध्यम के तो लगभग सभी निजी स्कूलों का किसी न किसी कोचिंग संस्थान से टाइअप है, जिसे स्कूल में कोई भी नहीं बोलता लेकिन कोचिंग संस्थान अभिभावकों को दावे के साथ बताते हैं कि आपके बच्चे को सिर्फ परीक्षा देने स्कूल जाना है, बाकि पढ़ाई तो यहीं चलेगी। अभिभावक का डेटा कोचिंग संस्थानों के पास पहुंचने का दूसरा स्रोत डिजिटल माध्यम है जिसमें यदि कोई विद्यार्थी किसी डिजिटल माध्यम पर किसी कोचिंग संस्थान की वेबसाइट विजिट करता है और उसपर अपनी डिटेल भरता है, लेकिन उस डिटेल में भी अमूमन मोबाइल नंबर नहीं मांगे जाते, ईमेल एड्रेस से ही लाॅगिन किया जाता है। जहां मोबाइल नंबर मांगा जाता है वहां समझदार विद्यार्थी खुद ही बचकर दूसरी वेबसाइट पर स्विच कर लेते हैं क्योंकि इतना तो अब विद्यार्थी भी समझने लगे हैं कि अभिभावकों के नंबर देना कितना नुकसानदेह हो सकता है।

    जो भी हो, यदि स्कूलों की मानें तो वे डेटा नहीं दे रहे, वेबसाइट पर विजिट करने वाले विद्यार्थियों की संख्या भी उतनी नहीं है और एक ही स्कूल के सभी बच्चे एक ही वेबसाइट विजिट नहीं करते। ऐसे में सवाल वही खड़ा होता है कि आखिर 8वीं से 9वीं, 9वीं से 10वीं, 10वीं से 11वीं और 11वीं से 12वीं में आने वाले बच्चों का सटीक डेटा इन कोचिंग संस्थानों को उपलब्ध कौन करा रहा है। विधिक जानकारों की राय मानें तो सीनियर एडवोकेट अशोक सिंघवी कहते हैं कि स्कूल ही नहीं किसी भी संस्थान को किसी भी व्यक्ति का डेटा तीसरी पार्टी को देने का अधिकार नहीं है। मोबाइल सेवा प्रदाता कम्पनी हो या कोई बैंक, किसी को भी व्यक्ति का निजी डेटा किसी तीसरी पार्टी को देने का अधिकार नहीं है।

    एडवोकेट मनमीत सिंह वाधवा बताते हैं कि किसी कोचिंग संस्थान को इतनी सटीक जानकारी उपलब्ध हो रही है कि किसका बच्चा इस साल कौन सी क्लास में आ रहा है, यह जानकारी तो स्कूल से ही मिल सकती है और कानूनन बिना अभिभावक की सहमति के स्कूल किसी का भी डेटा तीसरी पार्टी को शेयर नहीं कर सकते। केन्द्रीय सूचना आयोग के ललित कपूर बनाम शिक्षा निदेशालय के जनवरी 2016 के मामले तथा नौशादुद्दीन बनाम सीबीएसई अजमेर के जनवरी 2017 को निर्णित मामले सहित अन्य उदाहरण हैं जहां छात्र और अभिभावक की अन्य सूचनाओं जिनमें मोबाइल नंबर, घर का पता, अभिभावक की आय आदि भी शामिल हैं, इन्हें स्कूल या अन्य संस्थान किसी थर्ड पार्टी को नहीं दे सकते। यदि कोई अभिभावक कानूनी मदद लेना चाहे तो स्कूल को भी पार्टी बना सकता है। एडवोकेट वाधवा कहते हैं कि ऐसा तो किसी को आजतक नजर नहीं आया कि कोचिंग वाले घर-घर पहुंच कर सर्वे कर रहे हों कि आपके यहां कितने बच्चे हैं और कौन-कौन सी क्लास में और किस स्कूल में हैं।

    कुल मिलाकर किसी अभिभावक को इतनी फुर्सत नहीं मिल पाती कि वह काम-धंधा छोड़कर इन पचड़ों में पड़े, इसलिए वह ऐसे फोन काॅल्स को नजरअंदाज करना ही उचित समझता है, लेकिन डेटा शेयरिंग के खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि यह डेटा आपका निजी है। भले ही निजी स्कूल इस सवाल से पल्ला झाड़ लें लेकिन डेटा कोचिंग संस्थानों के पास तो गया ही है, यदि डेटा कहीं गलत हाथों में चला गया तो उसके दुरुपयोग की शंका से इनकार करना संभव नहीं है।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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